प्रेम के कई रूप है यूँ तो, मगर ईश्वरीय प्रेम में होना किस्मत और प्रारब्ध की बात हैं।यह एक ऐसी लत है, एक ऐसा नशा है जो तमाम उम्र में इससे उम्दा तुमने नहीं किया होगा।
गुजरात के एक प्रसिद्द भ्र्म्हलीन संत व् भजनीक श्री नारायण स्वामी ने मेरी इस बात को कुछ इस तरह से अपने भजनो में गाया है, की
"जहाँ मेरे अपने सिवा कुछ नाहीं
मुझे मेरी मस्ती कहाँ लेके आयी।"
एक इंसान के यात्रा करने के पीछे कई पहलू होते है। सबसे आम की, रोज़ की एक तान भरी ज़िंदगी से कुछ पल, कहीं दूर किसी,और जगह जाना, इस उबाऊपन में नयापन भरने के लिए। कुछ के लिए यात्रा एक रोमांच जैसा है, जितना करेंगे उतनी ताज़गी भर जाएगी। और कुछ के लिए यात्रा कुछ ढूंढने जैसा है। खुद को जानना है, समझना है। स्मार्ट फ़ोन नाम की, हाथ में मिलने वाली तकनीक से,आजकल हर शख्स प्लानिंग में यकीं रखता है। भला क्यूँ ना हो, यह आपको सही मार्गदर्शन देने में मदद जो करता है। इन सारे तर्कों को समझने के बाद मेरा मानना यह पड़ता है कि, "आप किसी जगह या स्थल जाते नहीं बल्कि आपको वह जगह बुलाती है।"या यूँ मानिये की आपका उस जगह जाना तय था। जैसा की मेरा तय था, न जाने कितने समय से। "कैंची धाम"- बाबा नीब करोरी के पास "।
आप में से कईयों के साथ ऐसा हुआ होगा की जो आप चाहते है , या जिस जगह , जिस शख़्स से मिलना चाहते है। उसे जुड़ी कोई चीज़, जुड़ा कोई इंसान आपको उस जग़ह या शख़्स के नज़दीक ले जायेगा। आपको आपके आस पास कई वक़्त पहले से संकेत मिलने लगेंगे, सहसा उनकी तस्वीरें नज़र आने लगेंगी। आप सोचोगे की ऐसा आपके साथ क्यों हो रहा हैं? पर यह एक प्रकार का संकेत है, आपका उस जग़ह जाने का, या उस शख़्स से मिलने का। मैंने भी कई वर्षो पहले से ये संकेतों तो जब बटोरा तो पाया की मेरा जाना अब तय हैं। मुझे बुलाया जा रहा हैं नाकी मैं जा रही हूँ।
दिल्ली से शुरू करना आसान रहेगा। ट्रैन से यात्रा करना हो तो,दिल्ली से उतरकर काठगोदाम जाने के लिए आपको तीन गाड़िया मिलती है , जो आपके समय अनुसार आप चुन सकते हैं।शताब्दी एक्सप्रेस सुबह 6 :00 बजे को को चलती है और दोपहर 12 :00 बजे तक पहुँचा देती हैं।दूसरी है जैसलमेर काठगोदाम एक्सप्रेस रात 10:00 बजे चलकर सुबह 5 बजे पहुँचा देती है।तीसरी है उत्तराखंड संपर्क क्रांति जो शाम 4:00 बजे से चलकर रात 10:15 बजे तक पहुँचा देती हैं।
दिल्ली से बस की यात्रा अगर करनी हो तो ,कश्मीरी गेट से आपको अल्मोड़ा ,कैंची, भुवाली की लिए बसें मिल जाएँगी।
* इस यात्रा के दौरान मुझे एक अनुभव बहुत ही ख़राब हुआ जो कुछ अनमना सा था।इसे साझा करने के पीछे मेरा यही इरादा है की जिस शख़्स ने दिल्ली कभी नहीं देखा और पहली बार जा रहा है तो बोहत ही सावधानी और सचेती से जाएँ, हालाँकि इस प्रकार की घटनाये कहीं भी घट सकती है। तो दिल्ली के प्रति मेरी कोई ज़ेहनी शिकायत नहीं है। चूँकि हमारी काठगोदाम की ट्रैन रेलवे द्वारा निरस्त कर दी गई थी आखिरी समय पर तो हमने बस से जाने का निर्णय लिया। कश्मीरी गेट पहुँच कर आपको कई झुण्ड में ऑटो वाले, टैक्सी वाले मिलेंगे और अगर आपने, उनसे पूछने की गलती की तो आप वहीं फँसे समझो। हमारे साथ भी यही हुआ की हमने वहाँ खड़े ऑटो वालों से पुष्टि करने के इरादे से मदद माँगी। उन्होंने हमसे कहाँ कि, कश्मीरी गेट से कोई भी बस दिन में नहीं जाती। और हमने मान लिया। फिर वहाँ से हमें एक ऑटो वाले ने सुझाव दिया की वो हमें प्राइवेट बस बुकिंग ऑफिस ले जायेगा जहाँ से हमें, हर थोड़ी देर में बसें उपलब्ध हो जाएगी। वह ऑटो वाला हमें कश्मीरी गेट के पीछे पॉपुलर ट्रेवल्स नाम की ट्रेवल ऑफिस पर उतारा। हमने बसों की जानकारी ली तो उन्होंने कहा की बस अब सीधे रात में मिलेंगी। फिर उन्होंने हमें टैक्सी करने का सुझाव दिया। अब यहाँ आप गौर कीजियेगा की हर व्यक्ति अपने बजट के हिसाब से यात्रा करता हैं , और प्लानिंग के हिसाब से अपने बजट को बाटता हैं। हमने भी कुछ ऐसा ही सोच कर टैक्सी से जाने का विचार किया, क्यूँकि सुबह से दिल्ली पहुँचने के बाद शाम तक का इंतज़ार करना, हमने ठीक नहीं समझा। बस एक ही लक्ष्य था की जल्द से जल्द कैंची पहुँचना हैं। हमने टैक्सी के 5000 रुपये दिए , बिल बनवाया बाकायदा जिसमे दिल्ली से कैंची लिखा था। हमें उन्होंने एर्टिगा नाम की गाड़ी पेश की यह कहकर कि छोटी गाड़ी उपलब्ध नहीं हैं। कुछ ही दूर उसमें बैठकर हमें ड्राइवर ने ऑफिस की दूसरी ब्रांच के पास गाड़ी रोकी यह कहकर, कि कोई दूसरा ड्राइवर आएगा और वो हमें ले जाएगा। वहाँ हम देखते है कि, उन्होंने और दो लोगों को हमारे साथ टैक्सी में बैठाया, यह कहकर की बड़ी गाड़ी है तो जगह भी है, हमने ऐतराज़ मन में जताया पर बाहर नहीं जता सके। ड्राइवर कहीं और था,जहाँ से उसे किसी दूसरी जगह से लिया गया। इन सब के बीच हमारा दिल्ली में आधा दिन ख़त्म हो चला था। कई बार ज़्यादा समझदारी या जल्दबाज़ी में लिए आपके निर्णय आप ही को नुक्सान पहुँचा सकते है। इसका गहरा अनुभव हमें होने लगा था। और अगर आपकी यात्रा ताउम्र रखी जा सके उसके लिए आपके साथ हुए हर अनुभव और घटना अच्छी या बुरी सबका श्रेय जुड़ा होता हैं। हमारी इस अनमनी सी रोड़ यात्रा को चार चाँद हमारे ड्राइवर ने लगाए। टूँक में कहूँ तो यूँ समझिये की हम गाड़ी में बैठे और तीव्रता से बस, कैसे भी कैंची पहुँचने की प्रार्थना बाबा से कर रहे थे। या यूँ कहिये की हम जिस स्थिति में थे, उनके और निकट ही जा रहे थे। गाड़ी में बैठे थे हम धड़कने थाम कर और शरीर को दबाकर और ड्राइवर था हमारा राजा, जिसके सामने कुछ भी कह पाने की हिम्मत न जुटा पा रहे थे और ना ही आधी रात किसी और नए रोमांच को गले लगाने की हमारी क्षमता बची थी। हम जो 8 :00 बजे कैंची पहुँचने वाले अब हल्द्वानी पहुँच रहे थे रात 1:00 बजे। हम जैसे ही हल्द्वानी पहुँचे हमारे ड्राइवर ने अपने सुर बदल दिए, जिसका आभास हमें गाड़ी में ही हो चला था। ड्राइवर ने हल्द्वानी के आगे जाने से मना कर दिया। उस समय हमारी हालत "दो अकेले इक शहर में रात में आब-ओ-दाना ढूँढता है, आशियाना ढूँढता है " जैसी हो गई थी। हमारे साथ के दो लोगो को वही से बस पकड़नी थी अल्मोड़ा के लिए, तो वो निकल गए। शुक्र से, ड्राइवर ने हल्द्वानी के बीच टाउन में गाड़ी को रोका था, जहाँ से पुलिस स्टेशन पास ही में था। हमने पुलिस को इत्तेलाह की, कि ऐसा कुछ हमारे साथ हो चला है, पुलिस ने ड्राइवर को डराया धमकाया और कहा की हमें हमारे मुकाम तक पहुँचाये टिकट के अनुसार। ड्राइवर तैयार भी हो गया पर चूंकि उसके साथ दिल्ली से हल्द्वानी तक का सफर हमारे हलक तक अटक चुका था, हमने पहाड़ का रास्ता, आधी रात में उसके साथ जाने से, मना कर दिया। अरे भई ! जान रही तो कैंची जायेंगे ना ? तो यह घटना से इस आर्टिकल के ज़रिये में पढ़ने वालो को यहीं बताना चाहूँगी की अगर आपका मन किसी निर्णय की स्वीकृति ना दे , उस निर्णय पर दुबारा विचार कीजिये। यात्रा में हमेशा अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनिए। आपका अवचेतन मन आपको हमेशा सही मार्गदर्शन देता है। फिर क्या था हमने हल्द्वानी से दूसरी टैक्सी करी 1500 रुपये में 50 किलोमीटर दूर कैंची पहुंचने के लिए।और इस तरह हम नैनीताल होते हुए कैंची पहुंचे करीबन 2:00 बजे।
होटल और होम स्टे के लिए ऑनलाइन बुकिंग आज का सबसे अच्छा विकल्प है। हमने होटल ग्रीन वैली इन् होटल में बुकिंग कर रखी थी। वहाँ से मंदिर एक रोड़ नीचे की तरफ ही था यानी आप पैदल जा सकते है। मंदिर के ठीक सामने भी आपको कई होटल उपलब्ध हो जाएँगी जिसका वर्णन में आगे करुँगी। तो अगर हम रुकने की व्यवस्था में जाए तो आपको वह सम्पूर्णानन्द होम स्टे मिलेगा जो मंदिर के ठीक सामने ही है। यहाँ नीब बाबा ने यहाँ बैठक की है। इसलिए यह जगह आपको और अच्छी लगेगी। जिस होटल में हम ठहरे थे " ग्रीन वैली इन् " भी अच्छा है। यहाँ का स्टाफ और हाउस कीपिंग बहुत ही सहयोगी है। आपको यहाँ खाना भी उपलब्ध हो जायेगा , ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर, चाय सबकुछ। किष्किन्दा गेस्ट हाउस भी अच्छा विकल्प हो सकता है रुकने के लिए , जो की मंदिर के पास में ही है।
तो यह तो थी ठहरने की व्यवस्था। अब हम बाबा नीब करोरी के मंदिर की और जगह कैंची की चर्चा के बारे में आगे बढ़ते है। कैंची नाम के आगे एक बहुत ही रोचक बात है जो मुझे वहाँ के निवासियों ने बताया की यहाँ की पहाड़ी का आकर बिलकुल कैंची जैसा दिखाई पड़ता है। इसलिए इस जगह का नाम कैंची पड़ा। उत्तरप्रदेश के लक्ष्मीनारायण शर्मा (बाबा नीब करोरी) का जन्म 1900 में हुआ। बचपन से उनकी प्रवृत्ति,बाकी अपने भाई बहनों से भिन्न थी। जहाँ सब बच्चे अपनी उम्र में खेलते, वहाँ बाबा का ध्यान ईश्वर में ही रहता। माता पिता ने उनका विवाह 11 वर्ष की आयु में करवा दिया। विवाह के बाद भी बाबा के लिए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बंद नहीं हो सका। वह गृह त्याग कर पुरे भारत में परिब्राजक बन कर घूमने लगे। कई साधु संतो के बीच रहने लगे और अपना जीवन भी वैसा ही कर लिया। गुजरात के वावनिया नामक गांव में बाबा का आना हुआ , जहाँ उन्होंने 7 साल तपस्या की। कुछ समय बाद जब उनके पिताजी को खबर हुई तो उनके आदेश से बाबा को फिर से गृहस्त जीवन में जाना पड़ा। उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन का निर्वाह किया। उनके तीन संतान हुई। नीब करोरी के नाम के पीछे यह किस्सा है, की जहाँ बाबा रुके थे अपने प्रवास में, उस जगह का नाम नीब करोरी था, जिसका अर्थ हुआ नीब यानी "नीव " करारी/करोरी यानी "मजबूत ", जो बाबा ने स्वेच्छा से अपना नाम नीब करोरी स्वीकार लिया। बाबा आडम्बरों से दूर बिना कोई कंठी, ताबीज़, या चोला पहने साधी सफ़ेद धोती और तन पर एक कम्बल धारण करते थे। उनका शरीर मानो जैसे बहुत विशालकाय चट्टान रुपी मानव को देख रहे हो, ऐसा प्रतीत होगा। मगर उनका मन उतना ही सवेंदनशील और ममत्व से भरा पड़ा था। बाबा के पास कोई भी शख्स चाहे फिर वो राम दास हो, कृष्णा दास हो,स्टीव जॉब्स हो, मार्क ज़ुकरबर्ग हो, कोई मंत्री हो, या झोपड़ी में रहने वाला कोई बूढ़ा हो, उनका प्रेम सबके लिए समान था। वह बहुत कम बोलते थे पर जो भी उनके पास आता उसकी सारी खबर बाबा को मालूम होती थी। अनेको लोग उनसे हर रोज़ मिलने आते और बाबा उतनी ही सहजता से उनसे मिलते। बाबा जब उत्तराखंड में आये और कैंची में कदम रखा, तो उन्हें सोमवारी बाबा की गुफा मालूम हुई जहाँ बैठकर कई दिनों तक उन्होंने तप किया। फिर क्या था बाबा ने इसी स्थान पर एक छोटा सा हनुमान जी का मंदिर व आश्रम बनाने की इच्छा अपने मित्र पूर्णानंद जी के साथ जताई।और इस प्रकार मंदिर की स्थापना 1964 में हुई। बाबा के जीवन से जुड़े चमत्कार और किस्सों की लड़ी बहुत ही अनूठी व लम्बी है , जिसके लिए मैं आपको राम दास की लिखी हुई किताब " मिरेकल ऑफ़ लव " पढ़ने की अनुशंसा करुँगी। उसके अलावा भी कई किताबे है बाबा के जीवन से जुड़ी हुई, जो आपको कैंची धाम में मंदिर के प्रांगण से उपलब्ध हो जाएँगी। मंदिर में बाबा की एक जीवंत मूर्ति स्थापित है। उनका कमरा, वो सभी जगह जहाँ बाबा विश्राम करते , भक्तो से मिलते सब वैसा का वैसा ही हैं। हनुमान जी की मूर्ति के साथ , माँ दुर्गा, गणपति महाराज, शिव जी के मंदिर भी है। आपको वहाँ प्रसाद में उबले हुए नमकीन चने मिलेंगे, जो एक मुट्ठी खाकर आपको लगेगा की आत्मा तृप्त हो गई। हो सकता है की यहाँ मेरी अतिशयोक्ति दिख रही हो , मगर "ये भाव के सौदे है गुरु!" "जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी "! कैंची धाम के साथ हनुमान गड़ी , काकड़ी घाट, भूमियाधार मंदिर भी ज़रूर जाएं।
यहाँ के अपने किस्से और अनुभव है। कैंची जाने के लिए वैसे तो सभी मौसम अच्छे है, लेकिन अगर आप भीड़ पसंद इंसान नहीं है तो ठण्ड का समय सबसे अच्छा कहलाएगा जाने के लिए।
कहते है ना "गुरु की महिमा कोई न जाने , न कोई पंडित न ही सयाने " यात्रा हर कोई करता है, पर कुछ यात्राएं आपका जीवन बदल देती है। उम्मीद है आप कभी न कभी कैंची धाम ज़रूर जाए बस ऐसे ही ज़रूरी नहीं की बाबा को जानना ही है , बस ऐसे ही चले जाना और फिर बताना कैसा लगा। आपके अनुभव का मुझे इंतज़ार रहेगा।