बनारस भ्रमण

Tripoto
16th May 2022
Day 1

बनारस को खुबसूरती से सभी वाकिब हैं। हम भी वाकिब है क्योंकि ये हमारी बनारस की दूसरी यात्रा थी । लेकिन इस यात्रा की एक खास बात यह थी कि अब हमे बनारस के बारे में पिछली यात्रा की तुलना में कुछ जानकारियां थी। इस बार भी हमारी यात्रा में हमारे साथ हमारे एक प्रिय मित्र थे । हम दोनो का साथ ऐसा की घूमने में हमें थकान नहीं महसूस होती थी। हमारी यह यात्रा एक दिन की थी जिसमे हमे अधिक से अधिक बनारस का आनद लेना था। बनारस में हमारे मित्र के एक जानने वाले थे जो हमारी इस अचानक बनी योजना में शामिल होने जा रहे थे।

इस बार भी हमे बनारस में भीड़ का सामना करना था क्योंकि हमारी योजना ऐसे समय विशेष के लिए बनी थी क्योंकि हिंदू धर्म में भगवान विश्वनाथ के दर्शन ने सोमवार का एक विशेष महत्व है साथ ही साथ गंगा स्नान के लिए अमावस्या और पूर्णिमा का विशेष महत्व है लेकिन हमारी इस योजना में जिस दिन का चुनाव हमने किया वो था सोमवार और साथ ही साथ बुद्ध पूर्णिमा।

तो चलो प्रारंभ करते है इस यात्रा का एक वर्णन जिसका प्रारंभ हुआ नवाबों की धरती लखनऊ से और लखनऊ और बनारस के लिए गाने भी लिखे गए हैं जैसे की

है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव। और सुब्ह-ए-बनारस है रुख़-ए-यार का परतव।।
-वाहिद प्रेमी

अवध की शाम देख बनारस की सुबह देखने पहुंच गए।

बनारस रेलवे स्टेशन पर उतरते ही बाबा विश्वनाथ की धरती का एक अलग ही अनुभव मिलता है । सूर्य देवता के उदय होने में समय था और हम दोनो लोगों को सहयोग देने के लिए बनारस में हमारी राह देख रहे थे ' राज ' जो वहीं पर आश्रम में रहते है सुबह के लगभग तीन ही अभी बज रहे थे और गदोलिया तक हम लोग एक ई रिक्शा से पहुंचे वहां से घाट की तरफ बढ़ने पर बनारस की गलियों का दृश्य हृदय के कोने कोने को स्पर्श कर रहा था लाल पत्थर से निर्मित सड़के और सड़क के किनारे लगे रोशनदानों में दिप्तमान पीली रोशनी से मार्ग की घटा अनुपम बन गई थी और सबसे खास परिवर्तन इस यात्रा और पिछली यात्रा के बीच हमने जो देखा वह यह था कि यहां अब हर एक बंद दुकान में एक जैसी स्तिथि थी सभी दुकानों के ऊपर एक लाल रंग प्रचार बोर्ड था जो बनारस की यात्रा के प्रचार हेतु साइन बोर्ड द्वारा ही लगवाए गए थे। यह मार्ग था दशाश्वमेघ घाट का।जो बनारस के प्रमुख घाटों में से एक है जिस पर स्नान की सबसे ज्यादा मान्यता है

गदौलिया से दशश्वमेघ घाट मार्ग

Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय

दशाश्वमेघ घाट पर सूर्योदय से पहले अच्छी खासी भीड़ थी क्योंकि आज का दिन था बुद्ध पूर्णिमा का और पूर्णिमा पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है और ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना और पावन माना जाता है सुबह की वो ठंडी हवा में एक मन को छू जाने वाला अनुभव था और यहीं पर स्नान के बाद हमारी मुलाकात हुई हमारे तीसरे साथी से।और अब बस हमे उनके साथ ही चलना था जैसे जैसे वो घुमाएं हमे घूमना था 😀।

दशश्वमेघ घाट पर मित्र रामशुभम शर्मा के साथ

Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय

अब हम 2 से 3 हो चुके थे और शुरू होने जा रही थी हमारी यात्रा सही मायनों में। काशी की गलियों की खूबसूरती और सुहाने मौसम के बीच।और चल दिए हम अपने नए साथी के आश्रम की तरफ जहां पर हमने अपने फोन और बैग रख दिए और अब सिर्फ हमे दर्शन करना था। सूर्योदय होने में अभी देर थी क्योंकि अभी लगभग 4 ही बज रहे थे। और हमारे साथी के आश्रम के होने के कारण उन्हें ऐसे सभी मार्ग पता थे जहां से जल्दी और आसानी से बाबा विश्वनाथ के दर्शन मिल सकते थे। लेकिन प्रारंभ में हम जहां पहुंचे वहां बहुत लंबी लाइन थी जिस पर मित्र द्वारा दूसरे मार्ग से चलने का सुझाव दिया गया। उसका मानना था की आज सोमवार का दिन होने के कारण इतनी भीड़ है और 2 की सरकारी छुट्टी होने के कारण है और अगर हम इस रास्ते गए तो लगभग 1 घंटे लग जायेंगे। फिर दूसरे रास्ते से लगभग 20 मिनट में ही हमे दर्शन मिल गए। दर्शन के बाद हम लोगों ने कॉरिडोर का भ्रमण किया। और उसके द्वारा हमे बताया गया की। हाल में ही प्रधानमंत्री के भ्रमण के दौरान उन्होंने कौन सा मार्ग इस्तेमाल किया और कहां तक हम फोन ले जा सकते है। और उसने हमे दिखाया की इस जगह पर लाकर की व्यवस्था है। और हम शाम को फिर दर्शन करने आयेंगे तब फोन ले कर आयेंगे जिससे हम प्रांगण में फोटो खींच सके लेकिन वहां मौजूद कुछ लोग जो गलती से फोन ले आए थे उनके फोन से हमने फोटो क्लिक किया जो बाद में व्हाट्सएप से शेयर कर ली

कॉरिडोर के निर्माण से प्रांगण में काफी जगह बन गई है हम सभी जानते है की बनारस कॉरिडोर माननीय प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है। हालांकि इसमें बनारस की कुछ ऐतिहासिकता भी नष्ट हुई है लेकिन भव्यता में वृद्धि भी हुई है। परिसर में स्थित ज्ञानवापी को कॉरिडोर से बाहर रखा गया है और खास बात यह है की इसी दिन ज्ञानवापी पर रिपोर्ट भी पेश हुई थी जिससे बनारस में सभी मार्ग पर एंट्री नही मिल रही थी जिससे हमे थोड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ा।

कॉरिडोर से घाट का जाने का दृश (जो अभी निर्माणाधीन है)

Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय

कॉरिडोर का मानचित्र

Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय

बाबा विश्वनाथ के दर्शन के पश्चात हम पुनः आश्रम की तरफ चल दिए और वहां से अपने फोन और रुपए आगे की यात्रा के लिए।

मित्र द्वारा हमे पैदल ही बनारस घूमने का सुझाव दिया गया की अगर पैदल ही घूमोंगे तो बनारस की गलियों को सही से आनंद ले सकते हो। हम लोग बाबा विश्वनाथ के मंदिर से लगभग 2किमी दूर स्तिथि काल भैरव मंदिर और फिर उसके द्वारा हमे बताया गया की काल भैरव को बनारस का कोतवाल कहा जाता है और आज भी कोतवाली में एक कुर्सी पर उन्ही की फोटो रख कर बनारस में उनका ही राज चलता है। इसके बाद वहां से काली माता मंदिर जो लगभग 500 मीटर था जहां दर्शन किए।

इसके अलावा कुछ अन्य मंदिरों के दर्शन करने के बाद चाय नाश्ता करके हमने सारनाथ जाने का सुझाव दिया जिस पर सभी लोग तैयार हो गए और एक रिक्शा बुक करके किराए में मोल भाव करके सारनाथ चल दिए और समय भी लगभग 8 बजे का हो चुका था

सारनाथ का मौसम बहुत मन को लुभावना था। आसमान में काले बादलों के साथ हल्की फुल्की बूंदाबांदी बीच सुबह की ठंडी हवा और शांत वातारण था। सारनाथ विरासत स्थल पर भ्रमण करने के लिए ऑनलाइन टिकट का विकल्प था। क्योंकि टिकट विंडो 9 बजे के बाद खुलती हैं। इसके पहले पहुंचने पर आपको भारतीय संस्कृति मंत्रालय की वेब साइट से टिकट खरीद सकते है जिसके लिए आपको 25 रुपए प्रति व्यक्ति की दर विरासत स्थल और संग्रहालय के लिए चुकाने थे। इस के बाद हमारा प्रवेश हुआ विरासत स्थल में

Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय
Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय

जहां पर सम्राट अशोक के काल के अवशेष प्राप्त हुए हैं अगर आप भी हमारे तरह मौसम का मजा उठा कर घूमेंगे तो इस स्थल के भ्रमण में 2.5 से 3 घंटे आसानी से लग जायेंगे ।

इस भ्रमण के बाद हम संग्रहालय पहुंचे जिस में प्रवेश के दौरान ही आपका मोबाइल फोन जमा करवा लिया जाता है यह संग्रहालय वह स्थान है जहां बौद्ध कलाकृतियों की अधिकता में अवशेषों का संकलन किया गया है। इन अवशेषों में अशोक स्तंभ व अशोक चक्र प्रमुख हैं। इसके अतरिक्त हिंदू देवी देवताओं कि क्षत विक्षत व अर्ध निर्मित कलाकृतियों का भी संकलन है। इस संग्रहालय की अधिकतम संरक्षित अवशेष 200ई से700 ई के बीच के ही हैं इनमे से कुछ अवशेष काफी पुराने भी हैं।

संग्रहालय भ्रमण के बाद हम लोग महत्मा बुद्ध की तपोस्थली की तरफ चल दिए जहां पर इन्होंने अपने सबसे पहले शिष्यों को उपदेश दिया था। यह स्थल भी लगभग 250 से 300 मीटर की दूरी पर ही है। यहां पर कई भाषाओं में उपदेशों का पत्थरों पर वर्णन सरकार द्वारा करवाया गया है।

इसके बाद 11वें जैन तीर्थांकर भगवान श्री श्रेयांशनाथ जी की जन्म स्थली का भी दर्शन किया जो को सारनाथ में ही मौजूद है।

इसके अतिरिक्त थाई भवन पद्धति में निर्मित बौद्ध मंदिर जिसका निर्माण थाईलैंड के राजा द्वारा करवाया गया है ( मौजूद व्यक्तियों के अनुसार)। फिर विश्व की सबसे बड़ी महत्मा बुद्ध की प्रतिमा का भी अवलोकन करने का हमे सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसके बाद 2 से 3 अन्य स्थल का भ्रमण भी हमारे द्वारा पैदल ही किया गया इन सभी जगहों के भ्रमण के बाद लगभग 1 बज चुका था और अब हमने बनारस वापस लौटने का निर्णय किया जिससे हम लोग बनारस पहुंच कर भोजन कर सकें क्योंकि सारनाथ में भोजन की कोई विशेष सुविधा की उपलब्धता पर हमे संसय था।

बनारस पहुंच कर एक होटल पर भोजन करने के पश्चात हमने बनारस में गंगा नदी के दूसरी तरफ बसे रामनगर का भ्रमण करने का निश्चय किया। यहां पहुंच कर हमारे मित्र द्वारा बताया गया की रामनगर के किले के गेट बाहर की लस्सी अत्यंत स्वादिष्ट बनती है जिसका स्वाद हमने भी चखा। नाश्ता करके हम लोग चल दिए रामनगर के किले के भ्रमण के लिए इस किला का निर्माण लगभग 250से300 वर्ष पूर्व हुआ है ये अब एक संग्रहालय के रूप में अब परिवर्तित हो गया है इस संग्रहालय की देख रेख राजवंश के द्वारा की जाती है। इस संग्रहालय में प्रवेश के लिए आपको टिकट लेना पड़ेगा तथा इस संग्रहालय में वास्तव में राजपरिवार की वस्तुएं संग्रहित की गई हैं जिनमे उनके द्वारा प्रयोग की गई लगभग 500 प्रकार की बंदूक, प्रारंभिक काल की मोटर कार, बग्घी, हाथी डांट की संरचनाएं तथा अन्य महत्वपूर्ण  वस्तुएं संग्रहित हैं। इसके अतरिक्त गंगा नदी के तरफ निर्मित घाट तथा शाही द्वार की नक्खासी अत्यंत मनोहर है तथा यहां से काशी का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है

रामनगर किले का शाही घाट का द्वार

Photo of बनारस भ्रमण by नवनीत पाण्डेय

किले के भ्रमण के बाद हमारा अगला भ्रमण स्थल था बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बना विश्वनाथ मंदिर। यह एक नवनिर्मित संरचना है जिसमे आप शांति वातारण में अपने मन को स्थायित्व प्रदान कर सकते हैं मंदिर की संरचना अत्यंत भव्य है तथा दो तालों में इसका निर्माण है।

बी एच यू परिसर में विश्वनाथ मंदिर के भ्रमण के बाद हम बुरी तरह से थक चुके थे और अब हमारा निर्णय था सिर्फ गंगा आरती देखने की लेकिन अभी इसमें समय होने के कारण हमने गदौलिया की बाजार घूमने का विचार बनाया और बाजार घूम कर के गदौलिया का पान और यहां की प्रसिद्ध मिठाई लौंगलता  का स्वाद लिया और बनारस की गलियों का भ्रमण किया ।

अब धीरे धीरे गंगा आरती का समय हो चुका था अभी इसमें अभी आधा घंटा से ज्यादा का समय था लेकिन थके हारे हम प्राणी अब स्थायित्व की ओर भाग रहे थे यही कारण था की हम अब दशाश्वमेघ घाट पहुंच गए आप अगर चाहे तो आरती का आनंद लेने के लिए राजेंद्र प्रसाद घाट भी जा सकते हैं । गंगा जी की भव्य आरती को देखने के लिए आप नाव का सहारा ले सकते हैं जिसके लिए आपको लगभग 100 रुपए प्रति व्यक्ति के खर्च पर देख सकते हैं इसके अतिरिक्त आप घाट की सीढ़ियों पर भी बैठ सकते हैं और आरती में शामिल हो सकते हैं इसके लिए आपको कोई खर्च नहीं करना पड़ेगा और इस प्रकार हमने भी सीढ़ियों में बैठ कर आरती में अपने मन को रमा लिया ।
आरती के बाद काशी में बने अपने नए मित्र से हम लोगों ने चलने की अनुमति ली और रात में लखनऊ की कोई ट्रेन नही होने के कारण ऑटो से हम लोग बस स्टेशन की तरफ चल दिए और इस तरह हम काशी से अपने साथ बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद ,बनारस और सारनाथ की यादें, एक नया मित्र का यादगार साथ , बनारसी जरी के घर के सदस्यों के लिए कुछ कपड़े के साथ साथ लौंगलता मिठाई के साथ थके हारे शरीर और तरोताजा दिमाक के साथ हम अगली सुबह अपने घर पहुंच गए

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