भूटान भारत का वो पडोसी देश हैं जहाँ के बारे मे प्रचलित हैं कि खुशहाली इस देश मे सफलता का एक प्रमुख मापदंड हैं। यहाँ बर्फीले पहाड़ से लेकर ,शांत बौद्ध मठ ,घने जंगल ,हरे भरे मैदान,शुद्ध हवाएं और खुश एवं शांतिप्रिय नागरिक आपके दिमाग को एकदम शांत और तरोताजा कर देंगे। 1999 तक तो यहाँ के लोग टीवी एवं इंटरनेट से ही दूर रहे। आपको जानकर आश्चर्य होगा यह विश्व का एकमात्र देश हैं जो कार्बन डाय ऑक्साइड का अवशोषण ,इसके उत्पादन से ज्यादा करता हैं। खैर ,भूटान के बारे मे तो लिखने को काफी कुछ हैं। लेकिन आज हम चलते हैं भूटान के 'पारो' शहर के ऐसे विश्वप्रसिद्ध बौद्ध मठ की सैर पर ,जो दूर से ऐसा लगता हैं जैसे की घने जंगल और पहाड़ों के बीच उस पर टंगा हुआ हैं ,जैसे की पेड़ों पर घोसलें । भूटान जाने वाला हर पर्यटक ये सपना तो लेके जाता ही हैं कि वो एक बार ट्रेक करके इस मठ तक पहुंच कर दर्शन कर आये।
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इस मठ को तक्तसांग मठ /Taktsang Monastery भी कहा जाता है।'पारो' शहर से इस मठ के अंतिम वाहन योग्य रोड की दुरी करीब 10 किमी हैं इसके बाद यहाँ करीब 10 -11 किमी का राउंड पहाड़ी ट्रेक करके ही मठ पर जाकर वापस आया जा सकता हैं।वैसे ये पैदल ट्रेक ज्यादा खतरनाक तो नहीं हैं ,परन्तु ,जैसा कि मैं तेज बारिश के समय इस ट्रेक पर गया था ,तो कह सकता हूँ कि बारिश के दिनों मे यह ट्रेक इतना जोखिम भरा हो जाता हैं कि कई लोग बीच रास्ते से ही वापिस लौट जाते हैं। जहाँ वाहनों का अंतिम पॉइंट अथवा पार्किंग हैं वही से इसका टिकट खरीद कर आपको मठ तक ट्रेक करके जाना होता हैं।
तो चलो ट्रेक पर आगे बढ़ते हैं। टिकट काउंटर के बाद ट्रेक शुरू करने के लिए सीधा आप एक छोटे से बाजार से होके पहाड़ों की ओर बढ़ते हैं। यह बाज़ार करीब 200 से 300 मीटर तक फैला हैं जहाँ से आप ट्रैकिंग के लिए छड़ी खरीद सकते हैं तथा कुछ यादगार सामान और ज्वेलरी आप ले सकते हैं।यहाँ कोई दुकाने नहीं हैं बल्कि 200 300 मीटर लम्बे छज्जे के नीचे दोनों ओर ये लोग अपने सामन खुले मे बेचते हैं। जैसे ही यहाँ से आप पहाड़ों की ओर बढ़ते हैं ,आपके सामने एक छोटा सी बौद्ध मठ जैसी ईमारत मिलेगी जिसमे बौद्ध प्रार्थना चक्र घूमते रहते हैं। इस से आगे आपका चढ़ाई वाला क्षेत्र चालु हो जाता हैं। आप पाएंगे जगह जगह ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर हर तरफ रंग बिरंगे बौद्ध प्रार्थना ध्वज बंधे हुए होंगे। पहाड़ो पर कोई रास्ते बने हुए नहीं हैं ,आपको बस टूटी फूटी पगडंडियों से चढ़ते जाना हैं। कही कही आप शॉर्टकट देख के चट्टानों से भी जा सकते हैं हालाँकि ये खतरनाक होता हैं और ऐसा नहीं करना चाहिए। कुछ एकाध किलोमीटर बाद आपको पूरी पारो घाटी दिखाई देने लगेगी। आप पाएंगे की कुछ जगहों पर यह ट्रेक काफी चुनौतीपूर्ण होता हैं एवं कई लोगों के हाथ पैर जवाब देने लग जाते हैं और वो बीच रास्ते ही वापस लौट आते हैं। वैसे आप चाहे तो वहा खच्चर पर बैठ कर भी जा सकते हैं ,उसका किराया वही आप भूटानी या भारतीय दोनों मुद्रा में कर सकते है।
तेज बारिश के समय यह ट्रेक काफी खतरनाक हो जाता हैं। क्योकि पानी ऊपर से बहता हुआ पगडंडियों पर से गुजरने लग जाता हैं। ढलान और चढ़ाई जहा थोड़ी जयादा होती हैं वहा लोग फिसल कर गिर भी जाते हैं और कई जगह ऐसे ही रास्ते होने से लोग कई जगह गिरते हैं। ऊपर से यहां की मिटटी भी चिकनी मिलती हैं ,जगह जगह रास्तों पर बड़े बड़े गड्ढे पानी से भर जाते हैं तो लोग कभी उनमे गिर जाते हैं। कई जगह काफी सारा पानी भर जाने से चट्टानों और पहाड़ो पर चढ़ कर ही निकलना पड़ता हैं।खैर ,ये तो हुई बारिश की बात।आगे बढ़ते है -
कुछ 2 -3 किमी बाद ही आपको तक्तसांग मठ काफी दूर से दिखाई देने लग जायेगा और इसे देखकर ही आपकी सारी थकान दूर हो जायेगी।जो डर और थकान के कारण ट्रेक को अधूरा करने की सोचते हैं ,अगर वो इस पॉइंट तक भी पहुंच जाए तो फिर उनका आत्मविश्वास भी बढ़ जाता हैं। क्योकि इस मठ की असल खूबसूरती दूर से ही नजर आती हैं ,आस पास बहते झरने ,पहाड़ और खाई के बीच लटकता सा यह सफ़ेद और लाल रंग का मठ आपकी आँखे उसपर से हटने ना देगा। वैसे इस ट्रेक पर रास्ते मे कोई दूकान ,टॉयलेट्स ,कैफ़े वगैरह नहीं हैं लेकिन मठ पहुंचने से करीब डेढ़ किलोमीटर पहले ही एक खूबसूरत कैफेटेरिया आपको मिलेगा। जहाँ आप उचित रेट मे चाय ,नाश्ता ,खाना ले सकते हैं। अंदर बैठ कर और बाहर हरियाली मे बैठकर दोनों तरह से आप यहाँ कुछ भी खाने पीने का आनंद ले सकते हैं। यहाँ से आप मठ के काफी खूबसूरत फोटो ले सकते हैं। मठ दूर से ऐसा दीखता हैं जैसे कि यहाँ तक पहुंचने के लिए उड़ के ही जाना पड़ेगा। इसकी कहानी भी कुछ ऐसी ही हैं जो आगे बताने वाला हूँ। बस इस कैफेटेरिया के बाद अच्छे फोटोज लेने के लिए एक फोटो पॉइंट भी बनाया हुआ हैं। जहाँ से आगे निचे की ओर उतर कर आप एक 100 फ़ीट ऊँचे झरने के पास से एक खूबसूरत पूल से गुजरेंगे और लो आ गयी आपकी मंजिल।
टिकट चेक करवा कर आपको वहा के फ्री लाकर मे अपने सामान जैसे कैमरा ,मोबाइल ,पर्स आदि रखने होते हैं। उसके बाद आपको करीब 10 -10 लोगो का ग्रुप बना कर एक गाइड दे दिया जायेगा जो आपको पूरा मठ ,लोककथाओं के साथ बताएगा। पहाडी की कगार पर बना यह मठ अंदर कई हिस्सों में बटा हैं। यहां कुल चार मुख्य मंदिर हैं इसमें सबसे प्रमुख भगवान पद्मसंभव का मंदिर है तथा यह मठ भी भगवान पद्मसंभव से ही जुड़ा हुआ हैं। अंदर चारो मंदिर मे थोड़ी थोड़ी देर आपको मेडिटेट करने को भी बोला जाता हैं। सभी मंदिरो मे बड़ी बड़ी लोकदेवताओं की मुर्तिया लगी हुई हैं ।लोक कथाओं के अनुसार भगवान पद्मसंभव को स्थानीय भाषा में गुरू रिम्पोचे की कहा जाता है एवं इसी मठ की जगह पर भगवान पद्मंसभव ने तपस्या की थी। पहाडी की कगार पर बनी एक गुफा में रहने वाले राक्षस को मारने के लिए भगवान पद्मसंभव एक बाघिन पर बैठ तिब्बत से यहां उड़कर आए थे एवं फिर राक्षस को मार उन्होंने कुछ वर्ष इसी गुफा मे तपस्या की।भगवान के उड़ने वाली बाघिन पर बैठ कर इस पहाड़ी की गुफा मे पहुंचने के कारण ही इस मठ को टाइगर नेस्ट बोला जाता हैं। इसे ढंग से घूमने मे करीब 45 मिनट का वक़्त लगता हैं और जैसे ही आप बाहर आते हैं ,मठ की सीढ़ियों से निचे की गहरी खाई देखकर एक बारी तो आपका दिमाग घूम जाएगा।वापस जाने का ट्रेक भी वो ही रहता हैं बस अब चढ़ाई से ज्यादा उतार वाले रास्ते ज्यादा होने से आप कम समय मे निचे वापस पार्किंग तक पहुंच सकते हैं।
कुछ बाते जो यहाँ जाने से पहले आपको ध्यान मे रखनी चाहिए -
1.आपको यहाँ अच्छे ट्रेक शूज पहन के जाना चाहिए ताकि आपके पैर दर्द ना करे एवं इन जूतों की मजबूत पकड़ होनी चाहिए।
2. रेनकोट ,सनग्लासेज ,लाइट फ़ूड ,पानी की बोतल आपको साथ रखनी चाहिए।
3. सुबह जल्दी आपको ये ट्रेक चालू कर देना चाहिए। इसको पूरा करने मे करीब 8 -9 घंटे लगते हैं।
4. आपको अपने साथ कम से कम सामान ले जाने चाहिए।
5. अपने टिकट का विशेष रूप से ख्याल रखना चाहिए। क्योकि जब मैं 2018 मे वहां गया था तो ऊपर मठ के पास कोई टिकट नहीं मिलते थे। अब शायद एक काउंटर वहां लग गया हैं परन्तु वहां टिकट दोगुनी रेट मे मिलेंगे।
6. भाषा और मुद्रा दोनों भारतीय भी प्रचलित हैं।
उम्मीद हैं आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा।
-ऋषभ भरावा
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