आमतौर पर, श्रद्धालु जब मंदिर जाते हैं तो फूल, मिठाई, फल, पत्ते, पानी और दूध आदि चढ़ाते हैं। लेकिन हर मंदिर में ऐसा ही हो, यह जरूरी नहीं है। गुजरात के सूरत में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां पर लोग इन सभी चीजों के अलावा जिंदा केकड़े को श्रद्धास्वरूप अर्पण करते हैं। खासतौर से, सूरत के मंदिर में भक्त विशेषरूप से मकर संक्रांति के दिन जिंदा केकड़ों को चढ़ाते हैं। यह भारत के बारे में बहुत कुछ बताता है कि हम सभी की अपने देवताओं की धार्मिक मान्यताएं हैं। यह वह देश है, जहां धर्म सब से ऊपर है और हर व्यक्ति अपनी श्रद्धा व मान्यता के अनुसार, ईश्वर की आराधना करता है। इसी क्रम में सूरत का रामनाथ शिव घेला मंदिर बेहद विशिष्ट है। सूरत के उमरा गांव के रामनाथ शिव घेला मंदिर में केकडे चढ़ाना वहां लोगों की मान्यताओं का एक बड़ा उदाहरण है। यकीनन ईश्वर को भेंट चढ़ाने का यह तरीका बेहद अनोखा है, लेकिन इसके पीछे लोगों की अपनी एक मान्यता है। तो चलिए जानते हैं सूरत के इस विशेष शिव मंदिर के बारे में-
सदियों पुरानी है यह परंपरा-
इस मंदिर में मकर संक्रांति के उत्सव के दिन जीवित केकड़ों को चढ़ाया जाता है। यह सूरत में रामनाथ शिव घेला मंदिर से जुड़ी एक सदियों पुरानी परंपराओं में से एक है। इस मंदिर को लेकर एक किदवंती यह है कि मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान राम ने किया था। माना जाता है कि रामायण के समय में, जब एक दिन भगवान राम समुद्र पार कर रहे थे, तो उस समय समुद्र की लहर में बहकर एक केकड़ा उनके पैरों पर आ गया था। उस केकड़े को देखकर भगवान श्रीराम काफी खुश हुए। फिर उन्होंने केकड़े को आशीर्वाद दिया और कहा कि केकड़े भी पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा होंगे। भगवान राम ने यह भी उल्लेख किया कि मंदिर में प्रार्थना करने के बाद जो कोई भी यहां मंदिर में जीवित केकड़े चढ़ाएगा, उसे आशीर्वाद दिया जाएगा और उनकी इच्छा पूरी की जाएगी। और तभी से इस मंदिर में जिंदा केकड़े चढ़ाने की परंपरा लोकप्रिय हो गई। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति यहां पर जिंदा केकड़े चढ़ाता है, उसका सौभाग्य भी इसके साथ आता है। साथ ही ऐसा करने से लोगों को स्वास्थ्य समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है। इसलिए लोग बेहतर स्वास्थ्य के लिए और अपनी इच्छापूर्ति के लिए यहां पर जनवरी के महीने में मकर संक्राति के दिन जीवित केकड़े चढ़ाते हैं।
होती है भव्य पूजा-
यूं तो सूरत में श्रद्धालु अक्सर इस मंदिर का दौरा करते हैं, लेकिन मकर संक्राति के दिन यहां पर भक्तों का तांता लगता है। इतना ही नहीं, इस विशेष अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा एक विशेष पूजा की जाती है और शिवलिंग को अभिषेक किया जाता है। पूजा संपन्न होने के बाद भक्तों द्वारा जीवित केकड़ों को चढ़ाया जाता है।
नहीं होता केकड़ों को नुकसान-
चूंकि यह लोगों की श्रद्धा से जुड़ा विषय है, इसलिए हर व्यक्ति पूरी आस्था के साथ केकड़ों को भगवान शिव के पैरों में अर्पण करते हैं। पूजा पूरी तरह संपन्न हो जाने के बाद केकड़ों को बाद में मंदिर की ऑथारिटी द्वारा एकत्र किया जाता है और फिर पास के समुद्र में छोड़ दिया जाता है। ऐसे में पुरानी मान्यता को पूरा करते समय इन छोटे जीवों को कोई नुकसान नहीं होता है।
कान की बीमारियां दूर करने के लिए भक्त मांगते हैं मन्नत-
एकादशी के दिन भक्त यहां केकड़ा चढ़ाते हैं। इसके साथ ही कई श्रद्धालु जो कान के बीमारियों से पीड़ित हैं वह यहां मन्नत भी मांगते हैं। मान्यता है कि जीवित केकड़ा भगवान के शिवलिंग पर अर्पित करने से कान के रोग से मुक्ति मिलती है। वर्ष में एक बार ही एकादशी के दिन केकड़ा चढ़ाने से भक्तों को कान के रोगों से मुक्ति मिलती है।
श्मशान घाट पर लोग पूजा करते हैं-
वहीं इस मंदिर के नजदीक श्मशान घाट पर लोग आत्मा की शान्ति के लिए पूजा पाठ करते है. मृतक की पसंदीदा चीजें भी चढ़ाते है. जैसे कि मरने वाला अगर बीड़ी, सिगरेट, शराब पीने का शौकीन था या वो अन्य कोई खाने वाली चीज ज्यादा पसंद करता था तो वो सब आज के दिन मृतक के परिजन यहां चढ़ाते है. लोगों का ये मानना है की आज के दिन मृतक की पसंदीदा चीज चढ़ाने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है.