अगर आप आगरा घूमने गए हैं तो आपको एक दिन फतेहपुर सीकरी के लिए भी जरुर निकालना चाहिए | कभी मुगलों की राजधानी रहा फतेहपुर सीकरी अपनी भव्यता के लिए जाना जाता रहा है | यहाँ की एक से बढ़कर एक भव्य इमारतों को देखकर सहज ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौर में यह नगर कितना भव्य और खूबसूरत रहा होगा | यहाँ की इमारतें बेहतरीन स्थापत्यकला एवं शैली में बनी हुई हैं |
फतेहपुर सीकरी शहर का निर्माण सन् 1571 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा किया गया था और इसे नाम दिया था 'फतेहाबाद' जिसका अर्थ होता है- 'जीत का शहर' | कहते हैं कि उस समय इस नगर की भव्यता देखने लायक हुआ करती थी लेकिन सन् 1586 में पानी की कमी की वजह से अकबर ने अपनी राजधानी यहाँ से दिल्ली स्थानांतरित कर दी |
हम भी आगरा घूमने के अगले दिन फतेहपुर सीकरी घूमने निकल पड़े | आगरा फोर्ट स्टेशन से सुबह की लोकल पैसेंजर पकड़ कर हम एक डेढ़ घंटे में फतेहपुर सीकरी स्टेशन पहुँच गए | स्टेशन छोटा सा है और यहाँ से एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ही बुलंद दरवाजा है | पैदल ही चलकर हम पहुँच गए अपनी डेस्टिनेशन जिसे हमने अब तक केवल किताबों में ही पढ़ा था |
सबसे पहले हम पहुंचे बुलंद दरवाजा देखने | यह प्रवेश द्वार दुनिया का सबसे बड़ा दरवाजा है जिसकी ऊंचाई 54 मी. है | दरवाजे की दीवारों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं | लाल बलुआ पत्थरों से इस दरवाजे का निर्माण हुआ है | अकबर की गुजरात की जीत की याद में इसका निर्माण किया गया था |
बुलंद दरवाजे से अंदर जाने पर एक बहुत बड़ा आंगन है जिसमें जाने से पहले बाहर ही जूते चप्पल उतारना होता है | आंगन के बीच में एक सफेद संगमरमर की चारों तरफ से जालीनुमा डिजाइन से घिरी हुई एक इमारत है जोकि सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है | कहा जाता है कि इन्ही के आशीर्वाद से अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम जहाँगीर था | आज भी नि:संतान लोग संतान प्राप्ति की मन्नत लिए यहाँ आते हैं और धागा बाँध कर जाते हैं |
इस बड़े आंगन के चारों ओर एक भव्य गलियारा है जिसमें खंभे, मस्जिद, मकबरे, कोठरियां आदि बनी हुयीं हैं | इसमें जामा मस्जिद प्रसिद्ध है जो कि भारत की बड़ी मस्जिदों में से एक है | यहाँ आज भी दिन के पांचों वक्त की नमाजें होती हैं |
इसके बाद हम शाही दरवाजे से बाहर निकले और शाही महल को देखने पहुंचे | शाही दरवाजे से बस पांच मिनट की दूरी पर ही शाही महल है | बादशाह अकबर अपने महल से निकलकर इसी रास्ते से होते हुए शाही दरवाजे से प्रवेश करके जामा मस्जिद में हर जुमे के दिन नमाज पढ़ने जाया करता था | यह एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल है | अगर आपको अच्छे से यहाँ के इतिहास के बारे में जानना है तो आपको एक गाइड करना ही पड़ेगा जो कि इस विरासत के इतिहास के बारे में बताएगा, तो हमने भी एक गाइड लिया और निकल पड़े इन इमारतों को देखने |
यह महल अकबर ने अपनी हिन्दू रानी जोधाबाई के लिए बनवाया था | इस महल के आंगन में एक तुलसी का पौधा लगा है | कहा जाता है कि रानी जोधाबाई रोज सुबह यहाँ पूजा किया करती थी |
इसके अलावा यहां अकबर की सभी बेगमों, जो कि अलग अलग धर्मों की थीं उनके महल और किचन बने हुए हैं |
यह पांच मंजिला खूबसूरत इमारत बहुत भव्य है | इस महल का उपयोग बादशाह शाम की ठंडी हवा और चांदनी रात का लुत्फ़ उठाने के लिए किया करता था | इसमें कुल 176 खंभे हैं जिनपर खूबसूरत पच्चीकारी की कलाकृतियां बनी हुई हैं |
यह तालाब बहुत खूबसूरत है | यहाँ बीच में एक प्लेटफार्म है जहाँ विभिन्न प्रकार की गायन प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थी | यहीं पर संगीत सम्राट तानसेन बैठकर गायन किया करते थे |
दीवान-ए-खास - यहाँ भी एक दीवान-ए-खास है | यहाँ बादशाह छोटे बड़े मुद्दों पर चर्चा किया करता था तथा यहाँ सार्वजनिक सभाएँ लगा करती थीं |
बीरबल का महल और राजकोष महल- इस महल का निर्माण अकबर ने अपने प्रधानमंत्री बीरबल के लिए बनवाया था | इस महल में जटिल नक्काशी, झरोखों और फूलों की कलाकृतियां बनी हुई हैं | यहीं एक राजकोष की इमारत भी है जिसमें कुछ सुराख बने हुए हैं जिसमें उस समय खजाने रखे जाते थे |
इसके अलावा यहाँ और भी कई देखने योग्य इमारतें हैं जैसे - टोडरमल का महल, हाथी दरवाजा, अस्तबल, बादशाह का शयनकक्ष, बेगम का स्नानागार , पानी स्टोर करने की जगह आदि |
इस प्रकार हमारी फतेहपुर सीकरी की यात्रा समाप्त हुयी और हम वापस आगरा लौट आए |
कैसे पहुंचे - फतेहपुर सीकरी आगरा से लगभग 35 किमी. दूर है जहाँ आप आसानी से ट्रेन, बस या टैक्सी से पहुँच सकते हैं |
कब जाएं - अक्टूबर से मार्च सबसे सही मौसम है फतेहपुर सीकरी घूमने का | गर्मी के मौसम में यहाँ आने का प्रोग्राम ना ही बनाएं तो अच्छा है क्योंकि यहाँ बहुत गर्मी पड़ती है |
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