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सभी मित्रो को नमस्कार।
आज से मैं बुंदेलखंड के एक प्रतापी राजा महाराज छत्रशाल की नगरी छतरपुर म. प्र. और उसके नजीदक 20 km दूरी पर स्थित महाराजा छत्रसाल की प्रारंभिक राजधानी मऊ सानिया पर विस्तृत जानकारी आपसे सांझा करना प्रारंभ कर रहा हूं। जो दो से तीन भागों में पूरी होगी ।
तो सर्व प्रथम शुरू करते है महाराजा छत्रशाल के जीवन की कुछ विशेष घटनाओं से जिनके साथ साथ हम इनसे जुड़े स्थानों पर भी प्रकाश डालेंगे जो कि अब पर्यटक स्थल बन चुके है।
"इत जमुना उत नर्मदा,
इत चंबल उत टोंस।
छत्रसाल से लरन की ,
रही न काहू होस"।।
उक्त लाइन जो एक कहावत के रूप में सम्पूर्ण बुंदेलखंड में कही जाती है, महाराजा छत्रसाल की गौरव गाथा से हमें परिचित करवाती है। महाराजा छत्रसाल का जन्म 04.05.1649 को टीकमगढ़ जिले की तहसील लिधौरा के ककरकचनार गांव के निकट मोर की पहाड़िया में हुआ था। जन्म के साथ ही इन्हें तलवारों ,और तोपो की आवाजों से सामना करना पड़ा। और मात्र 5 वर्ष की आयु में युद्ध शिक्षा हेतु अपने मामा साहब सिंह दधरे के पास दिलवारा भेज दिया गया। फिर माता पिता की मृत्यु उपरांत ये बड़े भाई अंगद बुंदेला के साथ देवगढ़ चले गए। तब तक लगभग सम्पूर्ण बुंदेलखंड मुगलों की शरण मे जा चुका था। उसके पश्चात है अपने पिता के मित्र जय सिंह के पास पहुंच कर सेना में भर्ती हुए और आधुनिक सैन्य शिक्षा का प्रशिक्षण लेने लगे। उस समय राजा जयसिंह दिल्ली सल्तनत के लिए काम करते थे।जब औरंगजेब ने उन्हें दक्षिण विजय का कार्य सौंपा तब छत्रसाल को अपना पराक्रम दिखाने का पहला अवसर मिला । सन 1665 में बीजापुर के युद्ध मे इन्होंने अपनी असाधारण प्रतिभा दिखाई तथा देवगढ़ के गौंड राजा को पराजित करने के लिए इन्हें अपनी जान की बाजी तक लगानी पड़ी। उस युद्ध मे यदि इनके घोड़े भले भाई ने जान न बचाई होती तो ये शायद उनका आखरी युद्ध होता। इसीलिये मऊ साहनिया में महाराजा छत्रसाल की समाधि के साथ उनके घोड़े भले भाई की भी समाधि बनाई गई है। परन्तु इन्हें मुगलों से उचित मान न मिलने के कारण ये महाराष्ट्र की ओर चले गए। तथा सन 1670 में शिवाजी से मिलकर वापिस लौटे और अपने क्षेत्र को मुगलों से मुक्त करने हेतु प्रयास शुरू कर दिए। जब पडौसी राज्य ओरछा, दतिया आदि से कोई मदद नही मिली तो स्वयं ही 5 घुड़सवार और 25 पैदल सैनिक तैयार कर के सेना बना ली और सन 1671 में औरंगजेब के विरुद्ध बीड़ा उठाया। औरंगजेब ने लगभग 30000 सैनिकों को इनके पीछे लगाया परन्तु फिर भी वो खाली हाथ ही रहा। छत्रसाल ने छापामार युद्ध कर उसके सरदारों को बंदी बनाने लगे । जिससे उनकी शक्ति बढ़ती चली गयी । छत्रसाल ने शाहगढ़, रहली, खिलमासा, रसगढी, धामोनी, कंझिया, रामगढ़ गढ़ा कोटा आदि जीत लिए और बुंदेलखंड से मुगलों का एकछत्र शासन समाप्त कर दिया तथा एक विशाल एवम शक्तिशाली सेना बनाई ।,,,,,
Date - 12.08.2020
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महाराजा छत्रसाल की नगरी छतरपुर - भाग 2
महाराजा छत्रसाल को वासिया युद्ध के बाद लोग महाराजा की मान्यता से जानने लगे थे। इन्होंने बाद में कालिंजर का किला भी जीता। और मांधाता को वहां का किलेदार घोषित किया। सन 1678 में इन्होंने पन्ना में अपनी राजधानी स्थापित की व योगिराज प्राणनाथ के निर्देशन में महाराज का राज्य अभिषेक किया गया। और इसके बाद लगभग पूरे बुंदेलखंड में महाराज छत्रसाल का एकछत्र राज्य हो गया।
छत्रसाल के शौर्य और पराक्रम से आहत होकर मुग़ल सरदार तहवर ख़ाँ, अनवर ख़ाँ, सहरूदीन,हमीद बुन्देलखंड से दिल्ली का रुख़ कर चुके थे। बहलोद ख़ाँ छत्रसाल के साथ लड़ाई में मारा गया था। मुराद ख़ाँ, दलेह ख़ाँ, सैयद अफगन जैसे सिपहसलार बुन्देला वीरों से पराजित होकर भाग गये थे। छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ आजीवन क्षत्रिय एकता के संदेश देते रहे। उनके द्वारा दिये गये उपदेश 'कुलजम स्वरूप' में एकत्र किये गये। पन्ना में प्राणनाथ का समाधि स्थल है जो अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को रत्नगर्भा होने का वरदान दिया था। किंवदन्ती है कि जहाँ तक छत्रसाल बुन्देला के घोड़े की टापों के पदचाप बनी वह धरा धनधान्य, रत्न संपन्न हो गयी।
छत्रसाल महाराज ने शिवजी के इस सपने को साकार कर दिया-
करो देस के राज छतारे
हम तुम तें कबहूं नहीं न्यारे।
दौर देस मुगलन को मारो
दपटि दिली के दल संहारो।
तुम हो महावीर मरदाने
करि हो भूमि भोग हम जाने।
जो इतही तुमको हम राखें
तो सब सुयस हमारे भाषें।,,,,,,,,
,,,,,,क्रमशः
महाराजा छत्रसाल की यादगारो को सम्भाले रखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी ने छतरपुर के निकट मऊ साहनिया में एक धुबेला म्यूजियम बनवाया है। जिसमे उनसे जुड़ी यादें संग्रहित कर रखीं है। इसमें सदियों पुराने बहुत ही विशेष प्रकार के दर्पण भी देखने को मिलते है । जिनमे पतला आदमी मोटा, मोटा आदमी पतला , लंबा आदमी बोना और बोना व्यक्ति लंबा दिखता है ये दर्पण बच्चो के लिए बड़े आकर्षण का केंद्र है।,,,, इस बार की यात्रा में कोविद के कारण संग्रहालय बन्द था इसलिए अंदर की तस्वीरें उपलब्ध नही हो पाई।,,,
Date -12.08.2020
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कल मैंने महाराजा छत्रसाल के मुगलों के खिलाफ संघर्ष और बुंदेलखंड विजय पर सूक्ष्म प्रकाश डाला । किस प्रकार छत्रसाल ने बुंदलेखंड को मुगलो से मुक्त कराया और अपने जीते जी हार नही मानी।
जीवन के आखरी समय मे भी छत्रसाल को आक्रमणकारियों से जूझना पड़ा। सन 1729 में सम्राट मोहम्मद शाह के शासन काल मे प्रयागराज के सूबेदार मंगस ने महाराजा छत्रसाल पर आक्रमण कर दिया। तथा दतिया आदि के शासकों ने मुगलो के खिलाफ सहयोग देने से मना कर दिया । तब महाराजा छत्रसाल ने महाराष्ट्र के बाजीराव पेशवा को संदेश भेजा :-
जो गति मई गजेंद्र की, सो गति पहुंची आय।
बाजी जात बुन्देल की राखो बाजी राव।।
संदेश मिलते ही पेशवा बाजीराव सेना ले कर छत्रसाल की सहायता के लिए सैकड़ो km की दूरी तय करके तुरंत पहुंच गए। और दोनों ने मिलकर मंगस को पराजित कर दिया। फिर बाजीराव कुछ समय यहीं रहे और उन्होंने महाराजा छत्रसाल की पुत्री मस्तानी से विवाह कर लिया, जो बाजीराव की दूसरी पत्नी बनी।
इस घटना पर बॉलीवुड में एक प्रसिद्ध फ़िल्म रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण द्वारा बनाई गई है जिसका नाम है - " बाजीराव मस्तानी"
मऊ साहनिया में राजकुमारी मस्तानी का एक अलग महल भी था जिसे मस्तानी महल के नाम से जाना जाता है जो अब थोड़ा जर्जर होता जा रहा है।
मृत्यु के पूर्व ही छत्रसाल ने महोबा और आसपास का क्षेत्र पेशवा बाजीराव को सौंप दिया था।
महाराज छत्रसाल शिवजी के उपासक थे और प्रतिदिन मऊ साहनिया में तालाब किनारे स्थित शिव मंदिर जाते थे जो उनकी समाधि के निकट ही है। मऊ साहनिया के एक बृद्ध ग्रामीण व्यक्ति ने ही मुझे यात्रा के द्वारान बताया कि बृद्धावस्था में एक दिन महाराज ने स्वयं ही जल समाधि ले ली थी एवम अपने वस्त्र आदि तालाब के किनारे ही छोड़ दिये थे। बाद में मंदिर के पास ही बाजीराव पेशवा ने महाराजा छत्रसाल की विशाल समाधि बनवाई । साथी उनके प्रिय घोड़े भले भी की भी समाधि बनाई गई है।
मऊ साहनिया की धरती महाराजा छत्रसाल के अद्भुत शौर्य और पराक्रम की निशानी है। जहां जाने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे आज भी महाराज के प्राण यहाँ की हवाओ में समाए हो।
मऊ साहनिया में आज भी कई ऐतिहासिक इमारतें अपने समय की गौरवशाली इतिहास का बखान करती है।
इनमें बादल महल, महोबा द्वार, मस्तानी महल, शीतल गढ़ी, रानी कमलापति की समाधि, राजा छत्रसाल की समाधि, हृदयशाह का महल, छोटी पहाड़ी और धुबेला म्यूजियम में रखी महाराज की कुछ निशानियां प्रमुख है
महाराज के शौर्य के बारे में लिखा भी गया है -
छत्ता तेरे राज में धक धक धरती होए।
जित जित घोड़ा मुख करे उत उत फत्ते होए।।
ऐसे महान शासक को मेरा बारंबार प्रणाम,,,
Date - 13.08.202
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कैसे पहुंचें -मऊ साहनिया झांसी -खजुराहो मुख्य मार्ग पर स्थित एक छोटा सा गांव है जहां बस से पहुंचा जा सकता है।
नजदीकि रेलवे स्टेशन - छतरपुर