#गुरूद्वारा_बीड़_बाबा_बुढ़ा_साहिब
#जिला_तरनतारन
#पंजाब_टूरिज्म
नमस्कार दोस्तों 🙏🙏
आज हम दर्शन करेंगे , पंजाब के तरनतारन जिले के ईतिहासिक गुरूद्वारा बीड़ बाबा बुढ़ा साहिब की।
दोस्तों बाबा बुढ़ा जी का जन्म पंजाब के अमृतसर जिले के गांव कत्थूनंगल में हुआ, छोटी उमर में ही इनकी मुलाकात गुरु नानक देव जी से हुई, जब गुरु जी इनके गांव में आए थे। इनकी बातें सुनकर गुरु नानक देव जी ने कहा यह बालक अपनी उमर से जयादा बढ़ी उमर की बातें करता है जैसे कोई घर का बजुर्ग हो, बाद में गुरु जी ने बाबा जी को लंबी उमर का आशीर्वाद दिया, तब से आपका नाम बाबा बुढ़ा जी प्रसिद्ध हो गया। आप 125 साल की जीवन यात्रा के बाद अमृतसर जिले के रमदास कस्बे में जयोति जयोत समाए। आपने अपने जीवन काल में सात सिख गुरुओं के दर्शन किए, पहले गुरु नानक देव जी , दूसरे गुरू अंगद देव जी के, तीसरे गुरु अमरदास जी , चौथे गुरु रामदास जी , पांचवें गुरु अर्जुन देव जी, छठें गुरु हरिगोबिन्द जी और नौवें गुरु तेग बहादुर जी के। आप सिख धर्म के उच्च कोटी के महान सेवक, भगत, गुरसिख और तपस्वी थे। बाबा बुढ़ा जी श्री दरबार साहिब अमृतसर के पहले हैड़ ग्रंथी थे, आपने ही हरिमंदिर साहिब में गुरु अर्जुन देव जी के समय में गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश किया था। आपने ही दूसरे गुरू अंगद देव जी से लेकर छठें गुरू हरिगोबिन्द जी तक गुरु साहिब को गुरुगद्दी का तिलक लगाया था।
#बीड़_बाबा_बुढ़ा_जी_का_ईतिहास
जिला तरनतारन के इस ईलाके में झबाल नाम का कस्बा हैं, वहां का चौधरी था लंगाह, उसने यह जगह तीसरे गुरु अमरदास जी को भेंट की थी जो गुरु जी ने बाबा बुढ़ा जी को दे दी थी। बाबा बुढ़ा जी यहां पर ही निवास करते थे। पंजाबी में बीड़ का मतलब होता हैं - छोटा जंगल, जहां बहुत सारे वृक्ष और हरियाली होती हैं। यह बीड़ बाबा बुढ़ा जी की थी। जहां उनके पशु चरते थे। पांचवें गुरू अर्जुन देव जी की पत्नी माता गंगा जी के घर कोई औलाद नहीं थी, उन्हें पता था बाबा बुढ़ा जी महात्मा हैं तो वह अपने घर से खुद आटा पीस कर गेहूँ और छोलों के आटे को मिक्स करके प्रशादे तैयार कर के, ऊपर कच्चा पयाज रख कर साथ में दूध रिड़क कर लस्सी बना कर , पैदल चलकर बाबा बुढ़ा जी के पास पहुंचे। बाबा बुढ़ा जी प्रशादे छक कर प्रसंन हो गए और उन्होंने कच्चे पयाज को अपने हाथ से तोड़कर कहा ,, माता जी आपके घर एक ऐसा प्रतापी पुत्र पैदा होगा जो मुगलों को ऐसे ही तोड़ेगा जैसे मैंने पयाज को तोड़ा हैं। बाबा बुढ़ा जी के आशीर्वाद से माता गंगा जी और गुरु अर्जुन देव जी के घर छठें गुरु हरिगोबिन्द जी का जन्म 1595 ईसवीं में जिला अमृतसर के गांव गुरु की वडाली में हुआ। आज भी पंजाब में बहुत सारी संगत बच्चे की प्राप्ति के लिए घर से प्रशादे, कच्चे पयाज और लस्सी लेकर बाबा बुढ़ा जी के दर पर अरदास के लिए जाती हैं। मैं भी गया था, मुझे भी पुत्री की प्राप्ति हुई हैं, मैं दुबारा भी यहां बाबा बुढ़ा जी का शुकराना करने जायूगा। आपको यहां पर मिससे प्रशादे साथ में कच्चे पयाज का प्रशाद मिलेगा। गुरुद्वारे में छोटा सा सरोवर भी बना हुआ है, जहां बहुत सुंदर मछलियां भी तैरती हैं और लोग सनान भी करते हैं।
कैसे पहुंचे- गुरुद्वारा बीड़ बाबा बुढ़ा जी अमृतसर- खेमकरण सड़क पर अमृतसर से 20 किमी, तरनतारन से 18 किमी और मेरे घर से 120 किमी दूर हैं। यहां पर लंगर और रहने के लिए उचित प्रबंध हैं। जब भी आप अमृतसर आए तो यहां भी जरूर दर्शन करने आईए।
धन्यवाद