वृंदावन - टटिया स्थान
टटिया स्थान वृंदावन का वह धाम जहां आज श्री ठाकुर जी विराजमान है। जिसके बारे में कहा जाता है कि आज भी वहां कलियुग का प्रवेश नहीं हुआ है। कलियुग का मतलब मशीनी युग से है। इस स्थान के बारे में कम ही लोग जानते है। टटिया स्थान स्वामी हरिदास संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। जहाँ पर साधु संत इस संसार से विरक्त होकर बिहारी जी के ध्यान में लीन रहते है। वृंदावन में मौजूद सभी धार्मिक और पर्यटन स्थलों में, टटिया स्टान वह स्थान है जो विशुद्ध प्राकृतिक सौंदर्य है, जो तकनीकी प्रगति से पूरी तरह अछूता है। टटिया स्थान में, एक वास्तव में कई शताब्दियों पहले वापस चला जाता है, प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध में रहता है। यह पवित्रता, दिव्यता और आध्यात्मिकता का स्थान है। एक बार मानव प्रकृति के साथ होने के बाद टटिया स्थान एक करीबी रिश्ते की याद दिलाता है। यह अब तक हिंदू धर्म के ईश्वर के सिद्धांत के सर्वव्यापी होने का सबसे अच्छा उदाहरण है।
टटिया स्थान का इतिहास-
टटिया स्थन स्वामी हरिदास सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि स्वामी हरिदास जी बांके बिहारी जी के अनन्य भक्त थे, जो कि भगवान कृष्ण हैं। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने प्रेम और दिव्य संगीत का पाठ वृंदावन के पक्षियों, फूलों और पेड़ों से सीखा है। हर सुबह यमुना नदी में स्नान करने के बाद, स्वामी जी भजन (प्रार्थना) के लिए निधिवन जाते थे, जिसके बाद वे घने घाट पर बैठते थे और अपने इष्ट, शुद्ध प्रेम से परिपूर्ण कुंजबिहारी और श्री कुंजबिहारिनी (कृष्ण और राधा) का ध्यान करते थे। ।
हरिदास सम्प्रदाय के आठ आचार्य हैं, प्रथम स्वामी हरिदास जी हैं। उनकी मृत्यु के बाद, बाद में आचार्य थे, स्वामी विठ्ठल विपुल देव जी, स्वामी बिहारिनी देव जी, स्वामी सरस देव जी, स्वामी नरहरि देव जी, स्वामी रसिक देव जी, स्वामी ललित किशोरी देव जी और अंतिम स्वामी ललित मोहिनी देव जी।
सातवें आचार्य, स्वामी ललित किशोरी देव जी ने निधिवन को छोड़ने का फैसला किया, ताकि एक निर्जन वृक्ष के नीचे कहीं जाकर ध्यान किया जा सके। चौबे जी गोकुलचंद और श्याम जी चौबे ने शिकारियों और तीमारदारों से जगह सुरक्षित करने का फैसला किया। उन्होंने बांस के डंडे का इस्तेमाल कर पूरे इलाके को घेर लिया। स्थानीय बोली में बाँस की छड़ियों को “टटिया” कहा जाता है। इस तरह इस स्थान का नाम टटिया स्थन पड़ा।
इस स्थान की विशेषता -
इस स्थान की खास विशेषता यह है कि आज भी किसी भी आधुनिक वस्तु या इलेक्ट्रॉनिक सामान का उपयोग नहीं किया जाता है। आपको इस स्थान पर पंखा, बल्ब जैसे मामूली साधन भी देखने को नहीं मिलेंगे। वहां आरती के समय बिहारी जी को पंखा भी आज भी पुराने समय के जैसे डोरी की सहायता से करते है। यह एक ऐसा स्थल है जहाँ के हर वृक्ष और पत्तों में भक्तो ने राधा कृष्ण की अनुभूति की है, संत कृपा से राधा नाम पत्ती पर उभरा हुआ देखा है। आरती गायन भी इतना भिन्न था कि मुझे उसका एक शब्द भी नहीं समझ आया पर सुनने में बहुत ही आनंद मिला।
यहां के साधु संत -
यहां के साधु - संतो में आपको अलग ही तेज देखने को मिलेगा। यहां साधु संत आज भी समाधि लेते है । इस स्थान के महंत पदासीन महानुभाव अपने स्थान से बाहर कही भी नहीं जाते स्वामी हरिदास जी के आविर्भाव दिवस श्री राधाष्टमी के दिन यहाँ स्थानीय ओर आगुन्तक भक्तो कि विशाल भीड़ लगती है। इस स्थान पर साफ - सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। यहां के संत लोग आज भी कुएं के पानी का उपयोग करते है। यहां के साधु संत आपसे किसी भी प्रकार की दान - दक्षिणा नहीं लेते है, यहां तक कि आपको इस स्थान पर दान-पेटी भी देखने को नहीं मिलेंगी। अगर आप वृंदावन जाते है तो आपको इस स्थान पर जरूर आना चाहिए। भीड़भाड़ से दूर इस स्थान पर आपको अलग ही शांति की अनुभूति होगी।
कहा है यह स्थान -
यह रमणीय स्थान निधिवन से बस कुछ 1 किमी की दूरी पर स्थित है। पर यहाँ आने से पहले आपको बता दूँ कि यहां के नियमों का पालन करना अत्यावश्यक है।
1. यहाँ आप किसी भी आधुनिक वस्तु का उपयोग नहीं कर सकते है, क्योंकि यहाँ उसका उपयोग पूर्णतया वर्जित है।
2. यहाँ मोबाइल का उपयोग या फोटो लेने की बिल्कुल मनाही है तो आप जब भी यहां आये अपने मोबाइल को प्रवेश करने से पहले ही स्विच ॲाफ या साइलेंट कर दे।
3. अगर आपके साथ कोई महिला है तो सिर खुला नहीं रहना चाहिए। जब तक आप मंदिर में तो सिर को किसी दुपट्टे की सहायता से ढक ले।
4. सबसे खास बात मंदिर की साफ - सफाई का विशेष ध्यान रखें।
तो आप जब भी वृंदावन जाये इस स्थान पर जरूर जाये। यकीन मानिए आपको बहुत शांति और आनंद की प्राप्ति होगी।