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साथियों जब भी हम माँ सीता से जुड़े पवित्र तीर्थस्थल सीतामढ़ी का नाम लेते हैं तो हम सब के ज़ेहन में तुरंत बिहार के सीतामढ़ी का ख़्याल आता है और हममे से ज़्यादा लोगों को यही जानकारी है कि सीतामढ़ी के पुनौरा नामक जगह पर माँ जानकी का प्राकट्य हुआ था और सीतामढ़ी तो बिहार में ही है पर मैं आज आपको जिस सीतामढ़ी स्थल के बारे में बताने जा रहा हूँ वह भी माँ सीता का ही पवित्र तीर्थस्थल है पर यह स्थल बिहार में नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में स्थित है। जी हां मैं बात कर रहा हूँ सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी की।
सीता समाहित स्थल का पौराणिक, आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व :-
यह स्थल त्रेतायुग का पौराणिक और परम पवित्र धार्मिक स्थल है। यहीं पर ऋषि बाल्मीकि जी का आश्रम है यह वही जगह है जहां माँ सीता के दोनों बेटे लव और कुश का ऋषि बाल्मीकि के आश्रम में जन्म हुआ था। यही वह जगह है जहां भगवान राम के पुत्रों ने भगवान राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ के लिए छोड़े गए अश्व (घोड़े) को पकड़ रखा था। यहीं पर लव-कुश ने भगवान राम की चतुरंगिणी सेना जिसमें लक्ष्मण, भरत, शत्रुघन, नल-नील आदि प्रतापी योद्धा थे उन सभी को परास्त कर दिया था। अंत में भगवान राम ने महाबली हनुमान को घोड़े का पता लगाने के लिए भेजा था तो लव-कुश ने हनुमान जी को भी बंदी बना लिया था। उसके बाद भगवान राम को स्वयं यहां आना पड़ा था कि आख़िर वो कौन परम प्रतापी बालक और योद्धा हैं जिन्होंने इन सबों को परास्त कर दिया है या बंदी बना लिया है। जहां उन्हें यह पता चला कि लव-कुश कोई और नहीं बल्कि उनके अपने पुत्र हैं।
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सीता समाहित स्थल का लोकेशन और यहां कैसे पहुंचे :-
यह पवित्र तीर्थ स्थल वाराणसी और प्रयागराज दोनों शहरों के बीच नेशनल हाईवे (NH-2) पर स्थित जंगीगंज बाजार से 11 km दूर माँ गंगा के किनारे बारीपुर (बनकट) गांव में स्थित है।
यह स्थल वाराणसी शहर से लगभग 86 km और प्रयागराज से लगभग 70 km की दूरी पर है। बनारस से आते हुए जंगीगंज से आपके बायीं तरफ और प्रयागराज से आते हुए आपके दायीं तरफ़ पड़ेगा। दोनों ही शहर से बस और टैक्सी आदि की पर्याप्त सुविधा है। नज़दीकी एयरपोर्ट बनारस और प्रयागराज में है जहां पहुंचकर आप फिर बस या टैक्सी लेकर यहां पहुंच सकते हैं।
नज़दीकी रेलवे स्टेशन भदोही और मिर्ज़ापुर हैं। मंदिर से कुछ दूरी पहले ही आपको यहां पर स्थित हनुमान जी की विशाल प्रतिमा दिखाई पड़ने लगती है।
Sita Samahit Sthal Sitamarhi Bhadohi
https://maps.app.goo.gl/Wv2mDCc7xBLSdyZo8
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सीतामढ़ी में दर्शनीय स्थल और यहां आप क्या-क्या चीजें कर सकते हैं :-
जगत जननी माँ भगवती सीता का यह पवित्र धाम पतित पावनी, पाप नाशिनी माँ गंगा के किनारे स्थित है। यहां का वातावरण बहुत ही सुरम्य, अद्भुत, प्राकृतिक और मनमोहक है क्यों कि यह गंगा जी के किनारे है और यह वन क्षेत्र से घिरा है। गंगा उस पार का क्षेत्र पूरा वन प्रदेश है। यहाँ पर मंदिर दो भागों में है एक वह जो ऋषि बाल्मीकि जी के समय का प्राचीन मंदिर और दूसरा जो कुछ दशकों पहले नया मंदिर बना। गंगा में स्नान करने के बाद घाट से सीढ़ियां चढ़कर जैसे ही आप ऊपर पहुंचते है सामने एक विशाल घंटा लगा हुआ है जिसे हर श्रद्धालु बजाकर माँ गंगा को नमन करता है और दिव्यता की अनुभूति करता है। उसके पश्चात ऋषि बाल्मीक जी का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर के गेट पर लव-कुश की प्रतिमा, अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़े हुए है जो उस समय के पल का सुंदर चित्रण करता है। मंदिर में माँ सीता, ऋषि बाल्मीकि, लव-कुश और अन्य विभिन्न देवताओं की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में ही प्राचीन विशाल वट वृक्ष है। यहां के लोकल लोग आज भी इसे सीता वट वृक्ष के रूप में पूजते हैं। इस मंदिर से ही कुछ दूरी पर एक और प्राचीन मंदिर है जहां पर भगवान शिव का मंदिर बिल्कुल गंगा घाट के किनारे हैं यहां भी कई विशाल वट, पीपल आदि के वृक्ष हैं। इस स्थल पर कई साधु-संत निवास करते हैं और यहां हमेशा वो लोग रामायण का पाठ, भजन- कीर्तन आदि करते रहते हैं। इस मंदिर में बैठने से एक अलौकिक शक्ति, शांति और सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है। यहाँ पर भक्त, श्रद्धालु साधु-संतों की टोलियों के साथ, राम भजन, कीतर्न आदि गाते हुए, झूमते रहते हैं और राम-जप में मग्न, आह्लादित दिखाई पड़ेंगे।
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सीतामढ़ी नवीन मंदिर में आकर्षण के विभिन्न केंद्र बिंदु:-
सीता समाहित स्थल के नए मंदिर को एक धार्मिक स्थल के साथ ही टूरिस्ट स्पॉट के रूप में भी बनाया गया है। इस मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही आपको माँ सीता के राज-रूप का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा जैसा वो अयोध्या के राज महल में राजसी जीवन व्यतीत कर रहीं थी। किन्तु मंदिर के निचले तल में माँ सीता की प्रतिमा एक संन्यासिनी के रूप में है क्यों कि माँ सीता का दूसरा वनगमन और कष्टमय जीवन एक संन्यासिनी के रूप में ऋषि बाल्मीकि जी के आश्रम में बीता था। मंदिर के निचले भाग में जहां माँ सीता का संन्यासिनी के रूप में प्रतिमा है यही वह जगह है जहां माँ सीता ने पवित्रता को प्रमाणित करने के लिए जगत जननी माँ भगवती से प्रार्थना किया था कि यदि मैं मन, वचन और कर्म से सिर्फ़ भगवान राम को ही अपना सब कुछ मानी हूँ और एक भगवान राम के अलावा अन्य किसी पर-पुरुष को जीवन में नहीं जाना है तो हे माँ आज आप धरती चीर के प्रकट हों और मुझे अपनी गोंद में ले लो क्योंकि इस संसार में मैं अपनी पवित्रता का प्रमाण देते-देते थक गयी हूँ। माँ सीता की इस करुण पुकार को सुनते ही धरती फट गई और माँ भगवती प्रकट हुईं। धरती में समाहित होने से पहले माँ सीता ने अपने दोनों पुत्रों लव और कुश को भगवान राम को सौंप कर फिर धरती में समाहित हो गयी थीं। माँ सीता का जन्म बिहार के सीतामढ़ी के पुनौरा ग्राम में धरती से हुआ था। राजा जनक के राज्य में जब अकाल पड़ा था तब किसी महात्मा ने प्रजा की सुख-शांति और अकाल से मुक्ति पाने के लिए हल चलाने का सुझाव दिया था।
हल चलाते समय राजा जनक का हल एक धातु से टकराकर अटक गया। राजा जनक ने उस स्थान की ख़ुदाई करने का आदेश दिया। इस स्थान से एक कलश निकला जिसमें एक सुंदर सी कन्या थी। राजा जनक निःसंतान थे। इन्होंने कन्या को ईश्वर की कृपा मानकर अपना पुत्री बना लिया। हल का फल जिसे सीत कहते हैं उससे टकराने के कारण कलश से कन्या बाहर आयी थी इसीलिए इनका नाम सीता पड़ा। तो माँ सीता जिस प्रकार धरती से निकली थीं उसी प्रकार पुनः धरती में ही समाहित हो गईं।
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इस मंदिर में कुश घास एक विशेष रूप में उगती है जो सिर्फ़ यहीं पायी जाती है और कहीं अन्यत्र इस तरह की वो घास नहीं उगती। ऐसी मान्यता है कि माँ सीता अपने केश को यहीं संवाराती थी अतः यह घास माँ सीता के केश रूप में उगता है। महिलाएं आज भी इस विशेष घास की पूजा करती हैं। यह घास आप इस मंदिर के प्रवेश द्वार के निचले हिस्से में देख सकते हैं।
मंदिर के चारों तरफ वन क्षेत्र है और बीच में मंदिर है। मंदिर में आपको नौका विहार करने की सुविधा मिलती है जिसे आप बुक कर सकते हैं। रात में लाइट की रोशनी में मंदिर जगमगा उठता है और इसका नज़रा तब और भी ज़्यादा सुंदर और आकर्षक हो जाता है।
यहां पर भगवान शिव का अद्भुत मंदिर है जो कि ऊपर पहाड़ पर इनकी प्रतिमा स्थित है और इनके जटाओं से कृत्रिम झरने का पानी कल-कल बहता रहता है और पहाड़ों की गुफा में अंदर महादेव का शिवलिंग स्थापित है। पास ही मां सीता जी की एक अन्य प्राचीन प्रतिमा है जो कि धरती के कुछ निचले भाग में है।
प्रवेश द्वार के बाएं हाथ में स्वामी जितेन्द्रानंद की प्रतिमा है।
मंदिर परिसर के बाहर अब एक माँ दुर्गा का नया मंदिर भी बन गया है। पास में ही भगवान राम के परम भक्त और माँ जानकी के दुलारे हनुमान जी की 108 फीट ऊंची विशाल और भव्य प्रतिमा है और प्रतिमा के निचले हिस्से को पहाड़ और गुफ़ानुमा आकार दिया गया है। गुफ़ा के अंदर भी हनुमान जी की मूर्ति के साथ भगवान राम, लक्ष्मण और माँ जानकी की मूर्ति है। हनुमान मंदिर परिसर के अंदर वातावरण बहुत ही शांत रहता है जैसे आपका बाहरी दुनिया के ऊहा-पोह और कोलाहल से नाता कट जाता है और आप ईश्वर की सानिध्यता का भान करने लगते हैं। मंदिर के बाहर हरी-भरी घास का लॉन है और घने पेड़ों के नीचे बैठने के लिए छोटे-छोटे कुटियानुमा हट और चबूतरे बनाये गए हैं जहां पर सैलानी बैठकर परम् शांति का अनुभव करते हैं। विशाल हनुमान मंदिर की प्रतिमा सैलानियों के बीच ख़ासा लोकप्रिय है, यह सेल्फी पॉइंट का हॉट स्पॉट, आकर्षक केंद्र बिंदु होता है। इस जगह आप सैलानियों को हमेशा सेल्फी लेते या फोटो क्लिक करते हुए पाएंगे।
हनुमान जी की यह प्रतिमा पूरे उत्तर-प्रदेश में सबसे विशाल प्रतिमा है और यह विश्व में विशाल प्रतिमाओं की लिस्ट में भी शामिल है।।
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नए सीतामढ़ी मंदिर का निर्माण किसने करवाया :-
स्वामी जितेन्द्रानंद जी ने नए सीतामढ़ी मंदिर का निर्माण करवाया। इनका जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। संन्यास धारण करने से पहले यह एक प्रसिद्ध वकील थे। सन्यास धारण करने के बाद ये ऋषिकेश में रहते थे। इनके मन में एक सवाल हमेशा यह खटकता रहता था कि भगवान राम के जीवन से जुड़े जितने भी तथ्य, स्थान और संकेत हमारे धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में मिलते हैं वो सभी कहीं न कहीं मंदिर या धार्मिक स्थल के रूप में विद्यमान हैं पर माँ सीता जिस जगह समाहित हुई थीं वह मंदिर या तीर्थ स्थल कहाँ है इसका कहीं कोई वर्णन या ज़िक्र नहीं मिलता, ना ही कहीं उनका ऐसा कोई मंदिर है। ये हमेशा परेशान रहते थे बाल्मीकि रामायण और तुलसी गीतावली में इसका ज़िक्र और वर्णन तो है पर धरातल पर भी है यह जगह इसका कहीं उल्लेख नहीं। इन्होंने जो पढ़ा था उसके अनुसार यह स्थल गंगा नदी के किनारे होना चाहिए क्योंकि पुराणों और ग्रंथों में ऐसा ही उल्लेख था और इन्हें उस पर पूर्ण विश्वास भी था तो यह इस स्थान की ख़ोज में पैदल ही गंगा के घाटों की यात्रा करते निकल पड़े। लगभग 900 km की पैदल यात्रा करने के बाद ये सीतामढ़ी पहुंचे तो पाया कि यहां ऋषि बाल्मीकि जी का मंदिर है और यह वन प्रदेश भी प्रतीत होता है और इस गांव का नाम भी बारीपुर या बनकट है तो यही वह स्थान होना चाहिए जहां माँ सीता समाहित हुई होंगी। स्वामी जी यहीं रहने लगे जहां माँ सीता का प्राचीन मंदिर है जो भूतल में है और यहीं ये साधना करने लगे। गांव वाले जो कुछ भी इनको खाने-पीने को दे देते थे उसी को प्रसाद रूप में ग्रहण करके पुनः साधना में लीन हो जाते थे। एक रात्रि माँ सीता ने इनको स्वप्न में अपने धरती में समाहित होने के स्थल के बारे में बताया और मंदिर निर्माण करवाने की प्रेरणा दी पर इनके लिए समस्या थी कि आख़िर वह मूल स्थान निर्धारित कैसे हो जहां माँ सीता समाहित हुई थी। फिर इन्होंने ग्रंथो, पुराणों में निर्दिष्ट संकेत आदि को धरातल पर टटोला और देखा तो उसके माध्यम से उक्त स्थान को सही पाया कि यहीं पर माँ सीता धरती में समाहित हुई थी। अतः मंदिर निर्माण का कार्य इन्होंने अपने शिष्य सत्यनारायण श्रीप्रकाश पुंज ट्रस्ट दिल्ली के द्वारा शुरू करवा दिया।
ठहरने की सुविधा :-
यदि आप बाहर से आ रहे हैं और यहां रुकना चाहते हैं तो मंदिर परिसर में एक उत्तम वातानुकलित होटल है तथा आस-पास कुछ गेस्ट हाउस हैं जहां आप रुक सकते हैं। यह परिसर बहुत ही सुरक्षित है। मंदिर परिसर के गेट पर पुलिस चौकी है। यहाँ के लोकल लोग बहुत ही मृदु-भाषी और फ्रेंडली नेचर के हैं। यहां आपको नाश्ता, खाने-पीने आदि के लिए ज़ायकेदार चीजों का लुत्फ उठाने का भी मौका मिलेगा और प्रसाद आदि के लिए मंदिर परिसर के गेट पर बहुत सारी दुकाने उपलब्ध हैं।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर जूते-चप्पल रखने की निःशुल्क व्यवस्था है।
सीतामढ़ी से अच्छी यादों का पिटारा लेके आप लौटेंगे :-
इस जगह को भारत सरकार और उत्तर-प्रदेश सरकार ने मिलकर 'देखो अपना देश' पहल के तहत 'श्रीरामायण सर्किट' यात्रा स्थल में शामिल किया है इसी से आप इस पवित्र स्थल के धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्ता का अंदाज़ा लगा सकते हैं। IRCTC द्वारा 7 नवम्बर, 2021 से शुरू होने श्रीरामायण यात्रा में यह धार्मिक स्थल भी शामिल है।
अगर मैं अपनी बात करूं तो इस जगह से मेरा पौराणिक, धार्मिक और आध्यात्मिक लगाव है मुझे जब भी मौका मिलता है मैं इस जगह जरूर जाता हूँ जहां मुझे एक नई आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्यता की अनुभूति होती है। आप भी इस यात्रा पर अगर जाएंगे तो यादों का एक सुखद, दिव्य, आध्यात्मिक और सुकून भरा पिटारा अपनी झोली में भर के वापस लौटेंगे। आप भी इस जगह को आज ही अपनी ट्रैवेल डेस्टिनेशन लिस्ट में शामिल कर लीजिए और जब भी मौका मिले यहां घूमने अवश्य जाएं।
प्रिय घुमक्कडों आपको यह यात्रा-वृत्तांत कैसी लगी मुझे जरुर बताएं, आप इस पोस्ट पर कमेंट कर सकते हैं या मुझे मैसेज भी भेज सकते हैं।
Happy Travelling..!!! #TripotoCommunity