कुम्भलगढ़ दुर्ग- Kumbhalgarh Fort के इस महान दुर्ग को बनाने में 15 वर्षों का समय लगा. राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित इस किले को अजेयगढ़ उपनाम से जाना जाता था. क्योंकि इसकी प्रहरी मोटी दीवार को चाइना वाल की बाद संसार की सबसे दूसरी बड़ी दीवार kumbhalgarh wall माना जाता हैं. अरावली की घाटियों में अवस्थित कुम्भलगढ़ श्री महाराणा प्रताप जीकी जन्म स्थली रहा हैं. चलिए कुम्भलगढ़ के इतिहास से आपको अगवत करवाते हैं.
कुम्भलगढ़ दुर्ग का इतिहास – Kumbhalgarh fort history
कुम्भलगढ़ का दुर्भेद्य किला राजसमंद जिले में सादड़ी गाँव के पास अरावली पर्वतमाला के एक उतुंग शिखर पर अवस्थित हैं. मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित प्राचीन दुर्ग के अवशेषों पर 1448 ई में श्री महाराणा कुम्भा ने इस दुर्ग की नीव रखी.
जो प्रसिद्ध वास्तुशिल्प मंडन की देखरेख में 1458 ई में बनकर तैयार हुआ. वीर विनोद के अनुसार इसकी चोटी समुद्रतल से 3568 फीट और नीचे की नाल से ७०० फीट ऊँची हैं.
बीहड़ वन से आवृत कुम्भलगढ़ दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ राजपरिवार का प्रश्रय स्थल रहा हैं. कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में दुर्ग के समीपवर्ती पर्वत श्रंखलाओं के श्वेत, नील, हेमकूट, निषाद, हिमवत, गंधमादन इत्यादि नाम मिलते हैं. वीर विनोद में कहा गया है कि चित्तौड़ के बाद कुम्भलगढ़ दूसरे नंबर पर आता हैं.
अबुल फजल ने कुम्भलगढ़ की उंचाई के बारे में लिखा हैं कि यह इतनी बुलंदी पर बना हुआ हैं कि नीचे से ऊपर देखने पर सिर की पगड़ी गिर जाती हैं. कुम्भलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा हैं. महाराणा प्रतापका जन्म उदयसिंह का राज्याभिषेक और महाराणा कुम्भा की हत्या का साक्षी यह किला मालवा और गुजरात के शासकों की आँख का किरकिरा रहा.
इस किले के चारो ओर सुद्रढ़ प्राचीर हैं, जो पहाडियों की ऊँचाई से मिला दी गई हैं. प्राचीरों की चौड़ाई सात मीटर हैं. इस किले में प्रवेश द्वार के अतिरिक्त कहीं से भी घुसना संभव नहीं हैं. प्राचीर की दीवारे चिकनी और सपाट हैं. और जगह जगह पर बने बुर्ज इसे सुद्रढ़ता प्रदान करते हैं.
कुम्भलगढ़ के भीतर ऊँचाई पर एक लघु दुर्ग हैं. जिसे कटारगढ़ कहा जाता हैं. यह गढ़ सात विशाल दरवाजों और सुद्रढ़ दीवार से सुरक्षित हैं. कटारगढ़ में कुम्भा महल, सबसे ऊपर सादगीपूर्ण हैं. किले के भीतर कुम्भस्वामी का मंदिर, बादल महल, देवी का प्राचीन मंदिर, झाली रानी का महल आदि प्रसिद्ध इमारतें हैं.
हल्दी घाटी युद्ध से पूर्व महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ में ही रहकर युद्ध सम्बन्धी तैयारियां की थी. तथा युद्ध के बाद कुम्भलगढ़ को ही अपना निवास स्थान बनाया था.
इस किले की गिनती राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े जिले में होती है, जोकि राजस्थान के उदयपुर शहर से 64 किलोमीटर दूर राजसमंद जिले में पश्चिमी अरावली की पहाड़ियों पर मौजूद है।
इस किले की ऊंचाई समुद्र तल से तकरीबन 1914 मीटर है और टोटल 36 किलोमीटर लंबा कुंभलगढ़ का किला है।
कुंभलगढ़ किले की दीवार 38 किलोमीटर तक फैली हुई है और इसकी चौड़ाई इतनी है कि एक साथ 8 घोड़े जा सकते हैं।
टोटल 7 दरवाजे इस किले में उपलब्ध हैं, साथ ही इसमें बहुत सारे मंदिर, पार्क और महल भी हैं, जो कुंभलगढ़ किले को बहुत ही आकर्षित बनाता है।
यहां पर मंदिरों की संख्या 360 से भी अधिक है जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण मंदिर भगवान शंकर का है जहां पर बहुत ही बड़ा शिवलिंग स्थापित है साथ ही यहां पर जैन मंदिर भी मौजूद है।
कुंभलगढ़ किले में जैन और हिंदू मंदिरों की संख्या काफी ज्यादा है।
वर्तमान के समय में कुंभलगढ़ किला पर्यटको के के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने के नाते हर साल लाखों देसी और विदेशी सैलानी यहां पर कुंभलगढ़ किला घूमने के लिए आते हैं।