11 जनवरी को हम ने गंगानगर की बस ली, वहा से सुबह जोधपुर के लिए बस लेकर शाम को जोधपुर पहुंच गए। 2-3 होटल में कमरा देखने के बाद हमें "डिस्कवरी गेस्ट हाउस " पसंद आया, जिसके नाम एवं कमरो में की राजस्थानी चित्रकारी ने हमें लुभा लिया। रात को इस गेस्ट हाउस की छत से जो नजारा "महिरानगढ किले" का था, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। सुबह हम महिरानगढ किला देखने चले गए। किले से शहर का नजारा देखने लायक है, नीले घर, नीली इमारतें अपने आप में खास दिखती है।
मेहरानगढ़ किले को देखने के बाद हम जसवंत थड़ा देखने गए जो मेहरानगढ़ से थोड़ी दूर ही है।
जोधपुर राजसी शहर है, राजपरिवार से संबंधित राजा जसवंत की याद में जसवंत थड़े का निर्माण किया गया था।
जैसे आगरे का ताजमहल सफेद संगमरमर से बना है, वैसे ही जसवंत थड़ा सफेद संगमरमर से बनी हुई सुंदर इमारत है। जसवंत थड़े को जाते समय एक झील दिखती है जो इसकी सुदरता को ओर बढ़ा देती है।
जसवंत थड़े से मेहरानगढ़ का सुंदर दृश्य दिखता है।
जसवंत थड़े में सीडी चढ़ कर अंदर जाना पढ़ता है।
इसे सन 1899 में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह की यादगार में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह जी ने बनवाया था।
यह स्थान जोधपुर राजपरिवार के सदस्यों के दाह संस्कार के लिये सुरक्षित रखा गया है।
इससे पहले राजपरिवार के सदस्यों का दाह संस्कार मंडोर जो मारवाड़ की प्राचीन राजधानी थी, में हुआ करता था। जसवंत थड़े के लिए जो संगमरमर का पत्थर लगाया है वह जोधपुर से 250 कि, मी, दूर मकराना से लाया गया था।
जसवंत थड़े के पास ही एक छोटी सी झील है जो स्मारक को ओर भी सुंदर बना देती है इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह जी ने करवाया था।
जसवंत थड़े के पास ही महाराजा सुमेर सिह जी, महाराजा सरदार सिंह जी, महाराजा उम्मेद सिंह आदि की स्मारक है।
यहा से मेहरानगढ़ किले का सुंदर दृश्य दिखता है।