भठिंडा भटिंडा बठिंडा बहुत सारे नाम से मशहूर भठिंडा पंजाब का एक प्रमुख शहर है। जहां पर थर्मल प्लांट जिस से बिजली उत्पन होती है, भी स्थित है। झीलों के लिए प्रसिद्ध यह शहर राजस्थान से लगता है।
"बठिंडे झीलां कोल कोठी पा दे वे माहिया"
"बठिंडा बीकानेर हो गया काहदी बस विचो उतर गई तू"
ओर भी बहुत सारे पंजाबी गीतों में अपनी पहचान बनाए बैठे भटिंडा में देखने लायक बहुत सारी ऐतिहासिक और धार्मिक जगह है। शॉपिंग के लिए मॉल एवं धोबी मार्केट कपड़े के लिए बहुत मशहूर है।
थर्मल प्लांट के पास झील में बोटिंग की जा सकती है। अच्छा पिकनिक स्पॉट है।
सिख धर्म का चौथा तख्त श्री दमदमा साहिब भी भठिंडा से कुछ ही दूरी पर स्थित तलवंडी साबो में शोहोभित है, जो बस स्टैंड से मात्र 30 किलोमीटर पर है।
इस पावन जगह पर दशमेश गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी सवा साल से ज्यादा समय रहे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों के साथ युद्ध के समय आनंदपुर का किला छोड़ दिया था, सिरसा नदी के किनारे गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार बिछड़ गया था, उनके बड़े साहिबजादे साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुझार सिंह गुरु जी के साथ चमकौर साहिब आ गए, गुरू गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह अपनी दादी के साथ सरहिंद आ गए। इसके बाद गुरु जी ने चमकौर साहिब की जंग की, जिसमें उनके बड़े साहिबजादे शहीद हो गए, छोटे साहिबजादों को सरहिंद के नवाब ने नीहों में चिनवा दिया था, गुरु जी की माता जी माता गुजरी जी ने ठंडा बुर्ज में अपने सावास त्याग दिए थे। अपना पूरा परिवार कौम के लिए शहीद करने के बाद गुरु जी माछीवारा साहिब, दीना, कांगड़, मुक्तसर साहिब, लखी जंगल आदि होते होए तलवंडी साहिब आए थे, जहां पर गुरु जी ने दम लिया, जिसके कारण इस जगह का नाम दमदमा साहिब पड़ा। इसी जगह गुरु गोबिंद सिंह जी सवा साल से अधिक रहे थे। यहीं पर गुरु जी ने बादूक की नोक से सिंहों का सिक्खी सिदक परख्या था, यहां के चौधरी डल्ला को अमृत की दात बक्शी थी। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी इसी पावन जगह पर भाई मनी सिंह से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र बीड़ लिखवाई थी।
बठिंडा पंजाब का एक बहुत ही पुराना शहर है जो मालवा इलाके में स्थित है। बठिंडा के ही जंगलों में कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह जी ने चुमक्का नामन ताकतों को ललकारा था और उन से लडे थे। बठिंडा का आजादी की लडाई में भी महत्वपूर्ण योगदान था। इस में एक खास किला है 'किला मुबारक'।
बठिंडा नौर्थ भारत की सबसे बडी अनाज के बजारों में से है और बठिंडा के आस पास के इलाके अंगूर की खेती में बढ रहे हैं।
भठिंडा बड़ा रेल जंकशन भी है। यहां से भारत के बड़े शहर के लिए रेल चलती है।
ये माना जाता है कि राओ भट्टी ने बठिंडा शहर को लखी जंगल में तीसरी सदी में स्थापित किया था। फिर इस शहर को बरारों नें हडप लिया था। बाल राओ भट्टी नें फिर इसे हासिल किया और तब इसका नाम बठिंडा पड़ा (उन्हीं के नाम पर)। यह राजा जयपाल की राजधानी भी रही है। पहले घज़नी के महमूद नें इसका किला छीन लिया। फिर मुहमद घोरी नें हमला किया और बठिंडा का किला छीन लिया। फिर प्रिथवी राज चौहान नें १३ महीनों के बाद तगडी लडाई के पश्चात इसे फिर से जीता। रजिया सुलतान, भारत की पहली महिला शासक बठिंडा में कैद की गई थी। उसे अलतुनिया की कोशिशों द्वारा वहाँ से छुडा लिया गया। रजिया और अलतुनिया की शादी हुई लेकिन वे कैठल के पास चोरों द्वारा मारे गये।
कुछ सालों बाद, रूप चन्द नाम के सिख्ख पंजाब के इतिहास में आये। रूप चंद जी के लडके फूल नें लंगर की प्रथा चलाई। किला बनवाया। यह ईट का बना सबसे पुराना और ऊंचा स्मारक है। इस किले का निर्माण लगभग 1800 साल पहले करवाया था। इसी किले में पहली महिला शासिका रजिया सुलतान को 1239 ईसवीं में कैद कर लिया गया था। रजिया सुलतान को उसके गर्वनर अल्तूनिया ने कैद किया था। दसवें सिख गुरू, गुरू गोविन्द सिंह इस किले में 1705 के जून माह में आए थे और इस जगह की सलामती और खुशहाली के लिए प्रार्थना की। गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में गुरद्वारा साहिब भी बना हुआ है।
धन्यवाद।