महाराणा जय सिंह ने खुद 1685 में ढेबर झील या जयसमंद झील का निर्माण करवाया था। 36 वर्ग मील के क्षेत्र को कवर करते हुई यह झील तब तक एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील बनी रही जब तक कि 1902 में अंग्रेजों ने मिस्र में असवान बांध का गठन नहीं किया था। पानी की कमी की वजह से जय सिंह के शासनकाल के समय इस झील का निर्माण हुआ था। अपनी पिता (जिन्होंने राजसमंद झील का निर्माण किया था) के नक्शेकदम पर चलते हुए महाराणा ने गोमती नदी पर एक विशाल तटबंध बनाने का निर्णय लिया, यह डेम 36.6 मीटर ऊँचा है। इस झील का नाम उन्होंने अपने खुद के नाम पर रखा और इसे ‘विजय का महासागर’ या जयसमंद कहा जाने लगा। बता दें कि 2 जून 1691 को बाँध के उद्घाटन समारोह के दौरान उन्होंने अपने वजन बराबर सोना वितरित किया था।
जयसमंद झील 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली गोविंद बल्लभ पंत सागर के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है। यह झील जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य (Jaisamand Wildlife Sanctuary) से घिरी हुई है जो कई तरह के दुर्लभ जानवरों और प्रवासी पक्षियों का आवास स्थान है। उदयपुर की रानी के ग्रीष्मकालीन महल इस झील के आकर्षण में चार चाँद लगाने का कार्य करते है। बता दें कि इस झील के बांध पर छह सेनेटाफ और शिव को समर्पित एक मंदिर है। यह मंदिर इस बात को बताता है कि मेवाड़ के लोग दैवीय शक्ति के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्ध थे।
कई स्थानीय लोग इस झील को धेबर झील (Dhebar Lake) के नाम से भी जानते हैं। जयसमंद झील उदयपुर शहर के सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है जो स्वच्छ और सुंदर होने के साथ ही प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के सामान है। जो भी इंसान शहर की उथल-पुथल से दूर शांति में समय बिताना चाहता है उसके लिए इस झील की यात्रा करना बेहद यादगार साबित हो सकता है