इस बार 25 जुलाई रविवार से सावन का पावन महीना शुरू हो रहा है, जो 22 अगस्त रविवार तक रहेगा। सावन का नाम आते ही दिमाग में बाबा भोलेनाथ के कांवड यात्रा की बात घूमने लगती है। हर साल सावन के महीने में लोग कांवड़ लेकर बाबा भोलेनाथ को जल चढ़ाने बाबाधाम जाते हैं। करीब एक महीने के दौरान (इस बार सिर्फ 29 दिन) हर दिन लाखों लोग भोले बाबा को गंगा जल अर्पण करते हैं। वैसे तो यहां सालों भर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सावन के महीने का विशेष महत्व है।
बाबा भोलेनाथ को जो गंगा जल चढ़ाते हैं, उसे श्रद्धालु बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज से लेकर आते हैं। सावन में महीने में बाबा के भक्त सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा में डुबकी लगाने के बाद यहां बाबा अजगैबीनाथ की पूजा करते है। पूजा अर्चना के बाद भगवा वस्त्र पहन दो पात्र में गंगा जल भरकर उसे कांवड़ में लगा और कांधे पर रखकर देवघर के लिए निकल पड़ते हैं। कांधे पर कांवड़ रखकर बोल बम- बोल बम के मंत्र को जपते हुए 105 किलोमीटर की तीर्थयात्रा करते हैं।
सुल्तानगंज से बाबाधाम की यात्रा के दौरान कांवड का जमीन से स्पर्श नहीं होता है। विश्राम या नित्यकर्म के दौरान इसे खास तौर पर जगह-जगह बनाए गए बांस या लकड़ी के हैंगर पर रखा जाता है। इस 105 किलोमीटर की यात्रा के दौरान हर एक इंच जमीन बाबा भोले के रंग में रंगी दिखती है। दुनिया का सबसे लंबा यह धार्मिक मेला आस्था और भक्ति में डूबा रहता है। हर ओर सिर्फ बोल बम-बोल बम की गूंज सुनाई देती है। पूरा माहौल भगवा और भक्तिमय होता है।
बताया जाता है कि सबसे पहले भगवान श्रीराम ने सुल्तानगंज से जल भरकर बाबाधाम तक की कांवड़ यात्रा की थी। इसलिए लोग आज भी उस परंपरा का पालन करते हुए हर साल सावन में कांवड़ लेकर जल चढ़ाने बाबा के दरबार में जाते हैं। इस कांवड़ यात्रा के दौरान कई लोगों के पैर में छाले तक पड़ जाते हैं। सुल्तानगंज से बाबाधाम की यात्रा श्रद्धालु अपनी क्षमता के हिसाब से करते हैं। कई लोग चार-दिन भी लगाते हैं तो कई 24 घंटे में पूरा कर लेते हैं। जो लोग इस कावड़ यात्रा को 24 घंटे में पूरा करते हैं उन्हें 'डाक बम' कहा जाता है। सरकार की ओर से इन्हें रास्ते में कोई दिक्कत ना हो इसके लिए पास और कई सुविधाएं भी प्रदान की जाती है।
बाबाधाम पहुंचने पर कांवरिया मंदिर का ध्वजा देखते ही उसे दूर से प्रणाम कर रास्ते में कोई गलती हुई हो तो उसे माफ करने के लिए क्षमा याचना करते हुए दंड बैठक लगाते हैं। फिर शिवगंगा में डुबकी लगा बाबा बैद्यनाथ मंदिर में प्रवेश करते हैं। मंदिर में प्रवेश कर भक्त 12 ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा बैद्यनाथ को गंगा जल अर्पित करते हैं। देवों के देव महादेव का घर होने के कारण इसे देवघर भी कहते हैं।
वैसे इस शहर का नाम देवघर है, लेकिन यह बाबाधाम या बैद्यनाथ धाम के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि यहां सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, इसलिए यहां के बाबा भोलेनाथ के शिवलिंग को 'कामना लिंग' भी कहा जाता हैं। इस बैद्यनाथ धाम को वैद्य नाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु खुद को सदा निरोगी होने का वरदान मांगने आते हैं। मान्यता है कि इस वैद्य धाम में आने से सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है। यहां जल चढ़ाने के बाद श्रद्धालु पास ही बाबा बासुकीनाथ मंदिर में भी जलाभिषेक करते हैं।
वैद्यनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंग में एक होने के साथ 51 शक्ति पीठों में से एक है। मान्यता है कि माता सती का हृदय यहीं देवघर की धरा पर गिरा था। उसी स्थल पर भोलेनाथ का कामना लिंग स्थापित हुआ। मंदिर परिसर में भगवान विश्वकर्मा के बनाए भव्य 72 फीट ऊंचे बाबा बैद्यनाथ मंदिर के अलावा अन्य 21 मंदिर हैं। बाबाधाम के मुख्य मंदिर के शीर्ष पर त्रिशूल नहीं, पंचशूल है। मान्यता है कि किसी कारणवश लिंग के दर्शन ना हो पाए तो पंचशूल के दर्शन मात्र से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं।
भगवान शिव के कैलाश छोड़ने की बात सुन सभी देवता चिंतित हो गएं। वे भगवान विष्णु के पास गए। तब उन्होंने लीला और वरुण देव से आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। आचमन करने के बाद शिवलिंग को लेकर लंका विदा होने पर रावण को रास्ते में देवघर के पास लघुशंका लगी। एक ग्वाले बैजू को शिवलिंग पकड़ा रावण लघुशंका करने चला गया। ग्वाले के भेष में स्वयं भगवान विष्णु थे। काफी देर होने पर जब रावण नहीं लौटे तो ग्वाले ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया। इसके बाद शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। तभी से यह स्थान बैजू ग्वाले के नाम पर बैद्यनाथ धाम और रावण के कारण रावणेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।
बाबाधाम आने वाले भक्त घर वापस जाते वक्त अपने साथ यहां से प्रसाद के रूप में पेड़ा, चूड़ा, सिंदूर, बद्धी माला लेकर जाते हैं। यहां के पेड़े का स्वाद दुनिया के किसी भी पेड़े में नहीं मिलेगा। तिरुपति के लड्डू की तरह ही यहां का पेड़ा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। गांव से जो लोग बाबाधाम कांवड़ लेकर जाते हैं वो आने के बाद पूरे गांव में बाबा के प्रसाद पेड़ा को बांटते हैं।
आसपास के दर्शनीय स्थल
नौलखा मंदिर
बाबा बैद्यनाथ मंदिर से करीब 2 किलोमीट की दूरी पर यह मंदिर है। 146 फीट ऊंची इस मंदिर को बनाने में करीब साठ साल पहले नौ लाख रुपये की लागत आई थी, इसलिए इसे नौलखा मंदिर कहते हैं। राधा-कृष्ण का यह मंदिर भारतीय वास्तुशिल्प का एक भव्य नमूना है।
त्रिकुट पहाड़
देवघर से करीब 16 किलोमीटर दूर त्रिकुट पहाड़ है। पहाड़ की तीन चोटियों के नाम ब्रह्मा, विष्णु और महेश होने के कारण इसे त्रिकूट पहाड़ कहा जाता है। विष्णु चोटी पर रोपवे से भी जा सकते हैं। यह एक रोमांचक पर्यटन स्थल के साथ लोकप्रिय पिकनिक स्थल भी है। यहां त्रिकूटांचल मंदिर भी है।
बासुकीनाथ मंदिर
वैद्यनाथ धाम मंदिर से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित है बासुकीनाथ मंदिर। बासुकीनाथ मंदिर परिसर में अलग-अलग देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं।
कैसे पहुंचे
बाबाधाम देवघर रेल, सड़क और हवाई मार्ग से देश के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। देवघर में जल्द ही एयरपोर्ट शुरू होने वाला है। उम्मीद है इसी साल सितंबर में यहां से हवाई सेवा शुरू हो जाएगी। फिलहाल नजदीकी हवाई अड्डा पटना करीब 275 किलोमीटर दूर है। यहां का मुख्य रेलवे स्टेशन जसीडीह करीब सात किलोमीटर की दूरी पर है।
कब पहुंचे
आम तौर पर लोग बरसात में कहीं जाने से बचते हैं लेकिन बाबाधाम की कांवड़ यात्रा श्रावण के महीने में ही शुरू होती है। इसलिए यहां आप सालों भर आ सकते हैं। यहां ठहरने और खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था है। यहां आपको कोई दिक्कत नहीं होगी।