भारत कई प्राकृतिक और खूबसूरत हिल स्टेशनों से घिरा हुआ है। 1800 के दशक की शुरुआत में हिल स्टेशनों ने लोकप्रियता हासिल की थी। आपको बता दें, ब्रिटिश शासकों ने भारत की गर्मी से बचने के लिए ऊंचाई पर इन पहाड़ी जगहों का निर्माण किया था।
इन हिल स्टेशनों को समर ओरिएंट्स के रूप में भी जाना जाता है। उस दौरान ब्रिटिश शासक और उनके परिवार वनस्पतियों और जीवों का आनंद लेने के लिए पहाड़ी जगहों पर जाया करते थे।
चलिए अब इन हिल स्टेशनों को बनाने की वजहें बताते हैं, साथ ही उन हिल स्टेशनों के बारे में बताते हैं जिन्हें अंग्रेजों के जमाने में बनाया गया था।
आखिर अंग्रेजों द्वारा हिल स्टेशन क्यों बनाए गए
अंग्रेज जब भारत आए उस दौरान उनके लिए किसी भी तरह के मनोरंजक स्थान नहीं थे। उन्होंने फिर, वादियों में अपनी छुट्टियां बिताने की तरकीब निकाली, और उन्होंने पहाड़ी को काटकर रास्ते बनाने शुरू करवा दिए। उन जगहों पर गेस्टहॉउस भी बनवाए गए। दार्जिलिंग, केलिंगपोंग, माउंट आबू, गुवाहटी, चेरापूंजी जैसे हिल स्टेशन इस लिस्ट में आते हैं।
जहां चाय की खेती हो सकती थी, वहां चाय के बागानों को शुरू किया गया, भारतीयों को चाय की आदत लगाकर एक नया बिजनेस प्लान बनाया गया था। चलिए अब आपको उन हिल स्टेशनों के बारे में बताते हैं।
शिमला
ब्रिटिश राज के दौरान ये जगह ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। यहां का वायसराय हाउस ग्रे बलुआ पत्थर और हल्के नीले रंग के चूना पत्थर के साथ वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण पेश करता है।
अन्य ऐतिहासिक इमारतें मॉल रोड, स्टेट लाइब्रेरी, एलर्सली, गॉर्टन महल, चर्च और मंदिर हैं, जो इस हिल स्टेशन को और भी खूबसूरत बना देती हैं।
देहरादून
देहरादून हिल स्टेशन हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसा एक खूबसूरत शहर है। यहां स्वतंत्रता के दौरान अपनी जान गंवाने वाले बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित प्रसिद्ध हेक्सागोनल क्लॉक टॉवर है, जिसकी नींव सरोजिनी नायडू ने रखी थी और और इसका उद्घाटन लाल बहादुर शास्त्री ने किया था।
पलटन बाजार और देहरादून का कनॉट प्लेस भी शानदार औपनिवेशिक युग के घरों और दुकानों की झलक पेश करते हैं।
नैनीताल
यूरोपीय बोर्डिंग स्कूलों के लिए लोकप्रिय नैनीताल भी ब्रिटिश शासन के समय ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करता था। नैनीताल का राजभवन या गवर्नर हाउस जैसी औपनिवेशिक संरचनाएं हैं।
सेंट जॉन वाइल्डरनेस चर्च नैनीताल के सबसे पुराने चर्चों में से एक है। यहां का बलरामपुर हॉउस को लकड़ी फर्श और पुराने फर्नीचर से सजाया गया है, जिसे अब होटल और रिज़ॉर्ट के रूप में उपयोग किया जाता है।
ऊटी
यहां ब्रिटिश राज के दौरान निर्मित कई विरासत संरचनाएं भी हैं। सेंट स्टीफंस चर्च नीलगिरी जिले का सबसे पुराना चर्च है जिसे गोथिक शैली में बनाया गया है। फ़र्न हिल पैलेस 50 एकड़ के हरे-भरे नजारों के बीच स्थित मैसूर के महाराजा का ग्रीष्मकालीन निवास हुआ करता था।
यहां एडम्स स्टैच्यू, स्टोनहाउस, लॉरेंस स्कूल, लॉली इंस्टीट्यूट, ब्रीक्स स्कूल, असेंबली रूम और नीलगिरी लाइब्रेरी हैं, जो इटालियन गॉथिक शैली की बनी हुई हैं।
मसूरी
यहां कई प्रमुख संरचनाओं और यूरोपीय शैली से निर्मित घर हैं, जो इन पहाड़ी जगहों की शोभा को और बढ़ा देते हैं। मसूरी का क्राइस्ट चर्च 1836 में निर्मित अपने नुकीले मेहराब, रिब्ड वाल्ट, कांच की खिड़कियों के साथ गॉथिक वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण पेश करता है।
यहां का एक और विरासत स्थल जॉर्ज एवरेस्ट हाउस है जो एक चट्टान पर स्थित है। ये जगह शांत मसूरी घाटी की झलक पेश करती है। 1832 में सर जॉर्ज एवरेस्ट द्वारा निर्मित, इस घर में केवल एक दीवार और छत है।
वैसे कोई कुछ भी कहें कि अंग्रेजों ने अपने ऐसों- आराम के लिए यह खूबसूरत प्लेस बनाये थे, पर अब इसे भारत की धरोहर के रूप में देखा जाता है। और अब इसे यात्रियों को देखने लिए रखा गया है।
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जय भारत