डलहौजी
हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का प्रसिद्ध हिल स्टेशन है डलहौजी| इस खूबसूरत शहर को ब्रिटिश राज में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी के नाम पर बसाया गया था| ब्रिटिश राज में लाहौर के अंग्रेजी अधिकारी सैर करने के लिए डलहौजी जाते थे| डलहौजी अमृतसर और लाहौर से नजदीकी हिल स्टेशन था| डलहौजी कुल 15 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है| डलहौजी पांच पहाड़ियों के ऊपर बसा हुआ है| डलहौजी की समुद्र तल से ऊंचाई 1525 मीटर से 2378 मीटर तक है कयोंकि यह शहर काफी क्षेत्र में फैला है| डलहौजी में आपको ब्रिटिश राज में बनी हुई ईमारतें चर्च आदि देखने के लिए मिल जाऐगी| डलहौजी से आपको चंबा घाटी के खूबसूरत दृश्य दिखाई देते हैं| मैं डलहौजी पांच छह बार गया हूँ| जब मैं अमृतसर के पास तरनतारन में डाक्टरी की पढ़ाई करता था उस समय दोस्तों के साथ और बाद में अपनी फैमिली के साथ भी | डलहौजी में देखने के लिए काफी कुछ है| डलहौजी में गांधी चौक और सुभाष चौक के नाम पर दो चौक है | शहर की बहुत सारी जगहें इनके आसपास ही है|
पंचपूला अथवा पांच पुल - यह खूबसूरत जगह डलहौजी के जनरल पोस्ट आफिस से तीन किलोमीटर दूर है| यहाँ पर ऊंचे पहाड़ों से बहती हुई पानी की एक धारा आती है | पंचपूला में शहीदे आजम सरदार भगत सिंह के चाचा जी स्वतंत्रता सेनानी अजीत सिंह की समाधि बनी हुई है| उन्होंने भारत की आज़ादी के संघर्ष में अपना योगदान दिया है| पंचपूला में उनकी याद में समाधि समारक बना हुआ है जो इस महान स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि है| आप यहाँ पर इस महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार अजीत सिंह को नमन कर सकते हो| यह एक बहुत ही शांत जगह है| मैं जब भी डलहौजी गया हूँ यहाँ पर जरुर जाता हूँ|
सुभाष बावली - नेता जी सुभाष चंद्र बोस का भी डलहौजी से काफी गहरा नाता रहा है| नेता जी 1937 ईसवीं में डलहौजी में 7 महीने ठहरे थे| डलहौजी में नेता जी लाहौर वासी डाक्टर एन. आर. धर्मवीर के बंगले में ठहरे थे| अंग्रेजों की जेल से स्वास्थ्य संबंधी कारणों से नेता जी डलहौजी आए थे| डलहौजी में एक मनमोहक जलाशय बावली नेता जी का प्रिय स्थल रहा है| इस बावली का जल भी नेता जी पिया करते थे| आज इस जगह को सुभाष बावली के नाम से जाना जाता है | यह जगह भी डलहौजी में देखने लायक है|
डलहौजी के गिरजाघर
डलहौजी में कुल चार चर्च है | सुभाष चौक में सेंट फ्रांसिस चर्च है| जब हम सुभाष चौक घूमने गए थे तब इस खूबसूरत चर्च को देखने गए थे| यह चर्च देखने में बहुत आकर्षिक है| इसकी ईमारत बहुत खूबसूरत लगती है| सुभाष चौक में ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस का एक बुत लगा हुआ है| इस बुत के सामने ही एक पहाड़ी पर उड़ते हुए बादलों ने खूबसूरत दृश्य बना दिया था| हम काफी समय तक इस खूबसूरत नजारे को देखते रहे|
तिब्बतीयन हैंडीक्राफ्ट सेंटर
1950 ईसवीं में तिब्बत से आए हुए रिफियूजी यहाँ पर आकर बस गए थे| यह जगह गांधी चौक से कुछ दूरी पर खजियार जाने वाले रास्ते पर है| यहाँ आपको तिब्बत का बना हुआ सामान मिल जाऐगा| इस जगह पर आप शौपिंग कर सकते हो|
कालाटोप - डलहौजी से कुछ दूर कालाटोप वाईलड लाईफ सेंचुरी है | यह जगह भालुओं को देखने के लिए मशहूर है| यह सेंचुरी 20 किमी में फैली हुई है| डलहौजी से लकड़ मंडी होकर थोड़ी दूर ही यह सेंचुरी है| इस सेंचुरी में आपको हिरन, भालू और बहुत सारे पशु पंछी देखने के लिए मिलेंगे| इस सेंचुरी के अंदर एक फारेस्ट रैसट हाऊस बना हुआ है जो जंगल के बिलकुल अंदर बना हुआ है| आप यहाँ रहने के लिए वैबसाइट से बुकिंग करवा सकते हो|
डलहौजी में खाने के लिए शेर ए पंजाब रैसटोरेंट गांधी चौक में है जो काफी मशहूर है| डलहौजी में आप चाईनीज, पंजाबी, साऊथ इंडियन खाने का लुत्फ़ उठा सकते हो| रहने के लिए डलहौजी में आपको हर बजट के होटल और गैसट हाऊस मिल जाऐगे|
कैसे पहुंचे- डलहौजी आप बस या टैक्सी से पहुंच सकते हो| डलहौजी के लिए पठानकोट रेलवे स्टेशन सबसे नजदीक है| पठानकोट से डलहौजी की दूरी 85 किमी है| पठानकोट से आप 3 घंटे के अंदर डलहौजी पहुंच सकते हो|