#पंजाब_की_पोस्ट
#गुरूद्वारा_कंध_साहिब_बटाला
#जिला_गुरदासपुर
नमस्कार दोस्तों पंजाब की पोस्ट में आपका सवागत हैं। आज हम दर्शन करेंगे गुरदासपुर जिले के औद्योगिक नगर बटाला के ईतिहासिक गुरुद्वारा कंध साहिब के जो गुरु नानक देव जी की शादी की यादगार हैं। दोस्तों पंजाबी में कंध (दीवार) को कहते है। बटाला शहर पहले गुरु नानक देव जी के ससुराल हैं, जहां उनकी शादी भाई मूल चंद की पुत्री माता सुलखनी जी से 1487 ईसवी में हुई थी। गुरु नानक देव जी की बारात सुलतानपुर लोधी जिला कपूरथला से बटाला शहर में आई थी। जिस जगह पर आज गुरुद्वारा कंध साहिब बना हुआ है उसी जगह पर गुरु नानक देव जी महाराज की बारात रुकी थी। उस समय यहां एक कच्ची कंध (दीवार) थी , गुरु नानक देव जी उस कच्ची कंध के पास बैठ गए, यह कच्ची दीवार गिरने वाली थी , पास बैठी हुई एक बूढ़ी औरत ने गुरु जी से कहा कि बेटा इस कच्ची कंध से थोड़ा दूर बैठो यह गिरने वाली हैं। गुरु जी ने बूढ़ी माता को कहा कि माता जी यह कच्ची कंध ( दीवार) सदियों तक नहीं गिरेगी , यह कंध हमारी शादी की यादगार बनेगी। अभी भी यह कच्ची कंध उसी तरह ही खड़ी हैं 535 साल तो गुरु नानक देव जी की शादी को हो गए हैं। इसी ईतिहासिक जगह पर आजकल गुरुद्वारा कंध साहिब बटाला बना हुआ है। आजकल इस कंध ( दीवार) को शीशे के फ्रेम में सुरक्षित रखा गया है। संगत गुरुद्वारा साहिब में इस ईतिहासिक कंध के दर्शन करके निहाल होती हैं। गुरुद्वारा कंध साहिब के साथ ही एक छोटी सी गली में एक और ईतिहासिक सथल हैं जहां गुरु नानक देव जी की पत्नी माता सुलखनी जी का घर था, उसी जगह पर एक ईतिहासिक थड़ा साहिब बना हुआ है जहां गुरु नानक देव जी की शादी हुई थी। इस सथल को गुरुद्वारा डेहरा साहिब कहते है। इसी जगह पर एक ईतिहासिक पुराना कुआँ हैं जिसमें मीठा जल निकलता है और यह कुआँ भी माता सुलखनी जी के नाम से जाना जाता है। आप बटाला शहर में इन दोनों ईतिहासिक जगहों के दर्शन कर सकते हो। आज भी हर साल सुलतानपुर लोधी से बारात के रुप में नगर कीर्तन निकलता है बटाला शहर में इस गुरुद्वारा साहिब तक आता हैं। बटाला में इस उत्सव को बाबे दा विवाह ( गुरु नानक देव जी के विवाह) के रुप में मनाया जाता हैं।
कैसे पहुंचे- बटाला पंजाब के गुरदासपुर जिले का एक प्रसिद्ध ईतिहासिक और औधोगिक नगर हैं जो अमृतसर-पठानकोट हाईवे पर अमृतसर से 45 किमी दूर है। बटाला सड़क और रेल मार्ग से अमृतसर- पठानकोट मार्ग पर आता है। आप बस और रेल से पंजाब के शहरों से बटाला पहुंच सकते हो। कभी मौका मिले तो इस ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करने जरूर आना।