केरल की यशस्वी यात्रा के बाद मैने लदाख जाने का मन बना लिया था । मै, बेलिंडा और स्नेहा अक्सर केरल के सुहाने पलोको याद करने के साथ साथ, लदाख जाने के सपने भी सजाया करते थे । किसी चीज को अगर शिद्दत से चाहो तो पूरी क़ायनात तुमको उससे मिलाने में जुट जाती है । हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। २०१७ सितंबर के वो १० दिन मैं कैसे भूल सकती हूँ भला, जो हमने भारत के लदाख जैसे एक अलौकिक जगह पर बिताये थे । जिसकी यादे आज भी मेरे बदन पे रोमांच खड़ा कर देती है । आज मैं अपने अनुभावोको साँझा करने के साथ साथ ऐसे कुछ चुनींदा जगहोके बारे में बताऊँगी जो हमने यात्रा दरम्यान देखी और हर किसीको देखनी चाहिए। तो शुरू करे ?
हमने मेक माय ट्रिप से लेह लदाख का पैकेज बुक किया था। बेलिंडाने हम तिनोके लिए बैगपैक मँगवाये थे । उन बैगपैक के साथ हम असली सैलानी लग रहे थे । मुंबई हवाई अड्डेसे हमने लेह के लिए उड़ान भरी । काफी गर्मी थी मुंबई में। हमारे जहाज ने श्रीनगर में एक हॉल्ट लिया । मनमे खयाल आया, अरे वाह मैं कश्मीर में हूँ , पर फिर भी बाहर नही जा सकती, अफसोस ! है ना ? वैसे कश्मीर के आते ही बर्फीली घाटियाँ शुरू हो गई थी। हम जहाज के झरोखों से झाँक, उन बर्फीली पर्वतशृंखला के विहंगम दृश्योंका आनंद ले रहे थे। हमारे लिए ये पहली बार था। जिसे स्वर्ग कहते है , वह यही है क्या ? मनमे विचार आया। तकरीबन तीन घंटेकी उड़ान के बाद हम पहुँच गए भारत के सबसे ऊँचाई पे बसे हवाई अड्डेपर । हमारे चारों तरफ बड़े बड़े पर्वत थे। हवाई अड्डा काफी सादगीभरा था। जब मुंबई से निकले तब गर्मी थी और जब जहाज से बाहर उतरे तो - उफ्फ, ऐसी ठंड़ ! इसी लिये हमने उतरतेही जैकेट पहन ली।
आखिर कार आ ही गये लदाख और १० दिन का मस्तीभरा सफर शुरू ! हम तिनो ही काफी उत्साहित थे। सामान लेकर हवाई अड्डेसे बाहर आये तो एक युवक मेक माय ट्रिप की तरफ से बेलिंडा के नाम का फलक लेके खड़ा था । हम तुरंत उसके पास गए और हमारी पहचान बतायी। उसने एक गाड़ी की तरफ इशारा कर हमें उसमे बैठने के लिए कहा, हमारे साथ और भी सैलानी थे जो उस पैकेज में घूमने आये थे, वे भी हमारे साथ गाड़ी में बैठ गए। फिर वह युवक जो असल मे हमारा वाहन चालक था, हमे हमारे होटल पर ले आया। होटल लेह शहर से सटा हुआ था। होटल परिसर में ही एक सेबोसे लड़ा पेड़ हमारी अगवानी के लिए खड़ा था। उसे देखकर हमे काफी अच्छा लगा,क्योंकि हमारे यहाँ सेब के पेड़ नही होते। होटल के कर्मचारी हमे हमारे कमरे तक लेके गए और फ्रेश होकर सामायिक स्थान पर नाश्ता कर लेने को कहा। हमने हाँ में हाँ मिलाकर दरवाजा बंद कर लिया और हर्षोल्हास से पलंग पर कूदना शुरू किया । आखिर हम आ गए - येस! येस! हमारे खुशी का कोई ठिकाना नही था ।
*हेमिज, ठिकसे, शांतिस्तुपा*
पहले दिन के विश्राम के बाद दूसरे दिन हमने "ठीकसे" और "हेमिज" यह दो बौद्ध मठों को भेट दी। मठोकि असाधारण स्थापत्य कला से हम प्रभावित हुए। उसके बाद हम गए शान्तिस्तुप जहा वाकई में शांति का अनुभव मिला । यह वास्तु इतनी ऊँचाई पे है के इस जगह से लेह का पूरा शहर देखा जा सकता है। यह तीनो जगह मुख्य शहर के आसपास ही थे। अपने ही देश की तिब्बत से प्रेरित इस भिन्न संस्कृति से हमें रूबरू होने का मौका मिला। पूरे विश्व को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले बौद्ध धर्म के प्रति मन मे और भी आदर बढ़ गया । यह मठ अपने आप मे एक विश्व विद्यालय होते है। यहा बच्चे बौद्ध धर्म की शिक्षा लेते है और यही निवास भी करते है। हमारे ड्राइवर ने हमे ये भी बताया कि हर परिवार से न्यूनतम एक बच्चे को ऐसे मठोमे चलने वाले स्कुलोमे भेजा जाता है, जिससे अपने धर्म की सेवा एवम प्रचार हो। लदाख में ज्यादातर लोग बौद्ध धर्मीय है, और कुछ तो मुस्लिम। हिन्दू मंदिरे तो दिखते ही नही। इस तरह से पूरा दिन इन स्थापत्य विशेषोंको भेट देने के बाद रातको खाना खाकर हम जल्दी सो गए ।
*खारदुंगला पास*
दूसरे दिन हम जाने निकले नुब्रा वैली। वहाँ जाने का रास्ता खारदुंगला पास से ही गुजरता है। यह दुनिया के सबसे ज्यादा ऊँचाई पे बसे मोटरेबल रोड में से एक है। जब यहाँ हमारी गाड़ी रुकी, तो इतने समय में पहली बार हमें इतना सारा बर्फ जमा दिखायी दिया। हल्की हल्की हिम वर्षा भी हो रही थी वहाँ। हमने यहाँ अच्छा खासा वक्त बिताया। छोटासा हिम मानव बनाया। गरमागरम मैगी भी खायी। बर्फ में खेलते हुए खूब सारे फ़ोटो भी खिंचे और फिर निकल लिए मंजिल के ओर।
*नुब्रा वैली*
खारदुंगला से होते हुए हम नुब्रा वैली पहुँच गये जहाँ हमारे रहने की व्यवस्था टेंट में कि गई थी। कॉमन हॉल मात्र आधुनिक तरह का , लंबा चौड़ा और पक्के सिमेंट का बना था जहाँ खानपान की व्यवस्था की गयी थी। हमको आते आते शाम हो गई थी। वहाँ काफी ठंड थी। हम तिनोके लिए एक टेंट था। हमने वहाँ सामान रखा और कॉमन हॉल में जाके नाश्ता कर लिया। नाश्ते में काफी सारे व्यंजन थे, तो मजा आ गया। उसके बाद हम आस पड़ोस में घूम रहे थे। लंबी हरी घास कालीनसी जमीन पे बीछी हुई थी और चारो ओर - सुहाने पहाड़। वह जगह किसी फ़िल्मी लोकेशन से कम नही थी। इसी लिए हमने भी खूब फिल्मी पोज़ में फ़ोटो भी खिंचवाए।
टेंट के बारे में बताया जाए तो वो भी कुछ आधुनिकसा था। टेंट के आगे कुर्सियाँ, टेबल और बिन बैग्स रखकर बैठने की व्यवस्था की गयी थी। जहाँ आरामसे बैठकर हम दोस्तो के साथ वार्तालाप कर सकते है। इस तरह से टेंट की पंक्तियाँ निश्चित अंतर पर समुहोमे लगाई गई थी। टेंट के अंदर एक चौड़ा आरामदेह बेड था, मेज था और ऐसेही कुछ तत्सम फर्नीचर थे। बाथरुम की व्यवस्था भी अच्छी थी। वो शाम एक यादगार शाम थी । रात के खाने के साथ लाइव म्यूजिक की व्यवस्था थी। एक युवक बड़ी सुरीली आवाज में हिंदी फिल्मोके गाने गा रहा था। मजा आ गया।
खाने के बाद बॉनफायर का आयोजन भी किया गया था। हमारे साथ हमारे ग्रुप के और भी लोग थे। चांदनी रात में, हम शहर से दूर, पहाड़ो के बीच उस बॉनफायर के सामने कुछ अंजान लोगो के साथ बैठकर अंताक्षरी खेल रहे थे । उस रात बड़ी देर तक हम जागते रहे। उस दिन हमारे टूर मैनेजर से भी हमे लदाखी संस्कृति के बारे में बहुत कुछ जानकारी मिली। फिर सबको शुभ रात्रि कहकर उस टेंट में हम रजाई ओढ़े सुबह देर तक सोते रहे।
*दिस्किट मठ एवम हुन्डर के ठंडे रेगिस्तान*
दूसरे दिन हम तैयार होकर गाड़ी की राह देख रहे थे। हमारे साथ शैलजा मैडम और उनकी बेटी तानिया भी थी। वे देहरादून से थे और यात्रा दरमियान हमारी अच्छी खासी पहचान हो चुकी थी। एक पहाड़ी पे भगवान बुद्ध की विशालकाय मूर्ति बनी हुई थी - जो मैत्रेय बुद्धा के नामसे जानी जाती है, वह जगह है दिस्किट मठ । इस जगह हाल ही में स्टेट बैंक का ATM भी खुला है। जिसके कारण यह जगह काफी चर्चा में थी। हमने यहाँ खूब सारे फ़ोटो लिए। मूर्ति मनोभावक रंगों में ढली थी और अपने आप मे ही खास थी। इसके बाद हम नुब्रा के प्रसिद्ध रेगिस्तान के तरफ चल पड़े जो हुन्डर इलाके में पड़ता हैं। रास्ते मे हमने ATV कार भी चलायी जिसकी व्यवस्था हमारे पैकेज के अंतर्गत की गयी थी। नुब्रा वैली से श्योक नदी के किनारों पर बसे इस रेगिस्तान तक का वो रास्ता काफी सुंदर था। हमने वहा काफी समय बिताया। लेह बेरीज के फल से लदे पेड़ मैंने जिंदगी में पहली दफ़ा देखे। वहाँ से एक छोटासा जलौघ भी बह रहा था जो उस जगह को चार चांद लगा रहा था। वहाँ कुछ लोग दो कुबड़ वाले बैकट्रीयन ऊँट की सवारी कर रहे थे। कुछ देर रेत पे समय बिताने के बाद हम उस जलौघ पे बने लकड़ी के पुल को पार कर दूसरे किनारे पर गये और वहाँ के एक इकलौते छोटेसे उपहार गृह में गरमा गरम मैग्गी और मसाला चाय का आंनद लिया।
जैसे शाम ढलती गयी, हमने वापस अपने टेंट जाने का निर्णय लिया। वह हमारा नुब्रा वैली में आखरी दिन था।
*पैंगोंग लेक*
नुब्रा वैली के सुखद एवम अद्भुत अनुभव के बाद अब हम जाने वाले थे लदाख की ऐसी जगह , जहाँ जानेका हर नौजवान का सपना होता है , वह जगह जो थ्री इडियट्स फ़िल्म के बाद सुर्खियोमे आयी थी, जहाँ इस फ़िल्म का आखरी छोर फिल्माया गया था..... कोई अनुमान ? जी हाँ पैंगोंग लेक। एक ऐसी जगह जिसे केवल कल्पनाओमे ही सोचा जा सकता है। चांगला पास से होकर हम काफ़ी अंदरुनी औऱ कच्ची सडकोसे गुजरते हुए पैंगोंग लेक तक आ पहुँचे। लेक काफी बड़ा था। मानो कोई शांत सागर हो। किनारेपे जैसे सैलानियोका मेला जमा हुआ था। करीना ने फ़िल्म में जो दुल्हन का चोला परिधान किया हुआ था, ठीक वैसा चोला पहनके (जो वहाँपे किराये वे मिलती है) कुछ लड़कियाँ वैसेही पीली स्कूटर के साथ फोटो खिंचवा रही थी, तथा कुछ लोग थ्री इडियट्स मूवी के कुछ क्षणचित्रोंको अपने अंदाज में पुनर्निर्मित कर रहे थे। रास्ते के इस ओर यह आलम था तो दुसरी ओर रैंचो, थ्री इडियट्स आदी संबंधित नामोसे ठेले खुले हुए थे - वहाँ चाऊमीन, पंजाबी आदि व्यंजनोका आस्वाद लिया जा रहा था। हम थोड़ी देर वहा विश्राम हेतु रुके, नजारा काफी खूबसूरत था। अल्प विश्राम के बाद अँधकार से पहले हम जहाँ रहने की व्यवस्था की गयी थी, वहाँ आ पहुँचे।
हमारे रहने की व्यवस्था यहाँ भी टेंट में कि गयी थी जो बिल्कुल पैंगोंग लेक के सामने था। उस जगह ऐसे लगभग सेकड़ो टेंट थे। वो अनुभव अतुलनीय था। टेंट के सामने बैठकर हम उस जगह के खूबसूरती को अपने आँखोंमें भर रहे थे। नीलमणि सा चमकता पानी और उसके उस पार अतूट पर्वतोकी कतार, उसके ऊपर नीला आसमान। वही आसमान जो शहरोंमें भी दिखता है पर फिर भी यहाँ उसकी शोभा देखके ही बन रही थी। जैसे दिन ढलता गया, ठंड़ भी बढ़ती गयी, इतनी के मेरा बिस्तर से रजाई के बाहर निकलना भी मुश्किल हो गया। बड़ी हिम्मत दिखाकर मैं बेलिंडा स्नेहा के साथ खाना खाने वहाँ बने कॉमन हॉल में गयी और आने के बाद तुरंत बिस्तर के अंदर आ गयी। इस तरह वो दिन सफर में गुजर गया।
दूसरे दिन सुबह मैं बिस्तर के अंदर ही लेटी हुयी थी। बेलिंडा और स्नेहा मुझे उठाने के नाकामयाब प्रयास के बाद लेक के नजदीक टहलने निकल गयी थी। थोड़ा सूरज सर पे चढनेके बाद मैं भी बाहर निकल आयी। वे दोनों तो दिखायी नही दिए तो मैं खुद से ही घूमने लगी। टेंट से लेक तक का रास्ता पैदल दूरी पर था। अंतर ज्यादा नही था फिर भी मेरी साँसे फूल रही थी। मैंने उस सरोवर के पास जाकर उस पानी मे हाथ डालनेकी कोशिश की, पानी काफी ठंडा था। पानीसे हाथ बाहर निकालनेपर ठंड के कारण जलन सी महसूस होने लगी। मैने खुद से ही खूब सारी फोटोज ली। जब मन भर गया तो वापस टेंट के तरफ मूडी पर मेरा टेंट इनमे से कौनसा है यह पहचानने में दिक्कत हो गयी | उस मे और एक कहर यह था के चढ़ाव के कारण मै साँस नही ले पा रही थी। काफी मशक्कत के बाद मैं अपने टेंट तक पहुँच गयी, तब जाके मेरे जान में जान आयी।
उस दिन हम लोगोको जहाँ मेले सा मोहौल था वहाँ ले जाया गया । पूरा दिन हमने वहिपे गुजारा। किनारे के रेत पर शाल बिछाये मैंने थोड़ी देर वामकुक्षि भी ली। झूबी डूबी गाने पर थोड़ा नृत्यविष्कार कर उसे चित्रित भी किया। थ्री इडियट स्टाइल में स्कूटी के साथ लेक के पृष्ठ भाग में फोटो भी खिंचवाए। पूरा दिन इस तरह व्यतीत करने के बाद हम टेंट में पुनः लौट आये।
*झंस्कार नदी में रिवर राफ्टिंग*
यह अपने आप मे एक खास अनुभव था। हमे वैसे भी साहसी खेलोमे रुचि है। रिवर राफ्टिंग हमने इससे पहले कभीभी की नही थी। इस लिए रिवर राफ्टिंग जो एक विकल्प स्वरूप था हमने एक चुनौती समझके स्वीकार किया। झंस्कार और सिंधू नदी का संगम देखना भी आँखोके लिए किसी उपहार से कम ना था। उस नजारे को आँखोंमें उतारकर हम आगे बढ़े। रिवर राफ्टिंग का पैकेज खरीदा। हमे खास उसके लिए बनी पोशाख दी गयी। उस पोशाख में हम सुपर वुमेन लग रही थी। एक टेंपो में हमारे राफ्टसहित हम और हमारा मार्गदर्शक बैठकर झंस्कार के तट पर गए जहाँ और भी लोग साहसी जल क्रीड़ाओका आंनद ले रहे थे। हमारे मार्गदर्शक ने कुछ देर तक हमे प्रशिक्षण दिया और फिर राफ्ट को पानी में धकेलकर हमे उसमे बैठने कहा। हम लाइफ जैकेट के साथ हाथोंमें एक एक एक पतवार लिए राफ्ट में सवार हुए। शुरूवातिमे पानी शांत था तो हमारे मार्गदर्शक ने हमे मूलभूत प्रात्यक्षिक ज्ञान दिया। जैसे जैसे आगे बढ़ते गये, पानी और खौलता गया। चुनौतीयोको पार करते करते हम जैसे आगे बढ़ रहे थे हमारा आत्मविश्वास बढ़ रहा था। एक जगह उसने बीच मझदार राफ्ट को रुकवाकर हमे पानी मे कूदने को कहा। पानी गहरा था और पानी का रंग गेहुआँ । मै सबसे पहले कूद पड़ी। मजा आया। मुझे सहज देखकर बेलिंडा स्नेहा भी कूद पड़ी। लाइफ जैकेट के कारण हम बिना कोई दिक्कत आसानी से तैर पा रहे थे। उस दिन हम लोगोने काफी एन्जॉय किया।
*गुरु पत्थर साहिब गुरुद्वारा*
इस गुरुद्वारेको भारतीय सेना द्वारा संचालित किया जाता है। लदाख जैसे जगह पे गुरुद्वारे को देख हम चौक गए । कहा जाता है के इस जगह गुरु नानकजी का पदस्पर्श हुआ है। उसीके स्मरण एवं सन्मान हेतु इस गुरुद्वारे का निर्माण हुआ है। हमने अंदर जाकर दर्शन लिए। ध्यान किया। लंगर में खाना खाया। अपने हाथोंसे बर्तन धोये। अच्छे क्षणोंकी यादों के साथ हम वहाँसे निकलकर आगे बढ़े।
*लदाख के चुंबकीय पहाड़*
लेह कारगिल महामार्ग पर एक ऐसी जगह है जो भौगोलिक दृष्टि से एक अजूबा मानी जाती है, ऐसी जगह जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के खिलाफ काम करती है। जहाँ वाहनोको अगर किसी उतार पर बंद करके रखा जाये तो वो नीचे जाने की बजाय उपर की तरफ जाते है, उस जगह की चुम्बकीय गुणधर्मों के वजह से। हमे हमारे वाहन चालक ने यहाँ छोटासा प्रात्यक्षिक भी करके दिखाया।
*प्राणी विशेष : मारमोट*
यह एक बड़ी गिलहरी सा दिखनेवाला प्राणी, जमीन के अंदर बिल बनाके समुहोमे रहता है। पैंगोंग जाने वाले रस्तेपर एक जगह बड़ी पैमाने पर ये हिमालयन मारमोट पाए जाते है । हमे इनको देखने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ।
*हॉल ऑफ फेम*
यह एक संग्रहालय है जो भारतीय सेना की यशोगाथा बयान करता है। हम काफी नसीबवान थे जो हमे यहाँ आने का मौका मिला। सेना की विभिन्न कार्यवाहीयाँ, सैनिकोंके बलिदान का साहसपूर्ण इतिहास, देश प्रेम की चौका देने वाली कहानियाँ, सेनाद्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले भाँती भाँति के उपकरण इन सभी की विस्तृत पूर्ण जानकारी दी गयी थी वहाँ। देश भक्ति से ओत प्रोत और सैनिकोंके शहादत के आगे नत मस्तक होकर हम वहाँसे बाहर निकले। तकरीबन दो तीन घंटे संग्रहालय में आरामसे बित जाते है।
१० दिन कैसे गुजर गये, पता भी नही चला, लदाख से निकलने का समय हों चुका था। फिर से ऑफिस, ग्राहक, उनकी समस्याएं, नियंत्रकोकि डाँट, टार्गेट्स इन सबमे वापस जाने के लिए मन बिल्कुल भी तैयार नही था। खैर हम लोगोने लदाख में काफी अच्छा वक्त बिताया। हमारी सारी इच्छाये लदाख में जादुई तरीके से पूरी हो रही थी। जो जो हम करने की इच्छासे आये थे वो सब करने मिला। जो जो जगहे देखनी थी सारी देख ली। इसी लिए हमे लगा के यह जगह सचमे आम नही है, कुछ तो खास है इस जगह में जिसके कारण आज भी इस जगह की सुंदरता, पवित्रता और सादगी आज भी अखंडित है। भविष्य में चद्दर ट्रेक करने की गाँठ बांधकर हमने इस जादुई भूमि को अलविदा कहा। क्या आपको चद्दर ट्रेक के बारे में पता है? अगर नही तो इस बारे अवश्य पता कीजिये और हो सके तो अपने जीवन मे कमसे एक बार लदाख को अवश्य भेट दे। अद्भुत अनुभावोसे भरा आपने स्वयम को दिया यह अतुलनिय उपहार होगा। तो आप लदाख कब जा रहे है ?