# सांझी माता की आरती
# अक्टूबर त्योहारों के महीने में आप सब का स्वागत है।
नवरात्रि के बारे में सब जानते है, 9 नवरात्रि, दसवां दशहरे। 20 दिनों के बाद आ जाती है दीपावली।
जब मैं स्कूल में थी, आठवी कक्षा में, हमारे एक मैडम थे , करमजीत, वह बताया करते थे कि उनके गांव में सांझी माता की पूजा होती है, नवरात्रि में, दशहरे के दिन सांझी माता की मूर्ति को जल में परवाह कर देते है। तब से मन में यह था कि सांझी माता की पूजा को देखना है। यह अवसर बहुत समय बाद लगभग 16 वर्ष बाद।
ससुराल गुज्जरवाल लुधियाना में सामने घर सांझी माता की आरती में जाने का सौभाग्य मिला। मन को एक अदूरी इच्छा पूरी हो गई।
थोड़ा जान लेते है, सांझी माता के बारे में।
सांझी माता की पूजा राजस्थान, गुजरात,हरियाणा और पंजाब के कुछ क्षेत्रों में की जाती है। पंजाब में लुधियाना जिले में इसे बहुत उतशाह से मनाया जाता है।
सांझी माता को गोबर या पीली मिट्टी की मदद से दीवार पर उकेरा जाता है। उनके आसपास तमाम तरह के सूरज, चंदा, तारे, बरोडा और काणा कद्दू बनाए जाते हैं, इसके अलावा देवी के मुखौटे, हाथ और पैर बनाए जाते हैं, जिन्हें गोबर की आकृति पर चिपका दिया जाता है। रंगों से मां का श्रंगार किया जाता है। चमकीले कागजों की मदद से पूरी दीवार को एकदम सुंदर रूप दिया जाता है।
नवरात्रि के पूरे नौ दिन सांझी माता की शाम को पूजा आरती की जाती है। प्रसाद भी बांटा जाता है।
दशहरे वाले दिन सांझी को गांव के तालाब में विसर्जन किया जाता है। बड़ी महिलाओं के मार्गदर्शन में कन्याएं इन रीति-रिवाजों को पूरा करती जाती हैं। कुंआरी कन्याओं द्वारा माता पूजन की इस विधि के जरिए उनकी रक्षा के साथ अच्छा वर मिलने की कामना भी होती है।
पहले इस सांझी पूजन के लिए गांव की सैकड़ों महिलाएं एकत्रित होकर देर शाम से अर्धरात्रि तक गीत गाकर पूजा करती थीं, जिससे आपस में भाईचारे को बढ़ावा मिलता था।
प्राचीन परंपरा के अनुसार इस सांझी प्रतिमा का भोग लगे प्रसाद का सेवन करने से कई प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। सांझी माता के नाम पर ही वैष्णोदेवी में स्थित एक पड़ाव का नाम 'सांझी छत' पड़ा है।
आप भी कभी जरूर शामिल हो, सांझी माता की आरती में।
सांझी माता की आरती इस प्रकार है
आरता के फूल चमेली की डॉल्ही,
नो नो न्योरते दुर्गा माई के
सोल्हा कनागत पितरां के
जाग सांझी जाग तेरै माथे लाग्या भाग
पीली पीली पट्टियां, सदा सुहाग ..
धन्यवाद