![Photo of स्वर्णमंदिर अमृतसर by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/TripDocument/1637388388_img_20210926_191430.jpg)
आज हम बात कर रहे है उस शहर की जिसे अमृतसर या फिर अम्बरसर कहा जाता है। सिख धर्म के चौथे गुरु श्री रामदास जी द्वारा बसाया गया यह शहर रामदासपुर के नाम से भी जाना जाता था। इतिहास और अध्यात्म में इस शहर का बड़ा योगदान है। भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित पंजाब का यह शहर स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा श्री हरमंदिर साहिब जी के लिए पूरी दुनियां में सुविख्यात है। यह सिख धर्म का प्रमुख धार्मिक स्थान है। साथ ही साथ यहाँ का खाना भी बहुत मशहूर है। आज मैं आपको दिखाने जा रहा हूँ अमृतसर के दर्शनीय स्थल।
स्वर्ण मंदिर ( Golden Temple ) के नाम से विख्यात यह गुरुद्वारा सिख धर्म के पांचवें गुरु, श्री गुरु अर्जन ने इस गुरूद्वारे को स्थापित किया तथा आदि ग्रन्थ की रचना सन 1604 में कर ग्रन्थ को यहाँ स्थापित किया। सिख धर्म के सर्वोच्च धार्मिक स्थल के रूप में स्वर्ण मंदिर पूरी दुनिया में सुविख्यात है। यहाँ चार द्वार है जो इस बात के के प्रतिबिम्ब है की सिख यहाँ के दरवाज़े हर धर्म के लोगो के लिए खुले है। गुरूद्वारे की संरचना अत्यंत सुन्दर है। संगमरमर तथा सोने से बना गुरुद्वारा बहुत ही अद्भुत कला का प्रतिक है। यहाँ का वातावरण अत्यंत ही साफ़ सुथरा है। सिख धर्म के अनुयायी बड़े मन से यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा करते है। यहाँ के गुरु के लंगर में रोज़ हज़ारों लोग प्रशाद रूप में भोजन ग्रहण करते है। सभी धर्म के लोग यहाँ दर्शन के लिए आते है। इस गुरूद्वारे का लम्बा इतिहास है। अंदर की और प्रवित्र जल के तालाब के बीचों बीच गुरुद्वारा साहिब है व चारों तरफ बड़ा सा प्रांगण है। गुरूद्वारे में एक अजायब घर ( museum ) भी है जहा सिख धर्म से जुडी चीज़े रखी गयी है। बहार की तरफ खाने पीने की व धार्मिक वस्तुओं, तस्वीरो, किताबों की दिखाने सजी रहती है।
![Photo of Golden Temple by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637387853_1637387851911.jpg.webp)
![Photo of Golden Temple by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637387854_1637387852049.jpg.webp)
![Photo of Golden Temple by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637387856_1637387852157.jpg.webp)
स्वर्ण मंदिर की जैसी ही सरंचना वाला यह मंदिर हिन्दू धर्म को समर्पित है। इसे लक्ष्मी नारायण मंदिर, दुर्गा तीर्थ तथा सीतला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भी संगमरमर व् सोने से बना है अमृतसर आने वाले ज्यादातर पर्यटकों को इस मंदिर के बारे में पता नहीं होता। यह बस अड्डे से 1.5 कि. मी. की दुरी पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 16वीं सदी में किया गया मन जाता है। इसका पुनर्निर्माण व् वर्तमान स्वरुप सन 1921 में करवाया गया था। यहाँ दशहरा व् रामनवमी के त्यौहार बड़ी ही धूम से मनाये जाते है। ऐसी मान्यता है की यहाँ निसंतान तथा पुत्रहीन दम्पति संतान तथा पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगते है और मन्नत पूरी होने पर यहाँ बने भगवान हनुमान के मंदिर में शरद ऋतू में आने वाली अष्टमी, नवमी व् दशहरे को अपने बालक बालिका को लंगूर की वेशभूषा पहना के और बन्दर की तरह सजा के भगवान के दर्शन के लिए ले कर आते है तथा प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करते है।
![Photo of Durgyana Temple by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637388052_1637388051785.jpg.webp)
![Photo of Durgyana Temple by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637388053_1637388051842.jpg.webp)
“जलियाँ वाला बाग ये देखो यहाँ चली थी गोलियाँ, ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियाँ, मरनेवाले बोल रहे थे इनक़लाब की बोलियाँ”
महान गीतकार प्रदीप के द्वारा रचित देश भक्ति गीत की इन पंक्तियों में अमृतसर के जलियाँ वाला बाग़ का मार्मिक वर्णन है। स्वर्ण मंदिर से लगभग 600 मी. की दुरी पर स्थित यह बाग़ भारत की आज़ादी के इतिहास का साक्षी है। 13 अप्रैल 1919 को बैशाखी के त्यौहार के दिन जल्लियाँ वाला बाग़ में लोग बैशाखी मानते भारतीयों पर जनरल डायर ने गोलियां चला दी थी। इस काण्ड में हज़ारो मारे गए व् हज़ारो ज़ख़्मी हुए जिसके बाद असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई।
![Photo of Jallianwala Bagh by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637388328_1637388324067.jpg.webp)
अमृतसर शहर से 32 कि. मी. की दुरी पे स्थित है वाघा नमक गाँव जो भारत व् पाकिस्तान की सीमा पर है। इसे वाघा बॉर्डर के नाम से जाना जाता है। यह सीमा समय समय पर औपचारिक रूप से खोली जाती रही है। यहाँ पर रोज़ शाम को दोनों देशों के सिपाहियों द्वारा अपने अपने राष्ट्री ध्वज को वापिस उतरा जाता है। यह कार्यकर्म बहुत ही जोशपूर्ण तरीके से किया जाता है। दोनों देशों की और से ज़िंदाबाद के नारे लगते है। वहां का दृष्य देखने लायक होता है।
आज के लिए इतना ही.. फिर आउंगा एक और यात्रा के साथ… तब तक अपना ख्याल रखिये……!!
![Photo of wagah border ವಾಘಾ ಗಡಿ by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637388230_1637388224223.jpg.webp)
![Photo of wagah border ವಾಘಾ ಗಡಿ by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637388231_1637388224401.jpg.webp)
![Photo of wagah border ವಾಘಾ ಗಡಿ by Ankit Upadhyay](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/2186591/SpotDocument/1637388233_1637388224558.jpg.webp)