#मेरी_कच्छ_भुज_यात्रा
#भुज_सिटी_टूर
मैंने गुरुद्वारा लखपत साहिब में दर्शन करने के बाद गुरुद्वारे में मैं लुधियाना जिले के तीन पंजाबी भाईयों से मिला, जो अपनी कार में गांधीधाम वापस जा रहे थे। मैं भी उनके साथ कार से भुज आ गया। हमने रास्ते में पंजाबी में बहुत बातें कीं। आज बहुत दिनों बाद मुझे अपनी मातृभाषा पंजाबी में बोलने का अवसर मिला, जिसका मुझे भरपूर आनंद मिला। लखपत से 135 किमी की दूरी तय कर दोपहर करीब एक बजे हम भुज के जुबली चौक पर कब पहुंचे पता ही नहीं चला। फिर हम चाय के लिए जुबली चौक के पास टी पोस्ट नाम की एक चाय की दुकान पर गए, लेकिन हमने चाय की जगह चार कप कॉफी मंगवाई, भुज की झटपट कॉफी ने थकान दूर कर दी। फिर तीनों पंजाबी वीरों ने मुझे अलविदा कहा और अपनी मंजिल गांधीधाम के लिए रवाना हो गए। भुज शहर की यह मेरी दूसरी यात्रा थी, 2014 में पहली बार मैं अपने परिवार के साथ भुज घूमने आया था, आज फिर से उसी शहर की पुरानी यादें मेरे दिमाग में दौड़ रही थीं। मैं जुबली चौक से एक किलोमीटर दूर स्वामीनारायण मंदिर पहुंचा। मंदिर दोपहर 1:30 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक बंद था। मंदिर के कर्मचारियों ने मुझे बैठने के लिए कहा। मंदिर के आंगन में लगे ठंडे पानी के वाटर कूलर से पानी पीके मैंने उस कर्मचारी से कहा कि मैं चार बजे आऊंगा । तब तक मैं भुज शहर घूमने गया था, मैं पहले ही 2014 में भुज का दौरा कर चुका था इसलिए मुझे भुज शहर के बारे थोड़ा सा पता था ।भुज शहर में मैंने निम्नलिखित स्थानों को देखा।
1. हमीरसर झील
2. पराग महल
3. आईना महल
4. स्वामीनारायण मंदिर भुज
5. भुजिया डूंगर
6. भुजंग नाथ मंदिर भुज
भुज शहर का इतिहास
भुज शहर की स्थापना राव हमीर ने पंद्रहवीं शताब्दी में सांपों के राजा भुजंग नाथ के नाम पर की थी। भुजंग नाथ जी का मंदिर भुज के पूर्व में एक ऊंची पहाड़ी भुजिया पहाड़ी पर बना है। भुज एक बहुत ही खूबसूरत और ऐतिहासिक शहर कच्छ की राजधानी है भुज में कई खूबसूरत महल, मंदिर, महल आदि हैं।