बावन इमली नाम से लगता होगा की यहां बावन पेड़ होंगे इमली के
परंतु यहां बहुत सारे पेड़ नही हैं बल्कि यहां बालीदानो का प्रतीक है बावन इमली।
कहते हैं नरसंहार किसी सूरत में नही होती, चाहे वो किसी भी जीव की हो
ऐसी ही एक घटना है जहां ज्ञानता में अज्ञानता की झलक देखने को मिली (ब्रिटिश सरकार)
बात उस साल की है जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था
जहां भारतीय सेनानियों ने अपने दम खम से उनका सामना किए
1858 की घटना मे भागीदारी निभाई जिसके फलस्वरूप स्वतंत्रता सेनानियों को 28 अप्रैल, 1858 को, ब्रिटिश सेना ने “इमली”के पेड़ पर बावन स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई जो आज एक स्वतंत्रता सेनानी स्मारक के रुप में विद्दमान है आज भी अस्तिव में है जो एक नर संहार को दिखाता है
“इमली”का पेड़ अभी भी मौजूद है, यहां के लोगो का मानना है कि नरसंहार के बाद वृक्ष का विकास बंद हो गया है।
वैसे तो यहां इतिहास धरोहर तो जो की जर्जर हो गए हैं मन्दिर भी मौजूद हैं जो की प्राचीन काल से संबंध रखती है
बवानी इमली एक छोटे से कस्बे के नजदीक (बिंदकी) खजुवा में स्थित है जोकि फतेहपुर जिला में पड़ता है