कागभूशुंडी ताल भारत में उत्तराखंड के चमोली जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में कांकुल दर्रा (4960 मीटर) के पास, 4730 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक पवित्र झील है।
ग्रंथों में जिक्र मिलता है कि लोमश ऋषि ने श्राप दिया था जिसके कारण ही काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे और उन्होंने पूरा जीवन कौवे के रूप में ही जीया। ऐसा कहा जाता है कि काकभुशुण्डि ने वाल्मीकि से भी पहले रामायण गरूड़ को इसी झील के किनारे सुनाई थी।कहा जाता है कि जब राम-मेघनाद युद्ध के दौरान भगवान नागपाश से बांध दिए गए। तब गरूड़ ने ही भगवान राम को मुक्त कराया था। जिससे गरूड़ को उनके भगवान होने पर शक हुआ। वो ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान शिव के पास भेजा और वहां से भगवान शिव ने उन्हें काकभुशुण्डि के पास भेज दिया था. तब काकभुशुण्डि ने गरूड़ को रामायण कथा सुनाई थी।
कागभुसंडी ताल का ट्रेक बहुत ही मुश्किल ट्रेक।मेरा मानना ये है, की अगर आप अपना पहला ही ट्रेक कागभुसंडी ताल कर रहे हैं,तो आपका ट्रेकिंग से भरोसा उठ जाएगा और आप दोबारा कोई ट्रेक करने का नहीं सोचेंगे।
कागभुसंडी ताल ट्रेक के 2 सीजन हैं एक मोनसून से पहले यानी मई और जून दूसरा है मोनसून के बाद यानी सितंबर और ओक्टूबर।
मई जून में जहाँ ये ट्रेक 60% ग्लेशियर में करना पड़ेगा तो सितंबर-अक्टूबर में ये ट्रेक 60% बोल्डर जोन में करना होगा। मई जून की अपेक्षा सितंबर-अक्टूबर में ये ट्रेक करना थोड़ा आसान है।
ये ट्रेक करने के 2 रास्ते हैं. पहला रास्ता गोविंदघाट से भूयडार होते हुए जाता है और दूसरा रास्ता विष्णुप्रयाग से पयाका गाँव होते हुए जाता है.बेहतर ये होगा आप गोविंदघाट से जाओ और विष्णुप्रयाग से आओ।
अगस्त से ले कर ओक्टूबर के बीच यहां बहुत प्रकार की उच्च हिमालयी वनस्पतियाँ, फुल और जडी बूटियां पायी जाती है जैसे ब्रम्हकमल, फैनकमल, हाथाजडी इत्यादी जबकि मई जून में इस ट्रेक में बहुत बड़ी मात्रा में कीड़ा जड़ी पायी जाती है।
मुख्य पर्वत
इस ट्रेक से मुख्य रूप से हाथि घोडा पर्वत, चौखंबा, नीलकंठ, कामेत और शेर गणेश पर्वत ( मेरे द्वारा दिया गया नाम ) दिखाई देते हैं।
मुख्य ताल
इस ट्रेक में आपको मछ्छी ताल, हाथि ताल और बर्हम ताल दिखाई देता है।
मुख्य दर्रे
इस ट्रेक में मुख्यतः 3 दर्रे हैं काकुल पास, ब्रह्ममी पास और फरसवान पास।