अगर आप किसी धार्मिक स्थल की सैर का ट्रिप प्लान कर रहे हैं और आपको वास्तुकला भी बेहद पसंद है। तो हम आपको ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां का वास्तुशास्त्र न सिर्फ आकर्षण का केंद्र है। बल्कि यहां की सीढ़ियों पर गूंजता संगीत सभी के दिलों को छूता है। जी हां बेहद अद्भुत है तमिलनाडु में स्थापित 'ऐरावतेश्वर मंदिर।' इसे 12वीं सदी में चोल राजाओं ने बनवाया था। बता दें कि यह मंदिर महान जीवंत चोल मंदिरों के रूप में जाना जाता है। साथ ही इसे यूनेस्को की ओर से वैश्विक धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है।
शानदार है मंदिर की नक्काशी -
ऐरावतेश्वर मंदिर की नक्काशी दर्शनार्थियों को बहुत भाती है। खासतौर पर यहां की तीन सीढ़ियां, जिन्हें इस प्रकार बनाया गया है कि इनपर जरा सा भी तेज पैर रखने पर संगीत की अलग-अलग ध्वनि सुनाई देने लगती है। इसके अलावा मंदिर के आंगन में दक्षिण-पश्चिमी कोने में 4 तीर्थ वाला एक मंडप बना है। इसपर बनी यम की छवि बरबस ही सबकी नजरें अपनी ओर खींच लेती है। साथ ही मंदिर में सात आकाशीय देवियों की भी आकृतियां बनी हुई हैं।
मंदिर का इतिहास-
ऐरावतेश्वर मंदिर तमिलनाडु के कुम्भकोणम के पास दारासुरम में स्थित है। ऐरावतेश्वर नाम के इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है। इस मंदिर को राजा राज चोला ने 12वीं सदी में बनवाया था। इसका नाम भी भगवान शिव के नाम पर ही रखा गया है। यह मंदिर देखने में बहुत ही शानदार और खूबसूरत है। इसकी बनावट और आकर्षण को समझना बहुत कठिन है। स्थानीय लोगों के मुताबिक मंदिर में भक्तों को अनोखी शांति मिलती है।
सीढ़ियों से निकलती है धुन-
इस मंदिर के एक हिस्से में तीन सीढ़ियां बनी हैं। जिस पर पैर रखने या हल्की सी ठोकर मारने पर संगीत की अलग-अलग धुन निकलती है। यह एकदम वैसा है, जैसे किसी संगीत के उपकरण से धुनों का निकलना। इस पर वैज्ञानिकों ने काफी खोज की, लेकिन 800 सालों में धुन निकलने के रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया। इसकी तमाम खासियतों को देखते हुए UNESCO ने 2004 में इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था। मंदिर के इस रहस्य को देखने और समझने के लिए दुनियाभर से हजारों लोग यहां पर आते हैं।
इस वजह से पड़ा ऐरावतेश्वर नाम-
इस मंदिर के स्तम्भ 80 फीट ऊंचे हैं और पत्थरों पर सुंदर नक्काशियां की गई हैं। इस मंदिर में दो भाग हैं। पहला भाग पत्थर का विशाल रथ है, जिसे घोड़े खींच रहे हैं। वहीं दूसरे भाग को बलि देने के लिए बनवाया गया था, जिस वजह से इसे बलिपीठ कहते हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत ने शिव जी की अराधना की थी और तभी से इस मंदिर का नाम ऐरावतेश्वर मंदिर हो गया।
वैज्ञानिक भी हैरान-
इन सीढ़ियों का रहस्य आज तक कोई भी नहीं सुलझा पाया। 800 साल में कई बार वैज्ञानिकों ने इस पर खोज की, लेकिन धुन निकलने के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सके। बता दें कि यहां दुनियाभर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर के स्तम्भ 80 फीट ऊंचे हैं और पत्थरों पर सुंदर नक्काशियां की गई हैं। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है।