सबसे पहले आप सभी को नमस्कार !
हमारा नाम रोहित है और हम कानपुर निवासी है, वैसे तो हम अपने बारे में नहीं बताना चाह रहे थे, लेकिन यह हमारा पहला ब्लॉग है इसलिए सोचा क्या पता पहले आप सभी पाठको को अपने बारे में बताना जरुरी होता होगा | क्योंकि भाषा का भाव भी कानपुर का ही है और यह हमारा पहला ब्लॉग भी है तो हो सकता है कुछ त्रुटियाँ ( गलती, Mistake ) भी हो इसलिए हम पहले से ही उन गलतियों के लिए आप सभी से माफ़ी मांग ले रहे है |
सन 2017 में सिगरेट ज्यादा पीने की वजह से हमको सर गंगाराम हॉस्पिटल ( दिल्ली ) में लंग सर्जरी से गुजरना पड़ा और ईश्वर की अनुकम्पा से हम स्वस्थ भी हो गए जिसके बाद हमने सिगरेट को छोड़ दिया और अपने फेफड़ो को कैसे स्वस्थ रखे इस बात पर ध्यान देने लगे परिणाम स्वरुप हमको ट्रैकिंग का चस्का लगने लगा और राहुल सांकृत्यायन से प्रभावित होकर अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा का अनुसरण करने लगे, 2017 के बाद हमने कई ट्रेक्स किये जिनमे गोमुख, खीरगंगा प्रमुख और प्रिय रहे, ऑफिस से शनिवार रविवार की छुट्टी हुई नहीं की शुक्रवार की रात ऑफिस से निकले अपना बस्ता उठाया और निकल पढे यात्रा पर |
खीरगंगा
खीरगंगा का तो हम क्या ही बताये आप सभी तो जानते ही होंगे, बरशैणी डैम से 12 किलोमीटर दूर 2950 मीटर की ऊंचाई पर प्रकृति की गोद में एक ऐसा स्थान सिर्फ शांति ही शांति, पार्वती नदी, कलगा से जंगल वाला रास्ता, नकथान गांव, झरने और उनके पानी का स्वाद और आईसी पॉइंट की मैगी | आप अगर अप्रैल से अक्टूबर के बीच में खीरगंगा ट्रैक जाते हैं तो यह समय सबसे बेहतर माना जाता है. इस समय आपको बेहतरीन मौसम, हरियाली और नीला आसमाँ दिखता है.
( हमारे अनुसार अक्टूबर, नवम्बर और दिसंबर ,क्योंकी इस समय कुछ हद तक उन सभी चीज़ो से बच सकते है जिनकी वजह से मुझे यह ब्लॉग लिखना पढ़ रहा है)
वैसे तो हम भी 12 बार जा चुके है , अपने सहमित्रो को भी ले गए हर बार कुछ नया और अलग देखने को मिला या मिलता था |
लेकिन पिछले कई बार से ये देखा और महसूस भी किया की अब खीरगंगा वो खीरगंगा नहीं रहा जैसे पहले हुआ करता था | पहले खीरगंगा जाने से होने वाला प्रफुल्लित मन अब विचलित होने लगा हैं
ज्यादातर अब गन्दगी, नशा, शराब, बदतमीज़ी करने वाले, सिरफिरे लोग ( मेरी धारणा सबके लिए नहीं है और ना ही किसी व्यक्ति विशेष के लिए ) ही आने लगे है यहाँ पर, जिनको प्रकृति से कोई लेना देना नहीं उनको तो बस अपनी छुट्टियों और मौजमस्ती से मतलब है उन सभी बुद्धिजीवियों को इस बात का जरा भी अंदाज़ा नहीं होता की प्रकृति के अपने ही नियम होते है, प्रकृति अपने ही ढंग से चलती है जिनका सम्मान किया जाना चाहिए ना की उसके साथ दुर्व्यहवार करना चाहिए |
खुलेआम बदतमीज़ी, गाली गलौच और महिलाओ को गलत नज़र से देखना तो आम बात हो गई है यहाँ पर
पहले की यात्राओं में हम इन सभी बर्ताव को अनदेखा कर रहे थे लेकिन इन सभी घटनाओ को बढ़ते हुए क्रम में देखना अब मुश्किल हो रहा था जिसकी वजह से हमने अब खीरगंगा कभी न जाने निर्णय ले लिया अब भुंतर से पार्वती वैली के ऊँचे पहाड़ो की तरफ हमारी गाडी कभी नहीं मुड़ा करेगी |
हुआ कुछ यूँ !
हम अक्सर खीरगंगा जाने के लिए कालगा और वापसी में नकथान का रास्ता उपयोग करते है
हमेशा की तरह इस बार भी ऐसे ही हमने यात्रा शुरू की कुछ दूर कलगा से चले तो देखा कुछ लोगो का बढ़िया एकदम खुले में मजमा लगा है तेज धुन में संगीत बज रहा था और बढ़िया शराब की बोतले खुली पार्टी चल रही थी, कुछ और आगे बढ़े तो एकाएक देखा पेड़ के नीचे कुछ बुद्धिजीव युवा शराब का सेवन बढ़िया हुक्के के साथ जमावड़ा लगाए हुए चल रहा था |
4 घंटे बाद ट्रेक करके जब खीरगंगा पहुंचे वहां बैठी आंटी से हमने टेंट किराये पर लिया और कुछ देर आराम करके हम चल पड़े गरम पानी के स्त्रोत ( hot water spring ) की ओर |
चुपचाप कुंड में एक किनारे बैठ कर प्राकर्तिक गरम पानी में नहाने का मजे ले रहे थे या यूँ कहिये अपनी थकान मिटा रहे थे की अचानक हमने देखा कुछ बुद्धिजीवी बगल में महिलाओ के लिए बने स्नान स्थल में झाकने की कोशिश कर रहे थे जानबूझ कर कुछ देखने की कोशिश कर रहे थे और चिल्ला चिल्ला कर गालिया दे रहे थे उसके बाद कुछ लोगो ने उन्हें रोकने की कोशिश की भी तो उनके साथी गण गुट बनाकर आये और झगड़ा करने लगे
थारे बाप का कुंड है के, मै तो यही शराब पीयू गाली दोउ जो उखाड़ना उखाड़ लिए... ( ऐसा ही कुछ )
और नज़र ऊपर गई तो एक अंकल जी बढ़िया मंदिर के पास नीचे कुंड का विडिओ बना रहे शायद उनका कैमरा नहाती हुई महिलाओ की तरफ ही था |
कुंड के पास बढ़िया पार्टी का मजमा भी लग गया
हम बिना टाइम लगाये तुरंत अपने टेंट में आकर आराम करने लगे
फिर आंटी ने रात में खाने की आवाज़ दी तो हमने देखा उनके किचन के बाहर फिर दारु पार्टी
का मजमा लगा था |
आंटी के चेहरे पर गुस्सा साफ़ लग दिख रहा था क्योकि खाना खाते वक़्त हमारी आंटी से बात हुई तो वो पिछली रात का किस्सा बता रही थी की आज रात 4 बजे सोइ थी 6 बजे उठ गई पिछली रात को कुछ लड़को ने 3 बजे रात तक शराब पी आंटी से लड़ाई झगड़ा भी किया खाने के लिए जगा कर भी रखा और अंत में आंटी ने रात 4 बजे मजबूरन बोला आप लोग कोई और टेंट देख लो मै और आप लोगो की सेवा नहीं कर पाऊँगी जिसके बाद, 4 बजे के सभी बुद्धिजीवी खाना खाकर सोने गए | इतनी ऊंचाई पर पर्यटकों को सेवा देना इतना भी आसान नहीं होता, कम से कम उनकी मेहनत का ही सम्मान कर लो भाई |
पहली बार ऐसा लगा के हम कहाँ आ गये है हमारा मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था हमने भी मजबूरन सुबह 6 बजे उठकर बरशैणी जाने की ठान ली और कसोल के आते आते कभी भी इस वैली में ना आने का फैसला ले लिया था |
हो सकता है ऐसा अनुभव आपने भी किया हो या ना भी किया हो | लेकिन ये कहना सत्य होगा कि कुछ विषयो में हम इंसान, जानवर बन जाते है | हम कितने स्वार्थी है ये हम इंसान दिखा ही देते है हर जगह |
सिर्फ सम्मान देकर भी हम प्रकृति के लिए बहुत बड़ा योगदान दे सकते है
आप, अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव कमेंट कर सकते है धन्यवाद् !
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