पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में माता पारबती का ५१ शक्ति पीठो में से ५ शक्ति पीठ मजूद है।इनमे से एक खास शक्ति पीठ है माता फुल्लौरा मंदिर जो की बीरभूम जिला के लाबपुर में पड़ता है। पुराणों के अनुसार जब शिव जी ने माता सती के निधन के लिए ताण्डवनृत्य सुरु किया था उस समय बिष्नु जी ने माता सती यानि पारबती का टुकड़ा टुकड़ा कर दिए था। वह टुकड़ा पूरा विश्व में कही स्थानो पर गिरा और पत्थर में तब्दील हो गया। जो की आज सकती आराधना का स्थान ५१ शक्तिपीठ बन गया है।फरबरी के ४ तारीख को में और मेरे दोस्त ने प्लान बनाये थे बीरभूम के बोलपुर के रास्ते हमलोग फुल्लौरा माता के मंदिर जायेंगे और माता के दर्शान करेंगे। तो इसलिए ४ तारीख को सुबह करीब ४ बाजे हमलोग निकल गए बाइक लेकर मंजिल की और। मेरे गाओ और दुर्गापुर टाउन से इस जगह की दुरी करीब ७८ किलोमीटर के आस पास होगा। उस दिन ठण्ड उतना ज्यादा नहीं था तो गाड़ी चलाने में दिक्कत नहीं हो रहा था। जब हमलोग अजय नदी के किनारे पहुचे तो सुबह करीब ६:०० बज चूका था। पहले ही बता दू ये अजय नदी बीरभूम और बर्धमान जिला के बॉर्डर के रूप में देखा जाता है इसे पार करते ही हमलोग बीरभूम जिला के ईलामबाजार में पहुँच जायेंगे। यहां से दो रास्ते निकल ता है एक दार्जीलिंग की और दूसरा बोलपुर की और। तो हमलोग बोलपुर वाले रास्ते को पाकर कर चले मंजिल की और रास्ते में जाते जाते घाना और खूबसूरत एक जंगल पड़ता है जिसकी बीच में से रास्ता है। क्या नज़ारा है वह।कुछ देर गाड़ी चलने की बाद हमलोग बोलपुर पौहच गए। यहां से फिर दो रास्ते निकलता है एक जाता है लाबपुर की और और दूसरा बोलपुर टाउन होते हुए पुर्बा बर्धमान जिला की और। हमलोग लाबपुर वाले रास्ते को पकड़ कर आगे बार गए। इस रास्ते में आगे बढ़ते हुए आपको एक और ५१ शक्ति पीठ की दरसन हो जायगा जो है कंकालीमाता का मंदिर। खैर उसके बारे में फिर किसी दिन बताऊंगा गा।खेत खलियान और छोटे छोटे गाओ को पीछे छोड़ते हुए हमलोग करीब ५ घंटे बाद आपने मंजिल की और पहुँच गए। एक बड़ा सा गेट को क्रॉस करने के बाद हमलोग मंदिर के ठीक सामने पौहच गए। मंदिर का चारो तरफ का दृशा काफी खूबसूरत और शांतिपूर्ण है। भीतर आपको माता का मंदिर के अलाबा शिब जी का दो मंदिर और पंचामुंडी का आसान देखने को मिलेगा। मंदिर के भीतर एकक बारे शिला है। मान्यता है की यह माता का नीची बलि होंठ गिरा था। मंदिर के पास एक तालाब भी है। कहा जाता है की यहां से हनुमान जी ने श्री रामचंद्र जी के लिया १०८ निल कमल ले गया था जिससे श्री राम जी को माता का आराधना करना था। यहाँ मुझे एक खास चीज काफी अच्छा लगा की यहाँ मंदिर के ठीक सामने जो प्राँगन है जहा भजन कीर्तन होता है वहा कुछ छोटा छोटा बक्शा टांगा गया है जिश्मे कबूतर वगेरा रहता है। मंदिर में आपको काफी साधु संत देखने को मिलेगा और मंदिर की चारो तरफ आपको काफी पेड़ पौधा देखने को मिलेगा।मंदिर के बारे में एक और खास बात बता दू की मंदिर काफी हैट तक टेराकोटा सके नक्काशिओ से बना हुआ है। इस टाइप के नक्काशी हमें पश्चिम बंगाल के बिष्णुपुर में देखनेको मिलता है। यह आपको पुराणों में बर्णित ५१ शक्ति पीठ बनने की पूरी प्रक्रिया मिटटी के नक्काशिओ के साथ दिखाया गया है जो की मंदिर के पूरी दीवारों में देखने को मिलेगा। यहां से आप चाहे तो मशहूर बंगाली साहित्तकार ताराशंकर बन्धोपाद्धया के जन्मस्थान के दरसन भी करके आ सकते है जो की मंदिर से नज़दीकी में ही है। मंदिर के ठीक पीछे तालाब से कुछ दुरी पर आपको हनुमान जी का भी मंदिर मिल जाएगा।
फुल्लौरा माता का मंदिर और लाबपुर आने के लिया आपको काफी सारे गाड़ी बोलपुर से मिल जाएगा। अगर आप बस से आते है तो आपको थोड़ा तकलीफ हो सकता है किउकी रास्ता काफी खराप है। ट्रैन से अगर आते है तो आपको बोलपुर के प्रान्तिक स्टेशन में उतरना पड़ेगा। यहां नज़दीकी में कोई घर वगेरा आपको नहीं देखने को मिलेगा एक दिन के यात्रा के लिया सही है। खाने पिने का इंतजाम भी आपको खुद से करना पड़ेगा।