#गुरुद्वारा_परिवार_विछौड़ा_साहिब
#जिला_रोपड़
नमस्कार दोस्तों 🙏🙏
पंजाब की पोस्ट में आपका सवागत हैं, आज हम दसवें पातशाह सरबंसदानी गुरु गोबिन्द सिंह से संबंधित एक ईतिहासिक गुरुद्वारे परिवार विछौड़ा साहिब के दर्शन और ईतिहास की बात करेंगे। बात दिसंबर 1704 ईसवीं की होगी , गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज मुगलों और औरंगजेब की नजरों को अच्छे नहीं लगते थे कयोंकि गुरु जी जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए एक शक्तिशाली सैना का निर्माण कर लिया था, सिख धर्म की सथापना करके कयोंकि सिखों ने औरंगजेब के चैलंज का दलेरी से सामना करना शुरू कर दिया था, जिसकी अगवाई खुद गुरु जी कर रहे थे। आनंदपुर साहिब की धरती दिल्ली के तख्त के फरमान नहीं मानती थी, कयोंकि गुरु जी जुलम करने और जुल्म सहने दोनों के खिलाफ थे। मई 1704 ईसवीं में लाहौर, सरहिंद, दिल्ली से मिलकर मुगल सैना और कुछ पहाड़ी राजा की सैना ने इकट्ठा होकर आनंदपुर साहिब घेर लिया, यह घेरा छह महीने मई 1704 ईसवीं से दिसंबर 1704 ईसवीं तक रहा, तब तक मुगल सैना भी थक चुकी थी और आनंदपुर साहिब में भी किले में खाने पीने का सामान कम हो रहा था। मुगलों ने कुरान की कसम खाकर गुरु जी को परिवार और सिखों को आनंदपुर साहिब छोड़कर जाने की फरियाद की और कहा आपको कुछ भी कहा नहीं जाऐगा। सिखों ने भी गुरु जी को चले जाने के कहा, गुरु जी को मुगलों की बात पर यकीन नहीं था, फिर भी सिखों के कहने पर परिवार और सिखों के साथ आनंदपुर साहिब दिसंबर 1704 ईसवीं को छोड़ दिया, अभी छह सात किलोमीटर तक ही गए होगे मुगल सैना ने पीछे से हमला कर दिया। गुरु जी परिवार और सिखों के साथ रोपड़ की ओर बढ़ रहे थे, सिख सैनिक मुगल सेना के साथ लड़ते हुए ही आगे चल रहे थे। जहां आजकल गुरुद्वारा परिवार विछौड़ा बना हुआ है वहां पास ही सिरसा नदी बहती हैं जिसमें उस समय बाढ़ आई हुई थी, इस जगह पर गुरु जी ने कुछ समय आराम किया। जब गुरु जी अपने परिवार और सिखों के साथ बाढ़ से उफनती हुई सिरसा नदी पार करने लगे तब गुरु जी का परिवार तीन हिस्सों में बंट गया, गुरु जी अपने दो बड़े बेटों अजीत सिंह, जुझार सिंह और कुछ सिखों के साथ रोपड़ होते हुए चमकौर साहिब पहुंचे जहां उन्होंने सवा लाख से एक लड़ाऊ वाली बात को कर दिखाया जब 40 सिखों ने दस लाख मुगल सेना से लोहा लिया, चमकौर साहिब में ही गुरु जी के बड़े साहिबजादे शहीद हुए।
दूसरे हिस्से में गुरु जी पत्नी और कुछ माताएं भाई मनी सिंह के साथ दिल्ली पहुंच गई।
तीसरे हिस्से में गुरु जी की माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादे को गुरु घर का रसोइया गंगू अपने घर गांव खेड़ी ले गया, जिसने धोखा देते हुए ईनाम के लालच में आकर माता जी और छोटे साहिबजादे को मोरिंडा थाने में खबर देकर गिरफ्तार करवा दिया, जो बाद में सरहिंद में नीवों में चिन कर शहीद हुए। गुरु जी का सारा परिवार धर्म और देश के लिए शहीद हो गया इसीलिए उन्हें सरबंसदानी कहा जाता है, जिस जगह गुरु जी का परिवार बिछड़ा था वहां आजकल गुरुद्वारा बना हुआ है। शत शत नमन हैं ऐसे संत सिपाही गुरु जी को , आज भी जब कभी इस जगह दर्शन करने जाता हूँ तो आखें नम हो जाती हैं जहां गुरू जी का परिवार बिछ़डा था। यह जगह आनंदपुर साहिब से 26 किमी और रोपड़ से 15 किमी दूर है। आईए कभी पंजाब की धरती को घूमने जहां की धरती कुरबानियों से भरी पड़ी है। धन्यवाद