सिक्ख धर्म के पांच तख्तों में से एक तख्त है तख्त श्री दमदमा साहिब तलवंडी साबो जो पंजाब के बठिंडा से लगभग 30 किलोमीटर पर है। इस पावन जगह पर दशमेश गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी सवा साल से ज्यादा समय रहे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों के साथ युद्ध के समय आनंदपुर का किला छोड़ दिया था, सिरसा नदी के किनारे गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार बिछड़ गया था, उनके बड़े साहिबजादे साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुझार सिंह गुरु जी के साथ चमकौर साहिब आ गए, गुरू गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह अपनी दादी के साथ सरहिंद आ गए। इसके बाद गुरु जी ने चमकौर साहिब की जंग की, जिसमें उनके बड़े साहिबजादे शहीद हो गए, छोटे साहिबजादों को सरहिंद के नवाब ने नीहों में चिनवा दिया था, गुरु जी की माता जी माता गुजरी जी ने ठंडा बुर्ज में अपने सावास त्याग दिए थे। अपना पूरा परिवार कौम के लिए शहीद करने के बाद गुरु जी माछीवारा साहिब, दीना, कांगड़, मुक्तसर साहिब, लखी जंगल आदि होते होए तलवंडी साहिब आए थे, जहां पर गुरु जी ने दम लिया, जिसके कारण इस जगह का नाम दमदमा साहिब पड़ा। इसी जगह गुरु गोबिंद सिंह जी सवा साल से अधिक रहे थे। यहीं पर गुरु जी ने बादूक की नोक से सिंहों का सिक्खी सिदक परख्या था, यहां के चौधरी डल्ला को अमृत की दात बक्शी थी। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी इसी पावन जगह पर भाई मनी सिंह से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र बीड़ लिखवाई थी। शहीद बाबा दीप सिंह जी ने इस बीड़ का उतारा बाकी 4 तख्तों पर भिजवाया था।
आनंदपुर साहिब के बाद इसी जगह वैसाखी के दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सवा लाख सिंहो को अमृत की दात बक्शी थी। यहां पर वैसाखी पर बहुत भारी मेला लगता है। वैसाखी के दिन संगत दूर दूर से यहां आती है। यहां पर शहीद बाबा दीप सिंह जी का बंगा भी है।
एक गुरुद्वारा साहिब है लिखनसर, वहा पर रेत पर पंजाबी लिपि मतलब उड़ा (ੳ), अड़ा (ਅ) ...... लिखते है। माना जाता है ऐसा करने से पढ़ाई अधिक आती है।
यहां पर ओर भी गुरुद्वारा साहिब है, गुरुद्वारा मंजी साहिब पातशाही 9, गुरुद्वारा माता साहिब जी, गुरुद्वारा माता सुंदरी जी, गुरुद्वारा बाबा बीर सिंह जी, गुरुद्वारा बाबा धीर सिंह जी, गुरुद्वारा महलसर साहिब, बुर्ज बाबा दीप सिंह जी शहीद, भोरा साहिब बाबा दीप सिंह जी यहां पर शहीद बाबा दीप जी ने तपस्या की थी। इसके बिना तलवंडी साबो के पास ही चौधरी डल्ला की हवेली भी देखी जा सकती है, वहां पर भी गुरु जी के वस्त्र पड़े है।
कैसे पहुंचे :
बठिंडा जिस को भठिंडा भी कहते है, सड़क और रेल मार्ग से देश के विभिन भागों से जुड़ा हुआ है।
बठिंडा से तलवंडी साबो के लिए बस मिल जाती है, टैक्सी भी ले सकते हो।
धन्यवाद।