क्या आप देखना चाहेंगे ऐसी जगह जहाँ रहते है महादेव समाधी में लीन ? जो की माना जाता हैं , भारत का दूसरा सबसे ऊँचा शिखर।
तो आईये मुक्तेश्वर !
मुक्तेश्वर उत्तराखंड के जिले नैनीताल से 51 किलोमीटर की दूरी और 2286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा सा गांव हैं। जिसकी आबादी लगभग 1000 लोगो की हैं। मुक्तेश्वर गांव कुमाऊं क्षेत्र में पड़ता हैं। कहते हैं ना पुराने लोग - 'की जैसे जैसे तुम गांव के पास आते जाओगे,वैसे वैसे तुम नए और पावन होते जाओगे।' सच बात है वाक़ई।
चिमनी से निकलता धुआँ, छोटे छोटे घर, भेड़े बकरियां, पहाड़ी कुत्ते और बिल्लियाँ, छोटी छोटी दुकानें जहाँ पतली और ज़्यादा मात्रा में मिलती है पहाड़ी चाय और सैलानियों के लिए मैगी और मस्का बन, बरनी में भरे बिस्कुट और खारी भी। यहाँ के पुराने घरों में सीमेंट की जगह उड़द की दाल इस्तेमाल की जाती थी मज़बूती देने के लिए जो आज भी की जाती है। यहाँ के लोग कुदरत के हिसाब से अपना जीवन जीते हैं।
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर की ओर।
मुक्तेश्वर महादेव का मंदिर पुराणों में शालीनता के रूप में यह मंदिर भगवन शिव के 18 प्रमुख मंदिरों में से एक है। ३५० साल पुराने इस मंदिर की रचना सोमवंशी राजा ययाति प्रथम द्वारा हुई थी। मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है की कई देवता व पांडव भी इस स्थान पर आ चुके है। मंदिर को जाने के लिए पूरी 100 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। मंदिर के निकट पहुंचते ही हाफति हुई सांसें मानो एकदम से शांत हो जाती है और धड़कने एकदम साफ़ सुनाई देने लगती है। मंदिर के आस पास की जगह मन्नत की चुनड़ी से घिरा दिखाई पड़ता है। मंदिर के अंदर महादेव संग ब्रम्हा जी, विष्णु जी, माँ पार्वती, हनुमान जी, गणेश जी, नंदी महाराज प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ते है। बाकी गुप्त रूप से और भी कई मौजूद होंगे वहाँ। आपकी अनुभूतियों पर निर्भर है।
एक असीम आनंद और ख़ुशी महसूस होने लगती है। मानो जैसे जीवन में बस यही क्षण का इंतज़ार रहा हो। यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को ऐसी अनुभूति होती है जो शब्दों में बयां कर पाना कठिन है , क्यूंकि यहाँ आत्मा और परमात्मा की बात है। शरीर की नहीं।
मुक्तेश्वर कैसे आया जाए।
सड़क मार्ग से मुक्तेश्वर |
मुक्तेश्वर दिल्ली से करीब 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से सड़क मार्ग द्वारा मुरादाबाद-हल्द्वानी-काठगोदाम-भीमताल होते हुए लगभग आठ घंटे की ड्राइव करके मुक्तेश्वर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग
रेलमार्ग के लिए दिल्ली से काठगोदाम तक तीन ट्रैन चलती है। आप उपयुक्त समय अनुसार चुन सकते है।
काठगोदाम से आगे मुक्तेश्वर तक का सफर लगभग 73 किलोमीटर का है। काठगोदाम से सबसे आसान तरीका,टैक्सी या बस पकड़ें मुक्तेश्वर के लिए जो हो सकता है आपको भवाली से बदलते हुए या सीधे मुक्तेश्वर पहुंचा देगी। {भवाली एक छोटा क़स्बा सा हैं जहाँ से आपको हर आस पास के गांव और मुख्य जगहों के लिए बसें व टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाएगी।}
मुक्तेश्वर में कहाँ रुका जाए।
कहना गलत नहीं होगा मगर आप किस मौसम में जाते है यह एक मुख्य बात हैं। अगर आप गर्मियों में जाते है, तो कीमते ज़ादा होती है, पीक सीज़न होने की वजह से। और अगर आपको शांत और भीड़भाड़ से दूर जाना है तो अक्टूबर नवंबर और दिसंबर सबसे अच्छे है। अगर आप बर्फ़ का मज़ा लेना चाहते है तो जनवरी और फ़रवरी सबसे अच्छे मौसम है।
रुकने के लिए मुक्तेश्वर में कई होटल उपलब्ध है। सामान्य से 5 सितारा तक। यहाँ आपको होटल और कॉटेज दोनों उपलब्ध होंगे। कुछ अपने माउंटेन व्यू की वजह से मशहूर है, कुछ फलों के बागान के बीच बसें है, तो कुछ छोटी पहाड़ियों के बीच में बसे मिलेंगे।
इनमे से एक होटल है। कैफ़े मुक्तेश्वर जिसमे रूम्स बड़े और खिड़किया खूबसूरत नज़ारे बिखेरते हुए मिलेंगे। यहाँ आपको पारम्परिक कुमाउनी खाना भी उपलप्ध होगा। ब्रेकफास्ट से लेकर आपको रात के डिनर तक सब कुछ मिलेगा। यहाँ की चाय भी अच्छी मिलती हैं। कैफ़े मुक्तेश्वर का स्टाफ बोहत ही सहयोगी हैं।
मेरा इस होटल का अनुभव बोहत अच्छा रहा। इसलिए मैं इसकी ज़रूर सिफ़ारिश करना चाहूंगी।
कोई भी सफ़र तब ख़ास होता हैं जब आप उस जगह के लोगऔर उनकी ज़िंदगी से जुड़े। कुछ पल अपनी छोड़ वहां की ज़िंदगी जीए। देखिएगा, आज से कई साल बाद जब भी आप उन यादों को याद करेंगे आपके मन में फिर से वही ताज़गी और आनंद की अनुभूति लौट आएगी।