पंजाब के गौरवमयी ईतिहास की गाथा - चमकौर साहिब जानिए इसका ईतिहास

Tripoto
Photo of पंजाब के गौरवमयी ईतिहास की गाथा - चमकौर साहिब जानिए इसका ईतिहास by Dr. Yadwinder Singh
Day 1

पिछले तीन साल से मैं गुजरात के राजकोट में होमियोपैथिक कालेज में पढ़ा रहा हूँ | मेरे स्टूडेंट्स भी अक्सर फेसबुक पर मेरी यात्राओं की तस्वीर देखते रहते हैं और कभी कभी लैकचर के आखिरी क्षणों में मैं भी अपनी घुमक्कड़ी के किस्से सुना देता हूँ| मेरे स्टूडेंट्स भी पिछले काफी समय से कह रहे थे सर हमें भी आपकी तरह बनना है डाक्टर भी घुमक्कड़ भी | मैंने कहा आ जाना किसी दिन साथ में घुमक्कड़ी करेंगे| पहले कुछ स्टूडेंट्स के साथ गुजरात में घूमें | फिर स्टूडेंट्स ने मुझे फोन किया और कहा सर हम आपके पास पंजाब घूमने के लिए आ सकते हो| मैंने कहा जब मर्जी आ जाना| फिर मेरे चार स्टूडेंट्स
रणजीत पालनपुर से, गोटी पार्थ सूरत से, राहुल खिमानी भावनगर से और रिकिन पोरबंदर के पास से 28 अकतूबर 2022 को अहमदाबाद से रेलगाड़ी पकड़कर कोटकपूरा पहुँच गए| कोटकपूरा रेलवे स्टेशन मेरे घर से मात्र 27 किमी दूर है| वहाँ से बस पकड़ कर बाघा पुराना मेरे घर आ गए| स्टूडेंट्स नहा धोकर तैयार हो गए | तब तक श्रीमती ने आलू के परांठे तैयार कर दिए | अपने स्टूडेंट्स के साथ मैंने गरमागरम आलू के परांठे  दही और मख्खन के साथ ब्रेकफास्ट किया| तकरीबन दोपहर के 12 बजे के आसपास हम गाड़ी में सामान रखकर तैयार थे| अब अपने स्टूडेंट्स को मुझे पंजाब दिखाना था वह तो पंजाब में बस अमृतसर को ही जानते थे| आज हमारा लक्ष्य आनंदपुर साहिब पहुंचना था और वह भी शाम के साढ़े चार से पहले कयोंकि वहाँ हमने विरासत एक खालसा मयुजियिम देखना था जिसकी एंट्री शाम को 4.30 बजे बंद हो जाती है| मेरे घर से आनंदपुर साहिब की दूरी 200 किमी है| हम घर से मोगा होते हुए जगराओं, लुधियाना को पार करते हुए दोराहा में सरहिंद नहर के साथ साथ रोपड़ की ओर बढ़ रहे थे| अभी समय तीन बज रहे थे और विरासत एक खालसा 60 किमी दूर था जहाँ हमने एक घंटे तक पहुँच जाना था| तभी मेरे मन में विचार आया स्टूडेंट्स को चमकौर साहिब के दर्शन करवा देता हूँ जिसका ईतिहास मैंने गाड़ी चलाते समय ही बता दिया था| कुछ ही देर बाद हम चमकौर साहिब की पार्किंग में गाड़ी लगाकर जूते उतार कर गुरु घर में प्रवेश कर गए| मैंने 20 रुपये की कड़ाह (देसी घी का प्रसाद) की पर्ची ली और प्रसाद लेकर स्टूडेंट्स को साथ लेकर गुरुद्वारा कतलगढ़ साहिब चमकौर साहिब के दर्शन के लिए ले गया| हमने गुरु गोबिंद सिंह जी के बड़े साहिबजादों और दूसरे शहीदों को नमन किया| कुछ देर हम गुरु घर के अंदर बैठे रहे| चमकौर युद्ध के बारे में स्टूडेंट्स को एक बार बताया | प्रसाद मैंने स्टूडेंट्स में बांटा और फिर गाड़ी में बैठ कर अगले सफर के लिए आगे बढ़ गए|

गुरुद्वारा चमकौर साहिब

Photo of Chamkaur Sahib by Dr. Yadwinder Singh

गुरुद्वारा चमकौर साहिब दर्शन

Photo of Chamkaur Sahib by Dr. Yadwinder Singh

वाहेगुरु जी

Photo of Chamkaur Sahib by Dr. Yadwinder Singh

गुरुद्वारा चमकौर साहिब में रखे हुए शस्त्र

Photo of Chamkaur Sahib by Dr. Yadwinder Singh
Day 2

#गुरुद्वारा_चमकौर_साहिब
#चमकौर_साहिब_की_जंग
#जिला_रोपड़_पंजाब

सरबंसदानी गुरू गोबिंद सिंह जी ने 20 दिसंबर 1704 ईसवी से लेकर 27 दिसंबर ईसवी  तक एक हफ्ते में ही अपने चारों साहिबजादों के साथ अपनी माता जी को धर्म के लिए कुरबान कर दिया।
20 दिसंबर 1704 ईसवी में गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने अपने परिवार और कुल 400 या 500 सिखों के साथ आनंदपुर साहिब को छोड़ दिया, जिस किले को मुगलों और पहाड़ी राजाओं की सैना ने मई 1704 ईसवी से घेरा डाला हुआ था। मुगलों ने कुरान की कसम खाई थी कि आप किले को छोड़ जाईये, आपको कुछ नहीं कहा जायेगा, लेकिन जब 20 दिसंबर 1704 ईसवी को गुरू जी ने किला छोड़ दिया तो मुगलों और पहाड़ी राजाओं ने गुरू जी के ऊपर हमला कर दिया।
आनंदपुर साहिब और रोपड़ के बीच सरसा नंगल नामक एक नदी बहती हैं, उस नदी में उस समय बहुत भयंकर बाढ़ आई हुई थी, गुरु जी का परिवार यहां तीन हिस्सों में बंटकर बिछड़ गया, इस जगह पर अब गुरुद्वारा परिवार विछोड़ा साहिब बना हुआ हैं, यह बात है 21 दिसंबर 1704 ईसवी की, उस दिन गुरू जी अपने दो बड़े साहिबजादों , पांच पयारे और कुल चाली सिखों के साथ चमकौर की कच्ची गढ़ी में पहुंचे। मुगल सेना पीछा कर रहे थे, चारों तरफ मुगल सेना थी, गुरु जी ने गढ़ी में मोर्चा लगा लिया।
#चमकौर_साहिब
चमकौर साहिब के युद्ध का नाम दुनिया के सबसे बहादुरी वाले युद्धों में आता हैं, जहां एक तरफ 10 लाख की विशाल मुगल सेना थी तो दूसरी तरफ गुरू गोबिंद सिंह जी, उनके दो बेटे, पांच पयारे और 40 सिख मिलाकर कुल 48 सिख। यह युद्ध था 48 vs 10,00000 जो अपने आप में बहादुरी की मिसाल हैं। यह युद्ध शुरू हुआ था 22 दिसंबर 1704 ईसवी में, गुरू जी ने पांच पांच सिखों के जत्थे बना कर युद्ध में बना कर भेजे, और जब पांच सिख 10 लाख मुगल सेना के साथ युद्ध करता था तो हर  एक सिख सवा लाख से लड़ता था, गुरू गोबिंद सिंह जी ने सवा लाख से एक लडायू, तबै गोबिंद सिंह नाम कहायू की बात को पूरा कर दिया। मुगलों सेना को लगा था गुरू जी के साथ दस बीस सिख होगें हम एक दो घंटे में युद्ध खत्म कर देगे, लेकिन उनका अंदाजा गलत साबित हुआ, सिख 48 थे लेकिन लड़ ऐसे रहे थे जैसे 500 सिख हो, गुरु गोबिंद सिंह जी का तेज ही इतना था, कोई मुगल गढ़ी के पास आने से डरता था, अगर किसी ने कोशिश की भी तो गुरु गोबिंद सिंह के तीर के निशाने ने उसे मौत की नींद सुला दी, गुरु जी का निशाना बहुत पकका था, मालेरकोटला के नवाब शेर मुहम्मद खान के भाई नाहर खान ने सीढ़ी लगाकर चमकौर गढ़ी पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन जैसे उसने सिर ऊपर उठाया तो बुरज पर खड़े गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने तीर से नाहर खान को नरक भेज दिया, फिर उसके भाई ने कोशिश की उसका भी यहीं हाल हुआ, तीसरा भाई छिपकर भाग गया।
#साहिबजादा_अजीत_सिंह_की_शहीदी
साहिबजादा अजीत सिंह जी गुरू गोबिंद सिंह जी के बड़े बेटे थे, उमर केवल 18 साल की, अपने पिता जी आज्ञा मांगी युद्ध में जाने के लिए, गुरु जी बहुत खुश हुए, उन्होंने अपने बेटे को सीने से लगाकर तीर देकर चमकौर के युद्ध में भेजा और कहा कोई भी वार पीठ पीछे नहीं होना चाहिए, सारे वार तीर तलवार तेरी छाती में लगने चाहिए, बाबा अजीत सिंह ने युद्ध में आकर ही तीरों की बौछार चला दी, बहुत सारे मुगलों को मौत के घाट उतार कर दिया,  जिसमें मुगलों के जरनैल अनवर खान का नाम भी आता हैं,ऊपर चमकौर की गढ़ी में कलगीधर पातशाह अपने बेटे के जौहर देखकर शाबाशी दे रहे थे, जब बाबा अजीत सिंह के तीर खत्म हो गए तो उन्होंने तलवार निकाल कर युद्ध लड़ना जारी रखा, ईतिहास कहता हैं कि युद्ध में बाबा अजीत सिंह को 350 के लगभग जख्म लगे, तीरों से, तलवारों से और एक भी जख्म पीठ पीछे नहीं लगा, इस तरह बाबा अजीत सिंह शहीद हुए। नमन हैं उनकी शहीदी को।
#साहिबजादा_जुझार_सिंह_की_शहीदी
साहिबजादा जुझार सिंह जी गुरू गोबिंद सिंह जी के दूसरे बेटे थे, जिनकी उमर उस समय 15 साल की थी, अपने बड़े भाई बाबा अजीत सिंह की शहीदी के बाद आपने भी अपने गुरूपिता से  युद्ध में जाने की आज्ञा मांगी, गुरू जी ने बाबा जुझार सिंह को भी खुशी खुशी युद्ध में भेजा, ऐसे ही जौहर दिखाते हुए बाबा जुझार सिंह भी शहीद हुए। अपने दोनों बेटों को शहीद होते हुए देखकर गुरु जी ने चमकौर की गढ़ी से जैकारों से शाबाशी दी। यह था गुरू गोबिंद सिंह जी का प्रताप जो अपने बेटों को युद्ध में खुद लड़ने के लिए भेजते है और उनकी शहीदी पर प्रभु का शुकराना करते हैं। इन शहीदों की गाथा पढ़कर , सुनकर और आज लिखकर भी आखें नम हो गई। कोटि कोटि प्रणाम हैं बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह की शहीदी को।
कैसे पहुंचे- गुरुद्वारा चमकौर साहिब जिला मुख्यालय रोपड़ से 17 किमी, राजधानी चंडीगढ़ से 50 किमी दूर, लुधियाना से 62 किमी और मेरे घर से 147 किमी दूर है| यहाँ गुरुद्वारा साहिब में रहने और लंगर की उचित व्यवस्था है|

चमकौर युद्ध में साहिबजादा अजीत सिंह की एक तस्वीर

Photo of Chamkaur Sahib by Dr. Yadwinder Singh

चमकौर युद्ध में साहिबजादा जुझार सिंह की एक तस्वीर

Photo of Chamkaur Sahib by Dr. Yadwinder Singh

गुरुद्वारा चमकौर साहिब में स्टूडेंट्स के साथ तस्वीर

Photo of Chamkaur Sahib by Dr. Yadwinder Singh

चमकौर साहिब

Photo of Chamkaur Sahib by Dr. Yadwinder Singh

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