धर्म, राजनीति और पैसे के बगैर भी कोई रह सकता है क्या? यह सवाल अक्सर हम सभी के दिलो-दिमाग को परेशान करता रहता है. तो हम आपको बता दें कि एक अनोखी सी जगह ऐसी भी है जो इन सारी अपेक्षाओं पर खरी उतरती है...
क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी जेब से पैसे नदारद हों और आप चैन की सांस ले रहे हों? आप धर्म से ऊपर उठ कर जिंदगी जी रहे हों. राजनीति आपके घर में दखलंदाजी न कर रही हो. तो पुड्डुचेरी के विलुप्पुरम जिले में पहुंच जाइए. सूर्योदय के शहर के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर ऑरोविले को आज कौन नहीं जानता. ऑरोविले एक ऐसा शहर है जहां पूरी दुनिया के पुरुष और महिलाएं शांति से रहते हैं. हर तरह की राष्ट्रीयता से ऊपर. न कोई झगड़ा-झंझट और न कोई क्षुद्र राजनीति. ऑरोविले मानवीय संवेदना का चरम है.
इस शहर को मीरा अल्फासा(मां) ने 28 फरवरी, 1968 में श्री अरविंदो सोसाइटी प्रोजेक्ट के तहत स्थापित किया था. इस शहर को रोजर एंगर ने डिजाइन किया था. इस शहर की स्थापना करने वाली 'मां' का मानना था कि यह यूनिवर्सल टाउनशिप भारत में बदलाव की हवा लाएगा.
ऑरोविले में आपको मानवीयता का चरम बिंदु देखने को मिलेगा. यहां पूरी दुनिया के 50 अलग-अलग देशों से लोग आते हैं. हर जाति, वर्ग, समूह, पंथ और धर्म के लोग यहां रहते हैं. यहां फिलहाल सिर्फ 2,400 लोग रहते हैं.
यहां धर्म, राजनीति और पैसे की कोई जरूरत नहीं -
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा किस प्रकार संभव है. तो हम आपको बता दें कि यहां लोग धार्मिकता के बजाय आध्यात्मिकता को अधिक तरजीह देते हैं. इस शहर के बीचोबीच एक मातृमंदिर है और योग का अनुसरण कर रहे लोग इस शहर में बहुसंख्यक हैं. यहां 900 की क्षमता वाली एक असेंबली है और यहां की आतंरिक दिक्कतों का निपटारा यहीं के लोग करते हैं. लोग एक-दूसरे की भाषा नहीं समझ पाते इसके बावजूद वे अपना सारा काम बिना रुकावट के करते हैं. यहां लोग बाहर से चीजें आयात-निर्यात करने के लिए ही पैसे का इस्तेमाल किया करते हैं. इसके अलावा यहां सभी चीजों के मूल्य न्यूनतम हैं. यहां सांसारिक सुखों को बिना वजह की तरजीह नहीं दी जाती.
तो भैया आप कब ऑरोविले के लिए निकल रहे हैं