इस यात्रा मेंभक्तों को सिंधु नदी के साथ विभिन्न धार्मिक तीर्थस्थलों के दर्शनों का भी अवसर मिलता है। वर्ष 1997 में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, इन्द्रेश कुमार एवं तरूण विजय के प्रयास से प्रारंभ हुई
सिंधु दर्शन यात्रा के लिए पांच मार्ग हैं, जहां से व्यक्ति इस यात्रा को कर सकता है। पहला मार्ग है दिल्ली से लेह तक हवाई यात्रा, साथ ही इसकी वापसी भी इसी प्रकार है लेह से दिल्ली हवाई सफर के द्वारा। यह यात्रा 23 जून से प्रारंभ होगी और 27 जून को समाप्त होगी। इस यात्रा का खर्च 32000 रुपए प्रति व्यक्ति है।
-दूसरा मार्ग चंडीगढ़ से लेह यह यात्रा 19 जून को प्रारंभ होगी। इसके बाद 22 जून की रात्रि को लेह पहुंचेंगे। 23 से 26 तक लेह में कार्यक्रम होंगे । इसके बाद बस मार्ग से 29 जून को वापस आएंगे। । पहले चंडीगढ़ से बस मार्ग के द्वारा मनाली के लिए रवाना होते हैं। दूसरे दिन मनाली में पहुंचकर वहां पर भ्रमण एवं रात्रि विश्राम, तीसरे दिन केलांग पहुंचकर वहां पर विश्राम, चौथे दिन केलांग से लेह की यात्रा। इस यात्रा का खर्च प्रति व्यक्ति 20000 रुपए है।
तीसरा मार्ग जम्मू से लेह यह यात्रा 18 जून को प्रारंभ होकर 22 जून को लेह पहुंचेगी। वहां पर तीन दिन के कार्यक्रम होने के बाद 29 जून को वापस जम्मू में समाप्त होगी।जम्मू से श्रीनगर बस मार्ग से पहुंचना एवं श्रीनगर का भ्रमण। श्रीनगर से कारगिल के लिए प्रस्थान एवं कारगिल में रात्रि विश्राम। कारगिल से लेह के लिए प्रस्थान एवं रात्रि विश्राम। इस यात्रा का खर्च 20000 रुपए प्रति व्यक्ति है।
चौथा मार्ग जम्मू से लेह एवं लेह से चंडीगढ़ इसमें जम्मू से श्रीनगर बस मार्ग से पहुंचना एवं श्रीनगर का भ्रमण। श्रीनगर से कारगिल के लिए प्रस्थान एवं कारगिल में रात्रि विश्राम। कारगिल से लेह के लिए प्रस्थान एवं रात्रि विश्राम। इसके बाद वापसी में लेह से केलांग के लिए प्रस्थान, केलांग से मनाली एवं मनाली भ्रमण के बाद चंडीगढ़ के लिए प्रस्थान। इस यात्रा का खर्च 22000 रुपए प्रति व्यक्ति है।
पांचवा मार्ग चण्डीगढ से लेह-लेह से जम्मू इसके लिए पहले चंडीगढ़ से बस मार्ग द्वारा मनाली के लिए रवाना होते हैं। दूसरे दिन मनाली में पहुंचकर वहां पर भ्रमण एवं रात्रि विश्राम, तीसरे दिन केलांग पहुंचकर वहां पर विश्राम, चौथे दिन केलांग से लेह की यात्रा। वापसी में लेह से प्रस्थान रात्रि में कारगिल विश्राम, दूसरे दिन कारगिल से श्रीनगर के लिए प्रस्थान। तीसरे दिन श्रीनगर का भ्रमण एवं चौथे दिन श्रीनगर से जम्मू के लिए प्रस्थान। इस यात्रा का खर्च 22000 रुपए प्रति व्यक्ति है।
जम्मू मार्ग से लेह जाने पर भक्तों को सबसे पहले चेनानी नाशरी सुरंग मिलती है। यह सुरंग भारत की सबसे लम्बी सुरंग है। इसकी लम्बाई 9.28 किलोमीटर है। इसके बाद डलझील के दर्शन भक्तों को मिलेंगे। इसके बाद भक्तों को डलझील के पास स्थित शंकराचार्य मंदिर के दर्शन मिलेंगे। यह भगवान शिव का मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 371 ईसा पूर्व में राजा गोपादात्य ने करावाया था। मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने कराया था। माना जाता है जगतगुरु शंकराचार्य अपनी भारत भ्रमण यात्रा के दौरान यहां पर आए थे। जगतगुरु शंकराचार्य का साधना स्थल आज भी यहां पर बना हुआ है। इसके बाद निशात मुगल गार्डन की सैर करने को मिलेगी। इस बाग का निर्माण मुगल बदशाह जहांगीर ने श्रीनगर में अपनी धर्मपत्नी नूरजहां के लिए कराया था। इसके बाद गुलमर्ग की सैर करने के साथ सोनमर्ग मिलेगा जो कि 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक प्रसिद्घ पर्यटक स्थल है। यहां से सिंध नाला निकलता है । साथ ही यहां पर कई प्रसिद्घ ग्लेशियर हैं। इसके बाद बालटाल मिलेगा इसके बाद जोजीला पास मिलेगा जिसका पुराना नाम शूरजी ला अर्थात (भगवान शिव का पर्वत) है। इसके बार कारगिल वार मैमोरियल के दर्शन करने का अवसर मिलेगा। साथ ही कारगिल की ऊंची पहाड़ियां भी देखने को मिलेंगी जहां भारत के जवानों ने पाकिस्तान की फौज को खदेड़ा था। इसके बाद झंस्कार सिंधु संगम के दर्शन होंगे। इसके बाद गुरुद्वारा पत्थर साहिब के दर्शन होंगे। इस स्थान पर 1517 में गुरुद्वारे की स्थापना की गई थी। गुरुनानक देव महाराज ने तिब्बत की यात्रा की थी। तिब्बत के लोग गुरु नानक देव साहिब को गुरु गोम्पका महाराज के नाम से बौद्घ संत मानते हैं। इसके बाद मैग्नेटिक हिल मिलेगी। इसके बाद लेह एवं लेह से खारदूंगला शहर एवं बौद्घ भिक्क्षुओं के गोम्फा मठों के दर्शन होंगे। इसके बाद सिंधु नदी के पवित्र घाट के दर्शन होंगे। इसके साथ पैगोंग झील जिसका 25 प्रतिशत भाग भारत में है जबकि 75 प्रतिशत भाग चीन में है। पहले यह पूरी झील भारत में थी लेकिन 1962 की भारत चीन लड़ाई के बाद इसका काफी बड़ा भाग चीन के हिस्से में चला गया। इसके बाद हॉल ऑफ फेम के दर्शन होंगे।
मनाली-चण्डीगढ़ मार्ग से जाने पर इनके होंगे दर्शन
मनाली-चण्डीगढ मार्ग से जाने पर सबसे पहले मनीकरन मंदिर के दर्शन होंगे। इसके बाद हडिम्बा मंदिर के दर्शन होंगे इस मंदिर का निर्माण 1533 में हुआ था। यह मंदिर महाभारतकाल के भीम की धर्मपत्नी हिडम्बा का है। इसके बाद रोहतांग पास मिलेगा जिसके बाद केलांग से होते हुए बारा लाचा पास एवं पंग मिलेगा। इसके बाद तंगलांगला पास होते हुए लेह पहुंचेंगे। हमने रात्रि विश्राम जेस्पा में किया था ।
सिन्धु घाट पर रंगारंग कार्यक्रम हुए थे ।
लद्दाख में इस बार सिंधु दर्शन यात्रा सांकेतिक हुई, और इस अवसर पर बहुत कम कार्यक्रम हुए । लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष थुप्सतान चिवांग ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दिल्ली स्थित सिंधु दर्शन यात्रा समिति ने इस बार कम यात्रियों को भेजे जाने के बौद्ध संघ के अनुरोध को स्वीकार कर लिया था। इस बार की 25वीं सिंधु दर्शन यात्रा में केवल आठ सौ यात्री ही लद्दाख पहुंचेंग।
श्री चिवांग ने बताया कि यात्री अगस्त माह में अलग-अलग जत्थों में लेह पहुंचें। करीब 25 वर्ष पहले शुरू की गई सिंधु दर्शन यात्रा का मुख्य उद्देश्य लद्दाख क्षेत्र को देश की मुख्यधारा से जोड़ना और बड़ी संख्या में घरेलू पर्यटकों को आकर्षित करना है। यह यात्रा सिंधु नदी के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव का भी प्रतीक है।