#महाराजा_दलीप_सिंह_कोठी_मैमोरियल
#गांव_बसीआँ_जिला_लुधियाना
इस यात्रा लेख में हम पंजाब के आखिरी महाराजा दलीप सिंह जो शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र थे के बारे में बात करेंगे। लुधियाना जिले के गांव बसीयाँ में बनी हुई कोठी की जिसको अब महाराजा दलीप सिंह कोठी मैमोरियल कहा जाता है।
#बसीआँ_कोठी
दोस्तों आज की पोस्ट शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र और खालसा राज्य के आखिरी महाराजा दलीप सिंह के पंजाब में गुजारी आखिरी रात जो लुधियाना जिला के बसीआँ कोठी में उन्होंने गुजारी , जब अंग्रेज उन्हें लाहौर से बंदी बनाकर इंग्लैंड ले गए थे से संबंधित हैं।
#महाराजा_दलीप_सिंह
महाराजा दलीप सिंह सिख राज्य के आखिरी महाराजा थे, आप का जन्म 6 सितंबर 1838 ईसवीं में हुआ, 1839 ईसवीं में जब शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह का देहांत हुआ तब महाराजा दलीप सिंह की ऊमर महज दस महीने की थी, आपकी माता महारानी जिंद कौर एक बहादुर औरत थी। 1839 ईसवीं में शेरे पंजाब के गुजरने के बाद 1849 ईसवीं तक अंग्रेजों को पंजाब के ऊपर कबजा करने के लिए तकरीबन 10 साल लगे। 1849 ईसवीं में पंजाब के महाराजा दलीप सिंह थे , अंग्रेजों ने अपनी चालाकी से पंजाब की राजधानी लाहौर पर कब्जा कर लिया। अंग्रेजों ने बालक महाराजा दलीप सिंह को गिरफ्तार करके इंगलैंड लेकर जाने का पलान बनाया। 21 दिसंबर 1849ईसवीं को महाराजा को लाहौर से गिरफ्तार करके बसीआँ कोठी जिला लुधियाना लिजाया गया वाया फिरोजपुर, मुदकी, बाघापुराना, बधनी, लोपो, मल्ला , मानुके आदि गांवों और शहरों से होते हुए। अंग्रेजों को विदरोह का डर था इसलिए उन्होंने महाराजा दलीप सिंह को धीरे धीरे पंजाब से बाहर लेकर जाने का पलान बनाया। 21 दिसंबर 1849 ईसवीं से 31 दिसंबर 1849 ईसवीं तक दस दिनों में महाराजा को लाहौर से बसीआँ कोठी पहुंचाया गया। एक नाबालिग बालक राजा को उसी के ही राज्य में बंदी बनाकर उसके राज्य से बाहर लेकर जाने की दुखद यात्रा थी, कयोंकि उस समय महाराजा दलीप सिंह की उमर मात्र 11 साल थी। बसीआँ कोठी अंग्रेजों का एक सटोर हाऊस था, जिसे उन्होंने महाराजा के लिए रात रुकने के लिए गैसट हाऊस में तबदील किया, महाराजा के साथ महाराजा शेर सिंह की पत्नी रानी दखनो और उसके 6 साल के पुत्र कुंवर शिवदेव सिंह थे । महाराजा दलीप की माता से उनको दूर कर दिया गया, जो एक बहुत ही कमीनापन था अंग्रेजों का। महाराजा दलीप सिंह की बसीआँ कोठी में 31 दिसंबर 1849 ईसवीं में पंजाब में आखिरी रात थी, अगले दिन उसे वहां से मालेरकोटला, अमरगढ़, पटियाला होते हुए उत्तर प्रदेश के मेरठ लिजाया गया। फिर वहां से धीरे धीरे कोलकाता से समुद्री जहाज से इंग्लैंड। नाबालिग महाराजा दलीप सिंह को ईसाई धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया, चर्च की शिक्षा दी गई, किसी भी सिख को महाराजा से मिलने नहीं दिया गया। जब महाराज बढ़े हुए तो वापिस सिख धर्म में शामिल हुए अंग्रेजों ने कभी मानता नहीं थी उनके सिख बनने को , लेकिन महाराज के ऊपर उनकी माता जिंद कौर का बहुत असर था। ऐसे महाराजा के साथ अंग्रेजों ने बहुत ही कमीनापन दिखा कर उसको सिख धर्म और उसकी मिट्टी पंजाब से दूर रखा। आज यहां बसीआँ कोठी में महाराजा दलीप सिंह की याद में उस ईतिहासिक कोठी को मयूजियिम में तब्दील किया गया। महाराजा के चित्र और उनके साथ संबंधित वस्तुओं के चित्र लगाए हुए हैं। उनकी जिंदगी के बारे में लिखा गया हैं। महाराजा दलीप सिंह का शानदार बुत लगाया गया है। कोठी के आसपास शानदार बाग बगीचे लगाए गए हैं। पंजाब के ईतिहास को जानने के लिए बसीआँ कोठी बहुत ही बढिय़ा मयूजियिम हैं। यह कोठी बहुत ही खूबसूरत जगह पर बनी हुई है लोग आजकल यहाँ प्रीवैडिग शूटिंग के लिए आते हैं लेकिन बहुत कम लोग होगे जो महाराजा दलीप सिंह के ईतिहास को यहां आकर पढ़ते होगे और उनके दर्द को महसूस करते होगे।महाराजा दलीप सिंह को बलैक प्रिंस भी कहा जाता है, हालीवुड में और पंजाबी में पंजाबी गायक और अदाकार सतिंदर सरताज के रूप में महाराजा दलीप सिंह का रोल करके बलैक प्रिंस मूवी भी बनी हुई है। आईए कभी पंजाब के इस गुमनाम महाराजा दलीप सिंह को जानने के लिए बसीआँ कोठी।
बसीआँ कोठी मेरे घर से 65 किमी और लुधियाना से 50 किमी राएकोट शहर के पास है।
धन्यवाद