बहुत समय से मन था की राजस्थान का नीला शहर मतलब जोधपुर देखा जाए। 11 जनवरी 2014 को हम ने बाघा पुराना से गंगानगर की बस ली। गंगानगर हमारे गांव बाघा पुराना से लगभग 182 किलीमीटर पर है।वहा से सुबह जोधपुर के लिए बस लेकर शाम को जोधपुर पहुंच गए। गंगानगर से जोधपुर की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है। ऑनलाइन होटल बुकिंग तब इतनी पॉपुलर न होने के कारण हम चल फिर कर ही होटल ढूढते थे।
2-3 होटल में कमरा देखने के बाद हमें "डिस्कवरी गेस्ट हाउस " पसंद आया, जिसके नाम एवं कमरो में की राजस्थानी चित्रकारी ने हमें लुभा लिया। रात को एक तो थकावट बहुत थी। भूख भी बहुत लगी थी, ठंड भी थी। ऐसी ठंडी रात में रूफ टॉप डिनर किया,सच में उसका अपना ही मजा था। साथ में इस गेस्ट हाउस की छत से जो नजारा "महिरानगढ किले" का था, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। इस नजारे ने खाने का स्वाद ओर बढ़ा दिया था। मन में था सबसे पहले इसे ही देखा जाए। रात मेहरानगढ़ किले के बारे में सोचते निकल गई।
सुबह हम महिरानगढ किला देखने चले गए। ऑटो से गए थे, किले के समीप रास्ता बहुत घुमावदार था जो बहुत सुंदर दृश्य पेश कर रहा था। किले से शहर का नजारा देखने लायक है, नीले घर, नीली इमारतें अपने आप में खास दिखती है। मेहरानगढ़ काफी बड़ा किला है। किले में जाते ही एक मंदिर आता है, थोड़ी सीढ़ी चढ़ कर जाना पढ़ता है। यह मंदिर माता चामुंडा जी का है। माता चामुंडा जी जोधपुर की कुल देवी मानी जाती है। हम किले की छत पर भी गए , बहुत बड़ी छत थी, ओर भी बहुत सारे सैलानी आए हुए थे, वहा पर एक बड़ी सारी तोप भी थी,मेहरानगढ़ किले का मॉडल भी था।
अब कुछ एत्थासिक बाते मेहरानगढ़ के बारे में:
महिरानगढ किला पन्द्रहवी शताब्दी का यह विशाल किला है जो पथरीली चट्टान पहाड़ी स्थित है। मैदान से इसकी ऊंचाई 125 मीटर है। यह किला आठ द्वारों व अनगिनत बुर्जों से युक्त दस किलोमीटर लंबी ऊँची दीवार से घिरा है। बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के अंदर कई भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार किवाड़, जालीदार खिड़कियाँ है। इस किले में मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना, दौलत खाना आदि है। इन महलों में भारतीय राजवेशों के साज सामान का संग्रह मौजूद है। इसके साथ पालकियाँ, हाथियों के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघु चित्रों, संगीत वाद्य, पोशाकों व फर्नीचर का आश्चर्यजनक संग्रह भी है।
राव जोधा जोधपुर के राजा रणमल की 24 संतानों मे से एक थे। वे जोधपुर के पंद्रहवें शासक बने। शासन की बागडोर सम्भालने के एक साल बाद राव जोधा को लगने लगा कि मंडोर का किला असुरक्षित है। उन्होने अपने किले मंडोर से 9 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनाने के लिए 12 मई 1459 ई. को नीव रखी,महाराज जसवंत सिंह ने इसे पूरा किया।प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली कीलें लगी हैं।
राव जोधा को चामुँडा माता मे अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा जोधपुर के शासकों की कुलदेवी होती है। राव जोधा ने 1460 मे मेहरानगढ किले के समीप चामुंडा माता का मंदिर बनवाया और मूर्ति की स्थापना की। मंदिर के द्वार आम जनता के लिए भी खोले गए थे। चामुंडा माँ मात्र शासकों की ही नहीं बल्कि जोधपुर निवासियों की कुलदेवी थी और आज भी लाखों लोग इस देवी को पूजते हैं। नवरात्रि के दिनों मे यहाँ विशेष पूजा अर्चना की जाती है। राजस्थान के सबसे विशाल किलो में से एक किला देखने के बाद हमारा मन गदगद हो गया। किले अपनी अलग पहचान रखते थे, अपने गौरव को दिखाते है। मेहरानगढ़ किला अपने आप में बहुत सारी पुरानी यादें समाय हुए है।