क्या सच मे भगवान अपने भक्तों की मदद करने आते है ?

Tripoto
10th Jan 2022
Photo of क्या सच मे भगवान अपने भक्तों की मदद करने आते है ? by Pankaj Sharma

क्या सच मे भगवान अपने भक्तों की मदद करने आते है ?

बात है 2018 की हम 3 लोग चार धाम की यात्रा पर थे वैसे तो मैं पहले भी यमनोत्री गंगोत्री 2 बार कर चुका था तो मेरे लिए उत्तराखंड के ये धामों की यात्रा धार्मिक के साथ साथ हमेशा से एक पर्यटक यात्रा भी रही है क्योंकि मेरा इन यात्राओं को करने का उद्देश्य कभी भी सिर्फ धार्मिक नही रहा ।

अपनी इस चार धाम की यात्रा के आखिरी पड़ाव यानी बद्रीनाथ के दर्शन कर हम वापस अपने होटल जो कि पांडुकेश्वर में था वहाँ आ गए थे और एक तरह से हमारी ये यात्रा सफलता और सुरक्षा के साथ पूरी जो चुकी थी शाम का वक़्त का शरीर मे चार धाम की थकान थी पर फिर भी मन किया चलो पांडुकेश्वर के बाजार और गांव का एक चक्कर मार आये ।

मै और मेरा दोस्त हम दोनों होटल से निकल गए (तीसरा वही होटल में आराम करने लगा ) और पांडुकेश्वर के बाजार गांव और वहाँ के छोटे मोटे मंदिरों के दर्शन करने लगें ।

पहले मैं उन लोगो को थोड़ी जानकारी दे दूँ की पांडुकेश्वर कौन सी जगह है

पाण्डुकेश्वर उत्तराखंड के चमोली जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर स्थित एक प्रमुख स्थल है | जोशीमठ से इसकी दूरी लगभग 28 किमी है और ये बद्रीनाथ जाते वक्त रास्ते मे आता है । इस स्थान का इतिहास पाण्डवों से जुड़ा है जैसा कि इसके नाम से पता चल रहा है | ये उत्तराखंड के पंच बद्री में से एक योगध्यान बद्री का स्थान है | यहीं पर एक शिला है जिसे पाण्डव शिला के नाम से जाना जाता है |

एक धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ ये उत्तराखंड का एक ऐतिहासिक स्थल भी है | यहाँ से कत्यूरी शासकों के 4 ताम्र अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिनमें से दो ललितशूर देव, एक पदम देव तथा एक सुभिक्षराज देव का अभिलेख है | शीतकाल में बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के बाद बद्रीनाथ की चतुर्मुखी मूर्ति यहाँ लाई जाती है |

अब आपको भी मालूम लग गया होगा कि पांडुकेश्वर कौन सी जगह है खेर ऐसे ही मंदिरों को देखते देखते हम एक मंदिर के अंदर चले गए जो कि काफी पुराना लग रहा था मंदिर में भगवान विष्णु जी की मूर्ति थी और बहुत ही साधारण सी मूर्ति थी मंदिर के अंदर जा के लग रहा था जैसे यहाँ कोई शायद आता नही क्योंकि काफी देर तक अंदर रुके रहने के बाद भी कोई और वहाँ हमें आता जाता नही दिखा , बस जब हमने जाते वक्त मंदिर की घंटा बजाय तो एक 12- 14 साल का लड़का आ या जो घंटे की आवाज़ से हमारे पास आ गया और हमें शायद आश्चर्य से देख रहा था पर अब हमें देर हो रही थी तो हमने ज्यादा ध्यान नही दिया और वापस जाने लगे तभी न जाने मेरे मन मे कहाँ से एक विचार आया कि मंदिर आये है कुछ दान पेटी में डाले वैसे तो इस पूरी यात्रा में मैने शायद ही किसी मंदिर की दान पेटी में कुछ डाला हो क्योंकि मंदिर की पंडित , पूजारी , पंडो की चमकते चहरे और दमदमाती शारारिक काया को देख मुझे लगा नही की इनको मेरे दान की जरूरत है तो कभी जेब से कुछ निकालने का मन किया नही ,पर इस मंदिर से जाते वक्त न जाने क्यो अंदर से आवाज आयी कुछ दे जाओ । मैने 10 रु निकाले और वही रखी आरती की थाली में रख दिया और जैसे ही में थोड़ा सा साइड में हुआ तो मैने देखा ...

शेष अगले अंक में ।.

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