चंडिका धाम मे दो विग्रह स्थापित हैं जिन्हे चंडिका व अम्बिका के रूप मे जाना जाता है इनका श्री मुख गंगा की तरफ है। चंडिका धाम की सीढि़यों से सट कर हमेशा गंगा जी का जल प्रवाहित होता है। वैसे तो धाम मे हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ बनी रहती है पर यह भीड़ नवरात्र के दिनों में बढ़ जाती है। कानपुर, रायबरेली , फतेहपुर , इलाहाबाद, कौशांबी समेत प्रदेश के विभिन्न जनपदों के साथ साथ दूसरे प्रदेशों से भी भक्त मां के दर्शन पूजन के लिए आते हैं। मंदिर मे प्रति दिन तीनों पहर आरती व मां का श्रंगार होता है। प्रात: आठ बजे आरती पंडित विजय शंकर तिवारी, दोपहर में माखन, शाम को आठ बजे गोरे लाल करते हैं। बक्सर के पंडा रमाशंकर तिवारी कहते हैं मां के दरबार मे जो भी सच्चे मन से आता है उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है।
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मंदिर का इतिहास
इस सिद्धि पीठ मां चंडिका देवी धाम का पुराणों मे भी वर्णन हुआ है। पुराण के अनुसार यही पर मेधा ऋषि ने राजा सुरथ व समाधि वैश्य को मां दुर्गा के महात्म्य का वर्णन सुनाया था। जो दुर्गा सप्तशती के नाम से विख्यात है। महाभारत काल मे बलराम ने इस क्षेत्र की यात्रा की थी। यहां पर परम तपस्वी वक्र ऋषि का आश्रम था कहा जाता है इन्हीं के नाम पर इस ग्राम का नाम बक्सर पड़ा था। यहां गंगा कुछ समय के लिए उत्तरमुखी प्रवाहित होने के कारण इस स्थान को काशी की तरह पवित्र माना जाता है। जिस स्थान पर मेधा ऋषि ने राजा सूरथ को दुर्गा सप्तशती सुनाई थी उसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण के भाई बलराम ने भी माथा टेका था। वहीं पर मां चंडिका देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यहां दो प्रतिमाएं मां चंडिका व अम्बिका की स्थापित हैं।
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मंदिर पहुंचने का मार्ग
उन्नाव होकर चंडिका देवी जाने वाले भक्त रायबरेली मार्ग के लालकुआं से बक्सर होकर मां के दरबार जा सकते हैं। इसके अलावा रायबरेली के लालगंज से बक्सर मार्ग भी मंदिर तक आता जाता है। मंदिर आने जाने के लिए निजी यात्री वाहन चलते हैं। साथ ही हम राष्ट्रिय राजमार्ग में चल के फतेहपुर के आगे मलवा से भी आगे गोपालगंज से एक लिंक रोड उन्नाव लखनऊ रोड में जा के आगे गंगा जी पुल पार करके पढ़ता है।
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मंदिर के समीप अन्य घूमने की जगहों में मंदिर के कुछ ही दूरी में एक पार्क बना है जहां बैठने तथा घूमनें की यथा उचित व्यवस्था है जहां घूमने में प्राकृतिक ,मनोहारी दृश्य और साथ ही साथ मन को शांति, एकाग्रता मिलती है।
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