वैसे तो कागभुशंडी ट्रेक का प्लान मैं पिछ्ले 4 साल से बना रहा था लेकिन कभी जाना नहीं हो पाया। जुलाई में योगी सारस्वत जी से फोन पर बात हुई थी, तो योगी जी ने बताया की वो और हरजिन्दर भाई सितंबर में कागभुशंडी का प्लान कर रहे हैं। मुझसे भी योगी जी ने चलने के लिए बोला लेकिन मेरा प्लान अक्टूबर में नेपाल में कोई ट्रेक करने का था तो मैंने मना कर दिया।
अगस्त लास्ट में मेरी छोटी बेटी की तबीयत अचानक से खराब हो गई और उसको हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा और मुझे अचानक घर ( उत्तराखंड ) आना पड़ा। जैसी ही बेटी सही हुई तो मैंने योगी जी को बोल दिया मैं भी ट्रेक पर चलूंगा और मेरे साथ 3 लोग और आयेंगे।
11 ट्रेकर, 6 पोटर और 1 गाइड को लेकर टोटल हम लोग 18 लोग थे जिसमें से हम 4 लोगों को छोड़कर बाकी सभी 4 सितंबर को ही गोविंदघाट पहुंच चुके थे. मैं और पुरषोत्तम भाई 5 सितंबर को सुबह बाइक से 9 बजे गोविंदघाट पहुंच गये। वहाँ पर ही सभी से मुलाकात हुई और नाश्ता भी वहाँ पर ही हुआ योगी जी और हरजिंदर भाई के साथ तो पिछले 3 साल से ही कुछ न कुछ प्लान बन रहा था लेकिन मिलना आज ही हुआ।
नाश्ता कर के सारे लोग पुलना की ओर जाने वाली गाड़ी पकड़ कर पुलना के लिए चल दिये। मैं और पुरुषोत्तम भाई अपने 2 साथियों के लिए रुक गये जो अभी तक आये नहीं थे।
उन दोनों के आने के बाद हम 4 लोग 12:50 पर पुलना के लिए चल दिये। कुछ समय के बाद पुलना में गाड़ी से उतर कर हमने अपना ट्रेक स्टार्ट कर दिया. भूयडार तक तो ये ट्रेक फ़ूलों की घाटी या हेमकुंड वाला ही है। भूयडार से रास्ता कट जाता है. 3 बजे हम लोग भूयडार में थे जहाँ सारे लोग हमारा इंतजार कर रहे थे।
पहले तो हमारा गाइड सबको भूयडार ही रुकवाने की सोच रहा था, लेकिन हमारे आते ही सारे लोग आगे के लिए चल दिये।करीब 2 km ट्रेक करने के बाद कागभुशंडी नदी के किनारे एक थोड़ा सही सी जगह दिखी तो गाइड बोला आज यहाँ ही रुक जाते हैं। सब लोग तैयार भी हो गये थे लेकिन मैंने मना कर दिया इसके 2 कारण थे एक तो आज के दिन ज्यादा चले भी नहीं थे,जबकि और चल सकते थे। दूसरा ये की वो जगह नदी के बिल्कुल किनारे थी और पहाड़ों की बारिश का कोई भी भरोसा नहीं कुछ भी कर सकती है।
सभी लोगों के आते ही हम लोग और आगे के लिए चल दिये. कुछ और करीब 2 km चलने के बाद हम करगी पहुंच गये,जहाँ हमको टेंट लगाने की जगह भी मिल गई और नदी से दूर पानी भी।रात को हरजिंदर पाजी और योगी जी के साथ अच्छा समय गुजारा और खाना खा कर सो गये। आज का रास्ता बहुत आसान था. बड़ी बड़ी झाड़ियों से गुजरना हुआ कहीं कहीं। एक रूट मैप भी तैयार किया आज मैंने जो आप लोगों के बहुत काम आयेगा अगर उसको सही से समझ लिया आपने तो आप कहीं भी रास्ता नहीं भटकेंगे चाहे तो बिना गाइड के भी जा सकते हैं। इसमें 2 बात याद रखना है।आपको बहुत सारी नदियाँ या जल धारायें पार करनी हैं और सबको आपको बिल्कुल लास्ट में या फिर बिल्कुल ग्लेशियर की शुरुआत जहाँ से होती है यानी की snout से ही क्रॉस करनी है।
दूसरी बात ये की मैप में जहाँ भी मैंने क्रॉस (X X) लगाया है वहाँ को नहीं जाना है चाहे आपको वहाँ को कोई रास्ता भी दिखाई दे। जहाँ ➡️➡️➡️ के निशान है वहाँ को ही जाना है।
सुबह मौसम सुहाना था अभी तक इस ट्रेक की खास बात यह रही की हम लोगों को अभी तक बारिश नहीं मिली थी। सुबह नाश्ता कर के हम लोग करीब 10 बजे करगी से निकल लिए।करगी से आगे का रास्ता बड़ी बड़ी झाड़ियों से भरा हुआ था जिस के कारण ट्रेल दिख नहीं पा रही थी।
कुछ आगे चल कर हमको एक छोटी सी जल धारा भी पार करनी पडी। जैसे ही जलधारा पार करी तो सीधी खड़ी चढ़ाई थी और जिसकी मिट्टी लूज थी जिसके कारण उस पर चलते हुए पत्थर गिरने का डर था।हम 6 लोग आगे चल रहे थे, बाकी लोग पीछे पीछे चल रहे थे गाइड के साथ।हालांकि हम 6 मैं से पहले किसी ने भी ये ट्रेक किया नहीं था लेकिन बहुत सारे ट्रेक किए थे इसलिए अनुभव होने के कारण आसानी से रास्ते की पहचान कर ले रहे थे।
2 घण्टे बाद हम लोग सिमरतोली पहुँच गये।वहाँ पर हमको कुछ मैगी के पैकेट मिले। लास्ट नाइट वहाँ पर कोई कैम्पिग भी कर चुका था उसके सबूत वहाँ पर आसानी से देखे जा सकते थे। अब हम लोगों को इस बात का अंदाजा लग चुका था की हमसे आगे भी एक छोटा ग्रुप चल रहा है। हम 6 लोगों ने वहाँ पर रुक कर मूँगफली खाई और अपने बाकी साथियों का इंतजार करने लगे।करीब आधे घण्टे बाद बाकी लोग भी आ गये।
हमारे गाइड सहाब बोले अब यहाँ से राज खर्क तक रुकने की कोई जगह नहीं है तो आज हम यहाँ ही रुक जाते हैं।फिर वहाँ पर एक पोल हुआ कौन कौन यहाँ रुकना चाहता है और कौन कौन आगे जाना चाहता है।आगे जाने के पक्ष में मेरे समेत केवल 4 लोग ही थे। फिर तो कौन रूकना चाहता है ये पूछा ही नहीं गया।क्युकी बाकी बचे तो वहाँ ही रुकना चाहते थे लेकिन अगर पूछा जाता तो कुछ लोग ऐसे भी होते जो कहीं भी हाथ खड़ा नहीं करते।
लेकिन मैं आज सिर्फ 2 km का ट्रेक कर के रुकना नहीं चाहता था और वहाँ पर मेरी गाइड और उनके स्टाफ से बहस हो गई।वो तो ये चाहेंगे की जितना ज्यादा दिन का ट्रेक होगा उनके लिए अच्छा ही है, क्यूंकि हम उनको हर दिन के हिसाब से पे कर रहे थे और मैंने ये ही बात उनको बोल दी की अगर वो ज्यादा दिन में कराने की सोच रहे हैं तो ये सोच गलत है. मैंने बोला कम दिन में करा दो 1 दिन का एक्स्ट्रा ले लेना और वो भड़क गये और बोलने लगे चलो आगे. मैं तो चाहता ही था आगे जाना सिर्फ 12:30 हुआ था और अपने पास अभी भी आधा दिन बचा हुआ था.
अब एक बार हम फिर से सबको लीड करते हुए आगे चल दिये। अब थोड़ा रास्ते जंगल वाला था।जंगल को पार कर के अब बोल्डर जोन शुरू हो गया था। 1 km बोल्डर जोन में चलने के बाद साफ़ साफ़ रास्ता दिख रहा था की एक धार की ओर जा रहा है हम उस पर चढ़ गये लेकिन एक दम रिज पर जाने पर देखा आगे का पूरा रास्ता लैंडसलाईड की वजह से टूटा हुआ है करीब 1 km का रास्ता टूटा हुआ था जहाँ बिल्कुल लास्ट में नदी क्रॉस करने के लिए के लिए पुल था वो भी टूट गया था।
अब हम नीचे को आ गए अब हमको बिल्कुल नदी के किनारे किनारे चलना था और बिल्कुल लास्ट में ग्लेशियर के पास नदी क्रॉस करनी थी।50 साल के हनुमान जी भी बिल्कुल हमारे साथ साथ पूरे जोश से चल रहे थे। अब हम लोगों की असली परीक्षा शुरू हो गई थी रास्ता बिल्कुल भी नहीं था बस जैसे तैसे नदी के किनारे रास्ता बनाते हुए हम चल रहे थे।अगर पैर फिसला तो सीधे नदी में जा कर गिरे। नदी का फ्लो भी बहुत तेज था और पानी बर्फ जितना ठंडा। करीब 1 km हम लोग ऐसे ही रास्ते पर चले। नदी के बिल्कुल शुरुआत पर जहाँ पर ग्लेशियर से नदी निकल रही थी वहाँ से हमने नदी क्रॉस करने का सोचा।
अपने अपने जूते खोल कर हम लोगों ने नदी क्रॉस किया नदी का प्रवाह बहुत ही तेज था जिस कारण संतुलन बनाना मुश्किल भी हो रहा था. पानी इतना ठंडा था की पैर एकड़ गये और कुछ देर तक सुन्न हो गये। हम तो 6 लोग नदी पार कर चुके थे और बाकी लोगों से बहुत आगे थे । एक चिंता ये भी थी की क्या बाकी लोग यहाँ तक सही सलामत आ पायेंगे।क्योंकि बाकी सभी की उम्र हम 5 से तो ज्यादा थी हनुमान जी ही एक ऐसे थे जो 50 के हो कर भी हमारे साथ चल रहे थे।
नदी क्रॉस करने के बाद भी हमारी चिंताएँ खत्म नहीं हुई थी। अब हमारे सामने था एक खड़ा पहाड़ और वो पूरा का पूरा पत्थरों से पटा पड़ा था। यानी की पूरा scree जोन था।सबसे आगे मैं चल रहा था और बहुत ही सावधानी से चल रहा था, क्योंकि ऐसे जोन में सबसे आगे चलने वाले से गलती होने पर पीछे चलने वाले सभी लोगों को बहुत बढ़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।अगर एक छोटा सा भी पत्थर पैर से गिरा तो न जाने कितने पत्थरों को वो अपने साथ लेता जायेगा और पीछे से आने वाले पूरे ग्रुप को घायल कर सकता है। हम 3 लोग तो सही सलामत आ गए लेकिन हरजिंदर भाई के पैर से एक पत्थर गिर गया जो हमारे एक दूसरे भाई के पैर में जा लगा लेकिन भगवान की दया से कोई नुकसान नहीं हुआ।
हम लोग जिस भी रास्ते से जा रहे थे तो पत्थर की cairn बनाते हुए जा रहे थे ताकि हमारे साथी उनको देख कर आसानी से आगे बढ़ते जाएं।अब करीब 3 बजे हम डांग खर्क के पहाड़ पर थे,जहाँ हमको एक बकरी वाला मिला। उस जगह से हमारे पीछे का रास्ता यानी की जहाँ से हम आये पूरा दिखाई दे रहा था और हमको अपनी पूरी टीम भी दिखाई दे रही थी।लेकिन अरे ये क्या हमारी आधी टीम तो उस धार पर चड़ गई थी जहाँ से रास्ता टूटा था और हम नीचे को वापस आये थे। जबकि वापस आते हुए हमने डॉक्टर अजय जी को बताया भी था की नीचे से जाना उप्पर से रास्ता टूटा हुआ है फिर भी. हमको उनके पीछे आने वाली टीम जो गाइड के साथ चल रही थी वो भी दिखाई दे रही थी।
हमने देखा गाइड उनको नीचे से ही ला रहा है यानी की सही रास्ते से। लेकिन उस से पहले वाली टीम पहाड के ऊपर जा कर वहाँ ही अटक गई थी।हम सिटी बजा रहे थे टी शर्ट उतार कर उनको दिखाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वो लोग हमसे बहुत दूर थे हमारी आवाज उन तक पहुँच नहीं रही थी।हमारी उस टीम ने वहाँ पर अपने पूरे 1 घंटे खराब किए जब वो नीचे को आये तो हम लोग भी बकरी वाले के पास चल दिये और वहाँ के कुछ अनसुने किस्से सुने बकरी वाले से। 6 बजे हमारा पूरा ग्रुप वहाँ आ चुका था और उनके आने से पहले हमने वो पूरी जगह अपने कदमों के साथ साथ कैमरे से भी नाप दी थी। आज हमने अपने टेंट वहाँ ही लगाये।अभी भी वहाँ से राज खर्क 2 km दूर था लेकिन हम लोगों को टेंट लगाने की जगह मिल गई।
रात में ही मौसम ने करवट ले ली और बारिश चालू हो गई थी।सुबह 6 बजे भी बारिश हो रही थी।वैस घर में होते तो सोते रहते लेकिन यहाँ उठना मजबूरी था।बारिश कम हनी का नाम नहीं ले रही थी. इंतजार करते करते धीरे धीरे मौसम साफ़ होने लगा था। करीब 9 बजे हम नाश्ता कर के आगे के लिए चल दिये।रोज की तरह हम 6 लोग लीड करते हुए चल रहे थे. 50 मिनट में ही हम राज खर्क पहुँच चुके थे।
शाम को जब हम बकरी वाले से बात कर रहे थे तब उसने बताया की वो सिर्फ 2 घंटे में डांग खर्क से कागभुशंडी ताल चले जाता है। वेसे बकरी वाले फेंकते बहुत हैं। हमने आइडिया लगाया अगर ये 2 घंटे में कर सकता है तो हम ज्यादा से ज्यादा 5 घंटे में कर लेंगे।अब हमको 4,5 जलधारा से बनी एक नदी को पार करना था।
इस नदी को भी हमने बिल्कुल लास्ट से पार किया लेकिन इसको पार करने में जुते नहीं उतारने पड़े।
नदी को क्रॉस कर के हम थोड़ी देर रुक गए और हमने एक मूंगफली ब्रेक लिया करीब आधा घन्टा के बाद हमारे साथी हमको पीछे से आते दिखाई दिए तो उनको इशारा कर के हम आगे की ओर चल दिये।वो जगह पूरा बोल्डर जोन थी। कुछ ऊपर जाने पर पूरा ग्लेशियर और मोरेन जोन था मतलब पूरी जगह खतरे से भरी हुई थी। अब चडाई भी अच्छी-खासी थी।30 मिनट और चलने के बाद मौसम पूरा बदल गया।सामने पूरे बादल आ चुके थे।जैसे ही थोड़ा बादल हटे हमको थोड़ा थोड़ा मछ्छी की आकृति की तरह एक ताल दिखाई दिया जो की मछ्छी ताल था।
मौसम बहुत ज्यादा खराब हो गया था चारो ओर बादल ही बादल थे। न आगे रास्ता दिखाई दे रहा था न पीछे से आते हमारे साथी। हम लोग वहाँ ही बैठ गये कुछ समय बाद मैंने पुरुषोत्तम भाई से बोला आगे को जाने को और रास्ता ढूंढने को। कुछ समय बाद पुरुषोत्तम भाई ने अपने पास आने के लिए बोला। मैं और हनुमान जी चल दिये। जब हम पुरुषोत्तम भाई के पास पहुंचे तो कोई भी रास्ता दिख नहीं रहा था अब बारिश शुरू हो गई थी। पूरे बादल जमीन पर आ गये थे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था।थोड़ी देर मे बादल थोड़ा सा हटे तो हमको अपने लेफ्ट साइड बहुत बड़ा ग्लेशियर और सामने एक पहाड़ दिखाई दिया मछ्छी ताल के ठीक पीछे।
पुरुषोत्तम भाई ग्लेशियर की ओर चल दिया रास्ता ढूंढने। लेकिन मुझे और हनुमान जी को लगा शायद एक छोटी सी पगडण्डी सामने वाले पहाड में मछछी ताल के किनारे से होती हुई जा रही है। हमने पुरुषोत्तम भाई को आवाज लगायी और सामने वाले पहाड की ओर जाने को कहा। पुरुषोत्तम भाई ने अब अपना रुख सामने वाले पहाड की ओर कर लिया। सामने वाले पहाड पर जब पुरुषोत्तम भाई पहुँचे तो उनको लगा इस रास्ते से लोग गये हैं लेकिन वो रास्ता कभी दिख रहा था कभी नहीं. अब पुरुषोत्तम भाई उस पहाड़ की रिज के और चल दिये।एक बार फिर से बादल ही बादल आ गए अब हम पुरुषोत्तम भाई को देख नहीं पा रहे थे सिर्फ जोर जोर से चिल्ला कर बात हो रही थी।
रिज पर पहुँचने के बाद पुरुषोत्तम भाई ने हमको बुलाया लेकिन हमारे पीछे से कोई भी नहीं आ रहा था और समय भी 3 बज चुका था मुझे ये डर था बाकी लोग हम लोगों तक न पहुंच सके और कहीं पीछे ही टेंट न लगा लें।ऐसे में हमको फिर पीछे जाना होगा।मैंने पुरुषोत्तम भाई को वापस आने के लिए बोला।
जब पुरुषोत्तम भाई वापस आये तो उन्होंने बताया ऊपर टेंट लगाने की बहुत अच्छी जगह है और पानी भी है. पिछले रात वहाँ किसी ने टेंट लगाया भी था।अब हम वापस पीछे की ओर जाने लगे थोड़ा चलने पर हमारे साथ वाले कुछ लोग आते हुए दिखे हमने उनको बतया की ऊपर टेंट लगाने की जगह है और हम आज वहाँ ही रुकेंगे। फिर सभी लोग साथ में चलने लगे।कुछ समय बाद हमने अपने टेंट वहाँ लगा लिए और पीछे से हमारी पूरी टीम गाइड के साथ आ गई.
कुछ समय बाद मौसम भी खुल गया और हमको फोटोग्राफी का मौका मिल गया।
आज भी सुबह से मौसम खराब ही था।चारों तरफ कोहरा छाया हुआ था। हमेशा की तरह हम कुछ लोग आगे चल दिए।गाइड से हमने थोड़ा रास्ते के बारे में जाना।गाइड के बताए हुए रास्ते पर हम चल दिए।जहां पर हम रुके हुए थे गाइड के अनुसार हमें वहां से ऊपर की ओर जाना था।
हम आधा घंटे तक ऊपर की ओर चले।वहां जाकर हम कंफ्यूज हो गए। वहां पर होने को तो कोई रास्ता बना हुआ नहीं था लेकिन ऐसा लग रहा था एक रास्ता ऊपर ग्लेशियर की ओर जा रहा है और दूसरा रास्ता लेफ्ट की ओर बोल्डर पार करके दूसरे ग्लेशियर की ओर जा रहा है।हम वहां पर ही रुक गए और गाइड का इंतजार करने लगे।
जब गाइड आया तो उसने ऊपर की ओर चलने का इशारा किया। अब हम ऊपर की ओर चल दिए।कुछ दूर चलने के बाद आगे रास्ता बिल्कुल बंद था।आधे एक पहाड़ था जिसको क्रॉस करना असंभव था।अब मैं और कलम बिष्ट भाई लेफ्ट साइड का ग्लेशियर क्रॉस करके ऊपर दिख रहे एक पास की ओर चल दिए।बाकी लोगों को हमने नीचे ही रुके रहने का आदेश दिया।गाइड ने बताया था कि ऊपर एक दर्रा क्रॉस करना है। हमको लगा शायद यही काकुल पास है।
उस दर्रे की ओर जाते हुए हमें अनगिनत ब्रह्मकमल और कुछ फेन कमल भी दिखाई दिए।वह ऐसे लग रहे थे कि किसी जानवरों ने उनको खाया हुआ है।करीब 40 मिनट की खड़ी चढ़ाई के बाद हम दोनों उस दर्रे तक पहुंच चुके थे। जब उस दर्रे से दूसरी ओर हमने देखने की कोशिश की तो हमको सिर्फ बहुत बड़ा ग्लेशियर दिखाई दिया। जिस को पार करना संभव नहीं था। कुछ समय बाद गाइड भी वहां चुका था, और गाइड अब समझ चुका था कि हम लोग रास्ता भटक चुके हैं।तब गाइड बोला पहले यहां से ही रास्ता हुआ करता था, लेकिन अब वो रास्ता शायद बंद हो चुका है और हमको अब दूसरा रास्ता ढूंढना होगा।
तब मैंने गाइड से बोला भाई पहला ट्रेक थोड़ी कर रहे हैं जो तुम हम को उल्लू बनाने की कोशिश कर रहे हो। यहां ना पहले कोई रास्ता हुआ करता था और ना अभी है। तब गाइड बोला नहीं यहां पर पहले झंडा लगा रहता था उस झंडे को ही ढूंढना था।तब मैं बोला झंडा तो मैंने 2 दिन पहले ही नीचे देखा था।गाइड बोला कहां पर. इतने में ही पुरुषोत्तम भाई भी वहां पहुंच चुके थे।हम दोनों ने मिलकर गाइड के अच्छी क्लास ली और उसको झंडे की दिशा दिखाई।वैसे जिस दर्रे पर अभी हम खड़े थे वह हमारी यात्रा का सबसे हाईएस्ट प्वाइंट था। जिसकी ऊंचाई 5235 मीटर थी। और उस दर्रे की खोज हमने की थी।इसलिए उसका नाम मैंने अपने नाम पर रख दिया।उस दर्रे का नाम पड़ा पंकज दर्रा या उसको बंजारा पास भी बोल सकते हैं।
अब हम लोग वापस नीचे को आ गए और सभी को वापस चलने के लिए बोला।पुरुषोत्तम भाई गाइड के साथ चले गए और उन्होंने उसको वह जगह दिखाइए जहां पर झंडा लगा हुआ था. झंडे को देखकर गाइड की याददाश्त वापस आ गई। अब गाइड बोला हां मिल गया रास्ता।अब हमको झंडे से ठीक ऊपर की ओर जाना है।अभी हमारे सारे साथी पीछे ही थे। तब गाइड बोला आज यहीं रह जाते हैं। अब कल चलेंगे।पीछे से आने वाले सारे साथी भी बहुत थक चुके थे।सभी बोलने लग गए कि यहीं रहते हैं। मेरा वहां पर रुकने का बिल्कुल भी मन नहीं था। क्योंकि आज के दिन हम सिर्फ 4 किलोमीटर चले थे और अपनी मंजिल की ओर सिर्फ 1 किलोमीटर।
लेकिन सभी की ज़िद के आगे मुझे झुकना पड़ा और आज हमने 3:00 बजे ही अपना कैंप लगा लिया था। आज हमें बहुत ज्यादा बारिश मिली थी उससे थोड़ा ठंड भी लग रही थी।जल्दी-जल्दी हमारे कुक ने उनको सूप बनाकर दे दिया।
आज भी मौसम सुबह से ही बेईमान था।बारिश रुक रुक के हो रही थी।चारों तरफ बादल ही बादल छाए हुए थे।सुबह करीब 8:30 बजे हम लोग ब्रेकफास्ट करने के बाद अपना टेंट समेट के काकुल पास के लिए चल दिए।
काकुल पास जाने का रास्ता बोल्डर और ग्लेशियरों से भरा हुआ था। पहले करीब 100 मीटर का ग्लेशियर पर चलना था।उसके बाद खड़ी चढ़ाई में बोल्डर पर चलना था।मैं हनुमान जी और पुरुषोत्तम भाई आगे-आगे चल दिए। करीब 10:00 बजे हम लोग काकुल पास पर थे।
काकुल पास की हाइट करीब 4880 मीटर थी. काकुल पास के आस पास बहुत सारे ब्रह्मकमल थे। थोड़े बहुत फेन कमल भी हमको मिले।करीब आधा घंटा काकुल पास रुकने के बाद मैं और पुरुषोत्तम भाई नीचे यानी कि कागभूसंडी झील की ओर चल दिए। आधा किलोमीटर चलने के बाद हमें झील के पहले दर्शन हुए।झील बहुत ही शानदार दिखाई दे रही थी। थोड़ा हाइट से देखने पर झील का नजारा अलग नजर आ रहा था. कुछ समय बाद पूरी झील पर कोहरा आ गया. कोहरे ने झील को पूरे अपने आगोश में समेट लिया।
जैसा नजारा हम दोनों को दिखाई दिया वैसा नजारा हमारे पीछे आने वाले किसी को भी नहीं दिखाई दिया। थोड़ी देर बाद हम झील के किनारे की ओर चल दिए. झील के पास पहुंचने पर जिओ का नेटवर्क भी आ रहा था। 12:30 बजे सारे लोग झील के पास पहुंच चुके थे. कुछ लोग जिद करने लगे कि आज हम यही रुकेंगे। और हमारा गाइड तो यही चाहता था, कि हम वही रूके।मैं बिल्कुल भी आज वहां रुकने के मूड में नहीं था क्योंकि हम पहले से ही 2 दिन लेट चल रहे थे।
मैंने तो बोल दिया मुझे 4 मैगी दे दो और मैं अपना टेंट लेकर नीचे की ओर चल दूंगा।थोड़ी देर में सभी लोग चलने के लिए मान गए। झील से लेकर नीचे नदी तक का रास्ता बहुत ज्यादा खूबसूरत था।पूरे रास्ते भर में झरने थे और सुंदर सुंदर फूल लगे हुए थे। करीब 2 किलोमीटर नीचे आने के बाद धुप भी आ चुकी थी और मैं पुरुषोत्तम भाई और हनुमान जी धूप में बैठ गए। हमने अपना बैग खोल के सारे कपड़े और स्लीपिंग बैग निकालकर सुखाना शुरू कर दिया। धूप काफी तेज थी और 1 घंटे में ही हमारे सारे कपड़े और स्लीपिंग बैग सूख गए थे।
सारे लोग जब नीचे आए तो वही नदी किनारे हम लोगों ने अपना टेंट लगा लिया,और आज का स्टे हमारा वही हुआ।
आज की दिन हमने बर्मी पास बर्मी ताल और फरसवान पास क्रॉस किया और शाम 4 बजे तक विष्णुप्रयाग आ गए.