सतिगुरु नानक परगटया
मिटी धुंध जग चानन हुआ
तारे छिपे अंधेर पोलोया
श्री गुरू नानक देव जी का गुरपुर्ब,मतलब जिस दिन गुरु जी दुनिया को तारने के लिए परकाश मान हुए थे, इस वर्ष नवंबर महीने की 8 तारीख को मनाया जा रहा है।
यह गुरपुरब बहुत धूमधाम से मनाया जाता है जैसे त्योहार हो। एक दिन पहले जा 2 -3 दिन पहले नगर कीर्तन निकाला जाता है, जो पूरे शहर पूरी संगत को साथ लेकर कीर्तन के साथ लोगों को प्रसाद बांटे हुए जाते है। लोग घरों में दीपमाला करते है। गुरद्वारों में दीप मोमबत्ती जलाते है। मीठाई बांटी जाती है।
श्री गुरु नानक देव जी की पहचान की जरूरत तो नही है, सब जानते है गुरु जी के बारे में। श्री गुरु नानक देव जी सिर्फ सिखों के गुरु ही नहीं,सब धर्म के लोग गुरु जी को मानते है।
गुरु जी के बारे में पूरा लिख पाना बहुत कठिन है।
मैने एक छोटी की कोशिश की है गुरु जी के बारे में बताने की। बहुत कुछ है, हम सब गुरु जी के बारे में जान ही नहीं सकते।
मूल मंत्र, जापुजी साहिब, आसा की वार, सलोक आदि बानी के रचिता गुरु नानक देव जी अपनी बनी 19 रागों में लिखी। श्री गुरु नानक देव जी की बानी श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है।
अपनी बानी में श्री गुरु नानक देव जी भगवान की उपमा की है, स्त्री को ऊंचा दर्जा दिया,और कहा कि जिस स्त्री से राजन जन्म लेते है, इसे बुरा कहना गलत है।
जन्म : माना जाता है श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई को पिता मेहता कालू माता त्रिपता देवी के घर ननकाना साहिब में हुआ। यह ननकाना साहिब अब पाकिस्तान में है जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने बनाया था।
परंतु गुरु जी ने लोगों को वहमों से दूर करने के लिए अपना जन्म कार्तिक की पूर्णिमा को मनाने के लिए कहा था। इस लिए गुरु जी का गुरपुरब दिवाली के 15 दिनों बाद पूर्णिमा को मनाया जाता है।
जब गुरु जी का इस संसार में आगमन होया तब समाज की हालत बहुत तर्सयोग थी। राजे परजा को लूट रहे थे। तब गुरु जी ने कहा था
कल काती राजे कसाई धर्म पंख कर उड़रया
कूढ़ अमावस सच चंद्रमा दीसे नाही कह चढ़या
बाबर ने तब लोगों पर बहुत जुल्म किए थे, श्री गुरु नानक देव जी को भी बंदी बना लिया था। तब गुरु जी ने भगवान को ताना मारा था और कहा था
ऐती मार प्यी कुर्लाने तें की दर्द न आया
बचपन में उनकी बहुत सारी साखी पर्चलित है। जिस से गुरु जी की रुहानी शक्ति का पता चलता है।
सच्चा सौदा: पिता मेहता कालू ने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए दे कर सौदा करने के लिए भेजा, गुरु जी ने पैसे भूखे साधुओं को भोजन करवा कर सच्चा सौदा किया। इसे गुरु जी बचपन से ही उधार, निमर भगती भाव वाले थे।
श्री गुरु नानक देव जी का बड़ी बहन जिनका नाम बेबे नानकी जी था, के साथ अथाह प्यार था। बेबे नानकी जी के पति जै राम जी ने गुरु जी को सुल्तानपुर लोधी के मोदी खाने में नौकरी दिवा दी थी। वहां गुरु नानक देव जी ने तेरा तेरा तोल कर गरीब लोगों को जायदा अनाज तोल देते थे।
यहां पर गुरुद्वारा बेर साहिब, हट साहिब बेबे नानकी जी का गुरुद्वारा है।
हट साहिब में गुरु जी द्वारा तोलते समय वरते हुए कंकर आज भी शशोबित है।
बेर साहिब गुरुद्वारा के साथ पवित्र वेई नदी है, यहा गुरु जी एशनान करते समय तीन दिन आलोप रहे, जब बाहर आए श्री गुरु नानक देव जी ने कहा था
न कोई हिंदू न कोई मुसलमान
गुरु जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। गुरु जी के समय की बेरी आज भी गुरुद्वारा बेर साहिब में है।
इसके बाद गुरु जी ने संसार को तारने के लिए चार उदासी की। मतलब चारों दिशाओं में चार यात्रा की। इन यात्रों के दौरान लोगों को वहम भ्रम को छोड़ने के लिए कहा।
आप यहां भी जाए आप को श्री गुरु नानक देव जी से संबंधित गुरुद्वारा जरूर मिल जाए गा, श्री गुरु नानक देव जी सब यात्रा पैदल ही की, पता नहीं कितने किलोमीटर पैदल ही तह किए थे।
इस समय श्री गुरु नानक देव जी ने पुरी में अलग आरती दी,जिस में कहा था कुदरत अपने आप में भगवान की आरती कर रही है, जैसे आसमान में तारे दीपक का काम कर रहे है, हवा धूप का काम कर रही है।
गगन में थाल तारिका मंडल जनक मोती
यहां पर आज पुरी में गुरुद्वारा आरती साहिब पर स्थित है।
एक बार श्री गुरु नानक देव जी सिक्किम में गए, वहां पर चुंगठंग नामक जगह पर गए, वहा पर भोजन की कमी थी, गुरु जी ने बक्सिश से यहां धान की खेती होने लगी।
चुंगथांग लाचुंग चू और लाचेन चू नदियों के संगम पर स्थित है। यह युमथांग के काफी करीब है। इस स्थान पर प्रसिद्ध गुरूद्वारा नानक लामा है। हम लाचुंग जाते और आते दोनों बार इस पवित्र जगह के दर्शन किए।
श्री गुरू नानक देव जी ने 1516 ई में अपनी तिब्बत चीन की उदासी के समय अपने पवित्र चरण पाए थे। उन्होंने इस जगह को पंजाबी में चंगी थाव कहा जिस का मतलब होता है अच्छी जगह। श्री गुरू नानक देव जी ने यहा पर दो दानवों का भी अंत किया था। श्री गुरू नानक देव जी के हाथों की हथेलियों के निशान आज भी वहा पर मौजूद चटान पर देखे जा सकते है। यहा पर एक चटान में से पवित्र जल निकलता है, पता नहीं इस जल का स्त्रोत कहा है,लेकिन जल की धारा निरन्तर वहती है।यहा पर गुरू डांगमार झील का जल भी संगत के लिए रखा हुआ है।
नानक मत्ता साहिब और रीठा साहिब
नानकमत्ता गुरुद्वारा उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में है जो कि सिखों का पवित्र व ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। नानकसागर बाँध गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब के पास ही है इसलिये इसे नानक सागर के नाम से भी जाना जाता है। गुरुद्वारा नानकमत्ता साहिब के नाम से ही इस जगह का नाम नानकमत्ता पड़ा। गुरुद्वारे का निर्माण सरयू नदी पर किया गया है।
गुरू नानकदेव जी सन 1514 में अपनी तीसरी उदासी के समय रीठा साहिब से चलकर भाई मरदाना जी के साथ यहाँ रुके थे। उन दिनों यहाँ जंगल हुआ करते थे। कहा जाता है कि यहाँ एक पीपल का सूखा वृक्ष था। जब नानक देव यहाँ रुके तो उन्होंने इसी पीपल के पेड़ के नीचे अपना आसन जमा लिया। गुरू जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया। वर्तमान समय में इसे पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है।
नानकमत्ता साहिब के दर्शन के लिये पूरे साल में कभी भी जाया जा सकता है क्योंकि यहाँ का मौसम हमेशा अनुकूल ही रहता है पर यदि दिवाली के अवसर पर यहाँ जाया जाये तो उसका एक अलग ही आकर्षण होता है ।देश भर से हजारों श्रद्धालु दीपावली मेले का आनन्द लेने के लिये यहाँ पहुँचते हैं और दर्शन करते हैं।
यह गुरुद्वारा बेहद शांत और साफ है। इसके अंदर जाते ही मन बिल्कुल शांत हो जाता है क्योंकि किसी भी तरह का शोरगुल या सामान बेचने वालों का हंगामा या पूजा करवाने वालों की फौज खड़ी नहीं मिलती है।
अगर कुछ होता है तो वो है गुरुद्वारे के अंदर लय में गाई जाने वाली गुरुबानी की धुन जिसे देर तक बैठ कर सुने बगैर वापस आने का मन नहीं होता।
गुरूद्वारा साहिब के दर्शन करने के बाद हम नानक सागर देखने गए। पास ही बाऊली साहिब है उसके दर्शन किए।
रीठा साहिब गुरुद्वारा नीचे होने के कारण बहुत सावधानी से छोटी सी सड़क से उतरना पड़ा। उत्तराखंड के चम्पावत में रीठा साहिब गुरुद्वारा सिखों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। माना जाता है कि यहां सिखों के प्रथम गुरु नानक देव अपने शिष्य मरदाना के संग तीसरी उदासी के वक्त पहुंचे,इस दौरान उन्होंने कड़वे रीठे को मिठास देकर इस स्थान को प्रमुख तीर्थ स्थल में बदल दिया था।तबसे इस स्थान का नाम रीठा साहिब पड़ गया। यहां श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में मीठा रीठा बांटा जाता है। कुछ ऐसी थी गुरु नानकदेव जी की महिमा कि उनके छूने मात्र से कड़वा रीठा मीठा हो गया।
काशीपुर: उतराखण्ड के ऊधम सिंह नगर जिले में स्थित है। यहाँ पर इतिहासिक गुरूद्वारा ननकाणा साहिब है। यह संगमरमर से बना है। ग्रंथों के अनुसार गुरुनानक देव जी ने 1514 में अपनी तीसरी उदासी शुरू की। इस दौरान उन्होंने अपने साथियों भाई बाला जी व भाई मरदाना जी के साथ जब उत्तराखंड के काशीपुर में एक इमली के पेड़ के नीचे आसन लगाया तो उन्होंने देखा कि काशीपुर के लोग अपनी जीवन सामग्री व् सामान को बैलगाड़ी व घोडा गाड़ियों में लादकर अपने परिजनों सहित नगर को छोड़ कर जा रहे है। गुरु जी के पूछने पर नगर वासियों ने दुखित ह्रदय से बताया नगर के पास से बहने वाली नदी स्वर्ण भद्रा में हर साल बाढ़ आने से जान माल का बहुत नुकसान हो जाता है कही से कोई मदद नहीं मिलती। इसलिए नगर छोड़ कर जाने को मजबूर है। नगरवासियों की पुकार सुन गुरु जी ने उन्हें अकाल पुरख के सिमरन की ताकत का भरोसा देते हुए नगर छोड़कर न जाने की प्रेरणा दी। इस दौरान गुरुनानक देव ने पास से ही एक ढेला( मिटटी का टुकड़ा ) उठाकर विकराल रूप से बह रही नदी में फेंका। जिसके बाद नदी का विकराल रूप शांत पड़ गया। उसके बाद इस नदी को ढेला नदी के रूप में पहचान मिली। जो श्री ननकाना साहिब गुरुद्वारा से 500 मीटर की दूरी पर आज भी शांत भाव से बह रही है।
हर वर्ग के लोग देश के कोने-कोने से यहां मत्था टेकने आते हैं।
श्री गुरुनानक देव का देवभूमि से गहरा जुड़ाव रहा है। उन्होंने कई स्थानों पर पैदल यात्रा कर " किरत करो, नाम जपो, वंड छको " यानि नाम जपें, मेहनत करें और बांटकर खाएं का उपदेश दिया।
अंतिम श्री गुरु नानक देव जी करतारपुर पाकिस्तान में बताया, श्री गुरु नानक देव जी ने स्वय खेतों में खेती कर किरत करने का उपदेश दिया। यही पर श्री गुरु नानक देव जी 1539 ई को ज्योति ज्योत समा गए।
धन्यवाद।