#सभराओं_की_लड़ाई
#पंजाब_टूरिज्म
10-फरवरी-1846
इस पोस्ट में आपको पंजाब की अमीर विरासत और ईतिहास की जानकारी देने की कोशिश करूंगा , उम्मीद करता हूँ आपको मेरी यह छोटी सी कोशिश पसंद आयेगी। शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के देहांत के बाद सिखों और अंग्रेजों के बीच एंगलों- सिख जंग हुई थी जो निम्नलिखित जगहों पर लड़ी गई थी।
1. मुदकी की लडाई
2. फिरोजशाह की लडाई
3. बददोवाल की लडाई
4. आलीवाल की लडाई
5. सभराओं की लडाई
आज की पोस्ट में सभराओं की लडाई और सिख राज्य के आखिरी जरनैल सरदार शाम सिंह अटारी वाला की बात करेंगे।
#गुरूद्वारा_शाम_सिंह_अटारी_वाला
सरदार शाम सिंह अटारी का जन्म 1790 ईसवी में भारत पाकिस्तान सरहद पर बसे हुए गांव अटारी में हुआ। 1816 ईसवी के आसपास यह शेर ए पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की फौज में भर्ती हो गए। आपने महाराजा की फौज में मुलतान, कशमीर और पेशावर की जीत में बहुत अहम भूमिका निभाई। सरदार शाम सिंह अटारी बहुत बड़े योद्धा थे, आपकी बेटी की शादी महाराजा रणजीत सिंह के पौत्र कंवर नौनिहाल सिंह से हुई थी। जब सिख मुदकी और फिरोजशाह की लडाई हार गए, तब लाहौर की रानी महारानी जिंदा ने सरदार शाम सिंह अटारी वाला को चिठ्ठी लिखकर जंग में शामिल होने के लिए कहा। सिख राज्य का यह आखिरी जरनैल सभराओं की लडाई में शहीद हुए, इनकी याद में सभराओं गांव में शानदार गुरूद्वारा बना हुआ है, मुझे शहीदों की यादगार पर जाना, माथा टेकना नमन करना बहुत अच्छा लगता हैं।
#सभराओं_की_लड़ाई
सभराओं गांव पंजाब के फिरोजपुर जिले में हरीके पतन से
8 किमी दूर सतलुज नदी के किनारे पर बसा हुआ हैं। इसी सभराओं गांव में 10 फरवरी 1846 ईसवी को सिख और अंग्रेजों के बीच फैसलाकुन युद्ध हुआ, बदकिस्मती से हमारे सिख कमांडर तेजा सिंह और लाल सिंह अंग्रेजों से मिले हुए थे और सिख फौज को गुमराह कर रहे थे, इनकी गददारी की वजह से ही सिख फौज बहुत बहादुरी से लड़ने के बावजूद भी हार गए।
10 फरवरी 1846 ईसवी के दिन युद्ध की शुरुआत गहरी धुंध से हुई, धुंध के बाद जब सूरज निकला तो तोपों और बंदूकों से आरपार की लड़ाई शुरु हो गई। सिख फौज ने आरजी पुल बनाकर सतलुज को पार किया और सभराओं के मैदान में भयंकर युद्ध शुरू हो गया। हमारे गद्दार कमांडर लाल सिंह और तेजा सिंह ने सिख फौज के सतलुज पार करने के बाद आरजी पुलों को तोड़ दिया, जिससे सिख फौज अब वापस नहीं आ सकती थी, सभराओं के मैदान में तीनों तरफ से अंग्रेजी सेना ने घेरा पा लिया, सिख वापस भी नहीं जा सकते थे, तोपों और गोलियां सिख सैनिकों ने अपने सीने पर खाकर शहीदी पाई। कहा जाता हैं पानीपत की लडाई के बाद सभराओं की लडाई में सबसे जयादा नरसंहार हुआ इस युद्ध में 8000 सिख सैनिक शहीद हुए और 2500 अंग्रेज मारे गए, शहीदों के खून से सतलुज का पानी लाल हो गया। इस युद्ध में सरदार शाम सिंह अटारी सफेद कपड़े पहन कर, सफेद दाढ़ी में, सफेद घोड़े पर सवार होकर लडने के लिए मैदान में गए थे, 56 साल की उमर में भी यह महान जरनैल पूरी बहादुरी से जंग में जूझते हुए छाती में 7 गोलियां खाकर शहीद हुए। नमन हैं ऐसे बहादुर जवानों को जो अपनी मिट्टी के लिए शहीद हुए।
अपनी मिट्टी और माँ का सम्मान करे और अपनी मात्रभूमि के लिए बनते फरज निभाते रहो।
केसै पहुंचे - यह ईतिहासिक गुरुद्वारा पंजाब के फिरोजपुर जिले में हैं और अमृतसर- बठिंडा हाईवे पर बसे कस्बे हरीके पतन से 7 किमी साईड पर हैं हाईवे से । यहां जाने के लिए आपको अपने साधन पर ही आना पड़ेगा। वैसे गांव में चलने वाले मिनी बस से भी आ सकते है। फिरोजपुर से 50 किमी दूर है सभराओं और अमृतसर से 70 और तरनतारन से 42 किमी दूर । आप जब अमृतसर या फिरोजपुर घूमने आए तो इस जगह का भी पलान बना सकते हो।