उज्जैन यानी उज्जयिनी यानी आदि काल से देश की सांस्कृतिक राजधानी। महाकाल की यह नगरी भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली रही है। मध्य प्रदेश के बीचोंबीच स्थित धार्मिक और पौराणिक रूप से दुनिया भर में प्रसिद्ध उज्जैन को मंदिरों का शहर भी कहते हैं। शिप्रा नदी के तट पर बसे इस शहर में हर 12 वर्ष में सिहंस्थ कुंभ का आयोजन किया जाता है। बताया जाता है कि पवित्र शिप्रा नदी में डुबकी लगाने मात्र से लोगों को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भारत में कर्क रेखा उज्जैन से ही गुजरती है। बताया जाता है कि देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल मंदिर जहां स्थित है वह पृथ्वी का नाभि स्थान है और धरा का केन्द्र भी है। इसलिए खगोल, वेध, यंत्र और तंत्र के लिए उज्जैन का विशेष महत्व है। यहां महाकाल के निराकार शिवलिंग की पूजा होती है और साकार रुप में सावन के सोमवार को उनकी नगर में सवारी निकलती है।
महाकाल ज्योतिर्लिंग एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। तंत्र की दृष्टि से उनका विशिष्ट महत्त्व है। महाकालेश्वर मंदिर के शिव लिंग के बारे में माना जाता है कि वे यहां स्वयं प्रकट हुए हैं। पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना स्वयं प्रजापिता ब्रह्माजी ने की थी। मंदिर के प्रथम तल पर महाकालेश्वर, द्वितीय तल पर ओंकारेश्वर और तृतीय तल पर नागचंद्रेश्वर लिंग है। श्रद्धालुओं को नागचंद्रेश्वर लिंग का दर्शन सिर्फ नाग पंचमी के अवसर पर होता है।
महाकाल मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश, कार्तिकेय और मां पार्वती की प्रतिमाएं हैं। मंदिर के भीतर छत पर चांदी से बना एक विशाल रूद्रयंत्र है। इसके ठीक नीचे भगवान महाकालेश्वर का ज्योतिर्लिंग है। महाकाल के द्वार के सामने नंदी की प्रतिमा है। माना जाता है कि महाकाल के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। मंदिर परिसर में एक छोटा सा तालाब भी है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है।
महाकाल मंदिर में हर सुबह 4.00 बजे भस्म आरती होती है। भस्म आरती देखने के लिए 4 बजे सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है। भस्म आरती के समय का दृश्य बहुत ही अद्भुत रहता है। यह बड़ा ही रोमांचित करने वाला होता है। यह जीवन पर्यंत याद रखने वाला अनुभव होता है। इसके साथ ही महाकाल में सोमवार, महाशिवरात्रि, सोमवती अमावस्या, पंचकोसी यात्रा और सावन के महीने में काफी भीड़ रहती है।
उज्जैन में महाकाल मंदिर के और की कई दर्शनीय मंदिर हैं।
हरसिद्धि मंदिर
उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर चौरासी सिद्धपीठों में से एक है। मंदिर के सामने दो ऊंचे विशाल स्तंभ है। इस स्तंभ में 726 की संख्या में दीप जलाए जाते हैं। इन जलते हुए दीपों को देखना एक अलग ही अनुभव होता है।
काल भैरव मंदिर
उज्जैन आने वाले श्रद्धालु महाकाल और हरसिद्धि मंदिर में दर्शन के साथ ही शिप्रा नदी के तट पर स्थित काल भैरव मंदिर में भी दर्शन के लिए जरूर आते हैं।
सिद्धवट
उज्जैन से 5 किलोमीटर दूर शिप्रा नदी किनारे एक विशाल बरगद का पेड़ है। सिद्धवट नामक इस पेड़ के बारे में कहा जाता है इस वट वृक्ष को स्वयं मां पार्वती ने लगाया था। इसे पापमोचनतीर्थ के रूप में पूजा जाता है। लोग यहां श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने आते हैं।
मंगलनाथ मंदिर
इस मंदिर को मंगल का जन्मस्थान माना जाता है। माना जाता है कि यहां पूजा-अर्चना करने से सभी कार्यों की सिद्धि होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
गोपाल मंदिर
बाजार चौक में स्थित संगमरमर का यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। यहां भगवान कृष्ण के साथ देवी राधा की मूर्तियां हैं।
संदीपनि आश्रम
सांदीपनि आश्रम में ही भगवान कृष्ण, उनके भाइयों और सुदामा ने अध्ययन किया था। यहां महर्षि संदीपनि की मूर्ति के साथ भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा की भी मूर्तियां हैं। पास में ही गोमती कुंड है। माना जाता है कि इस कुंड के दर्शन मात्र से भक्तों की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
जंतर-मंतर वेधशाला
उज्जैन से कर्क रेखा गुजरने और धरा के केंद्र में होने के कारण खगोल विज्ञान में इस शहर का खास महत्व रहा है। ज्योतिषशास्त्र और खगोल के अध्ययन के लिए आमेर के राजा जयसिंह इस वेधशाला का निर्माण कराया था
इसके साथ ही उज्जैन आने वाले पर्यटक दुर्गादास की छतरी, भर्तृहरि गुफा, नवग्रह मंदिर, चौबीस खंबा मंदिर, गडकालिका मंदिर, नगरकोट की रानी और श्री चिंतामन गणेश मंदिर भी दर्शन करने जाते हैं।
कैसे पहुंचें:
उज्जैन देश के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रेल और बस सेवाएं सभी प्रमुख शहरों के लिए है। वायु मार्ग से यह इंदौर से जुड़ा है जो यहां से करीब 50 किलोमीटर दूर है।
कब पहुंचे-
फरवरी-मार्च और सितंबर से नवंबर के बीच आना अच्छा रहता है। लेकिन बाबा महाकाल की नगरी होने के कारण यहां सावन के महीने में श्रद्धालु काफी संख्या में आते हैं।
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