कल एक बेहद दुःखद घटना घटित हुई NIM यानी नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेंनियरिंग, उत्तरकाशी के 25 ट्रेनीज के साथ साथ 9 इंस्ट्रक्टर एवलांच के चपेट में आ गये। ये हादसा तब हुआ जब NIM का AMC यानी एडवांस माउंटेंनियरिंग कोर्स बैच सीरियल नंबर 172 अपने DKD यानी द्रौपदी का डांडा पर्वत जिसकी ऊँचाई 5771 मीटर है पर समिट कर के वापस लौट रहे थे।अभी तक 10 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है बाकि की खोज का काम भारतीय वायुसेना और SDRF की टीम मदद से जारी है।
अनुभवी पर्वतारोही की माने तो DKD 5500 मीटर के ऊपर के पर्वतों में चढ़ने के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है। एवलांच आने की घटना के घटित होने के चांस इस पर्वत पर न के बराबर हैं और आज तक ऐसी घटना कभी सुनाई भी नहीं दी। NIM के इतिहास में इतनी बड़ी दुर्घटना पहली बार हुई है। कुछ साल पहले मैंने एक घटना न्यूज़ चैनल पर देखी थी जिसमें NIM की एक ट्रेनी क्रिवास में घुस गयी थी और उसको निकालने का काम रात भर चला।
क्रिवास में गिरने जैसी घटना तो होती रहती है लेकिन इतनी बड़ी घटना पहली बार हुई है। माउंटेन कोर्स एडवेंचर कोर्स की कैटेगरी में आते हैं मतलब साफ है जिसके आगे एडवेंचर लग गया वहाँ आपका सामना मौत से कभी भी हो सकता है।
हम अक्सर सुनते हैं पर्वतारोही एवेरेस्ट, लोहत्शे, मकालू आदि पर सफलतापूर्वक फतेह कर के आ गये। सुनने में और समिट के ऊपर फोटो देखने में ये सब बहुत आसान लगता है, लेकिन है नहीं। ये एक आग का दरिया है और डूबके पार जाना है। मौत कभी भी आ सकती है।
अभी कुछ दिन पहले ही नेपाल के मनासालु पर्वत पर जो भयंकर एवलांच आया था,उसमें बहुत से लोग मारे गये वीडियो नीचे है। बलजीत कौर और अरिजीत डे भी उसमें फंस गये थे, भगवान ने दोनों को बचा लिया। मौत को बेहद करीब से देखा दोनों ने।
कारण
इस बार पहाड़ों में मौसम बहुत ही जायदा ख़राब रहा। सितम्बर का महीना पर्वतारोहण के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। इस महीने मौसम बहुत साफ रहता है और बर्फबारी की घटना बेहद ही कम होती है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। सितम्बर 8 से लेकर अक्टूबर 4 तक मौसम कभी भी साफ रहा ही नहीं। खास कर उत्तरकाशी जिले के हिमालय में। 4 सितम्बर से 20 सितम्बर तक मैं भी उत्तरकाशी में सतोपंथ एक्सपीडिशन में था। इस बार बहुत बर्फबारी हुई और हमको भी सतोपंथ के कैंप 1 से रात में अपनी जान बचा कर भागना पड़ा।
सितम्बर के महीने में ज्यादा फ्रेश बर्फ पड़ने से एवलांच के खतरे काफी बड़ जाते हैं। पुरानी बर्फ हार्ड होती है जिसमें एवलांच का खतरा बहुत कम होता है पुरानी बर्फ के ऊपर अगर 8,10 फीट नयी बर्फ गिर जाती है तो थोड़ा सा मूवमेंट होने पर पहाड़ में बड़े एवलांच आने का खतरा बड़ जाता है। जैसा इस बार हुआ। सितम्बर और अक्टूबर में हुई भयंकर बर्फबारी ने इस बार DKD में एवलांच तूफान ला दिया। सविता कंसवाल जिन्होंने 16 दिन के अंदर एवेरेस्ट और मकालू कर के वर्ड रिकॉर्ड बनाया था उनको भी मौत के घाट उतार दिया।
ये काम इतना आसान नहीं है respect mountaineer and trekker