नरनाग मंदिर: सुरमई वादियों में दमकता इतिहास का एक गहना 

Tripoto
30th Apr 2021
Photo of नरनाग मंदिर: सुरमई वादियों में दमकता इतिहास का एक गहना by Poorvi S

पूर्वी श्रीवास्तव की कलम से

मंज़िल को मद्देनज़र रख कर चलना समझदारी तो है, मगर जनाब, कभी राह-ऐ-मंज़िल से भटक कर देखिए, क्या पता नज़र किस नायाब ज़र्रे पर थम जाए।

किस्सा कुछ यूं है कि उस दिन हम अपनी कश्मीर यात्रा के आखिरी चरण के लिए गुलमर्ग से सोनमर्ग के लिए चल पड़े। सही राह पे चल रहे हैं या नहीं, ये पक्का करने के लिए मैंने अपने मोबाइल में गूगल मैप खोला। और आदत से मजबूर कह लें या फिर खुशनसीब, उसी वक़्त मेरी नज़र एक हरे बिन्दु (जो कि स्थानीय जगह कि प्रसिद्ध स्मारकों का प्रतीक होता है) पर पड़ी। उस हरे बिन्दु से जो नाम सूचित हो रहा था, वह था - नारनाग मंदिर। बस फिर क्या था, झटपट राहें बदल गईं और हमने इस ऐतिहासिक स्थल के दर्शन करने का मन बने लिया।

नरनाग मंदिर - कहाँ स्थित और कैसे पहुंचें :

नरनाग मंदिर श्रीनगर से लगभग 50 किलोमीटर दूर, गांडरबल जिले में स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार ये मंदिर 8वीं सदी में कायस्थ नागा करकोटा वंश के शासक ललितदित्य ने बनवाया थाऔर ये भगवान शिव को समर्पित हैं। समय की मार इस नायाब स्थल पर कुछ ऐसी पड़ी की 11वीं और 12वीं सदी में इसे उस समय के शासकों के रौद्र का साक्षी बनना पड़ा और इसके काफी हिस्से क्षत-विखत हो गए। आज नरनाग मंदिर भारतीय पुराततव सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) की एक धरोहर है।

यदि स्वयं की गाड़ी से जा रहे हैं तो श्रीनगर से कंगन गाँव के रास्ते पर आगे बढ़ें। कंगन से लगभग 4 किलोमीटर पहले एक पलंग नाम की बस्ती से नरनाग का रास्ता उत्तर की तरफ को जाता है। पब्लिक बस से भी नरनाग तक पहुंचा जा सकता है। श्रीनगर से कई लोकल बसें कंगन के लिए चलती हैं। कंगन पहुँच कर आप नरनाग तक के लिए शेयर जीप ले सकते हैं।

Photo of Naranagh Temple by Poorvi S
Photo of Naranagh Temple by Poorvi S

गुलमर्ग से नरनाग का रास्ता बेहद सुरम्य है। घुमावदार रास्तों के बाद टनमर्ग से आगे बढ़कर समतल भूमि में जब हमने प्रवेश किया तो सुनहरे मैदाओं ने हमारा स्वागत किया। सरसों की बालियों से सजे ये मैदान यूं लग रहे थे जैसे सवेरे की धूप ने धरती को गले लगा लिया है। श्रीनगर पहुंचे तो देखा की झेलम नदी अपनी आदत के मुताबिक खिलखिला रही थी। ज़रा आगे बढ़े तो झेलम ने हुमसे विदा ली और सिंध नदी ने बाहें खोल कर हमारी आवभगत की। नदी से आँखें उठा कर दूर देखते तो पाते की बर्फ से ढके, आसमान जितने ऊंचे पहाड़ हमारे साथ साथ ही चल रहे थे। कभी कुछ पहाड़ों की गोदी मे खेलते बादलों से भी रू-ब-रू हो जाती।

Photo of नरनाग मंदिर: सुरमई वादियों में दमकता इतिहास का एक गहना by Poorvi S
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Photo of नरनाग मंदिर: सुरमई वादियों में दमकता इतिहास का एक गहना by Poorvi S
Photo of नरनाग मंदिर: सुरमई वादियों में दमकता इतिहास का एक गहना by Poorvi S

कुछ दूर और चले तो देखा की चरवाहों का एक गुट भेड़ों को चराने के लिए निकला है। हम उन्हे देख कर मुस्कुराए और उन्होने भी अपनी स्थानीय मधुर हसीं से हमार मन प्रसन्न कर दिया। कुछ छोटे-बड़े कस्बों से हो कर हम गुज़र रहे थे। रास्ता अब समतल से उठकर पहाड़ों की तरफ जाने लगा था। अपने चहुं-ओर इतनी खूबसूरती देख कर विश्वास कर पाना मुश्किल था की यह सब सच है या कोई सपना! खेलते हुए नन्हें बादल अब ज़रा हठ पर आ गए थे और जम कर बरसने को आतुर प्रतीत होते थे।

Photo of नरनाग मंदिर: सुरमई वादियों में दमकता इतिहास का एक गहना by Poorvi S
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मंदिर जब करीब 8 किलोमीटर दूर था तो वनगाथ नदी (जो की सिंध नदी की एक उपनदी है) पर बने एक पुल पर से हम गुजरे। कोमलता से प्रशस्त वनगाथ, दोनों तरफ प्रौढ़ से दिखने वाले पर्वत, बसंत के आ जाने का संदेश देते हुए गुलाबी, नारंगी व सुनहरे पेड़, और धरती की तरफ बढ़ते हुए बादल - इस नज़ारे को हम मंत्रमुग्ध हो कर कई मिनटों तक निहारते रहे। इस मोहक दृश्य से तंद्रा जब भंग हुई, तो हम आगे बढ़े और आखिरकार अपनी मंज़िल को समकक्ष पाया।

Photo of नरनाग मंदिर: सुरमई वादियों में दमकता इतिहास का एक गहना by Poorvi S
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नरनाग मंदिर शब्दों से परे, एक अद्भुत स्थान है। हरमुख पर्वत की गोद में बसा, चारों ओर से देवदार के घने जंगलों से घिरा और प्राचीन कलाकृति से सुसज्जित - इस मंदिर तक पहुँच कर ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई छिपा हुआ खज़ाना मिल गया है। मंदिर की ज़्यादातर दीवारें टूटी हुई थी और यह दो भागों में है। पहले भाग के मुख्य मंदिर को पार कर के करीब 100 मिटर आगे जाने पर दूसरे भाग के मंदिर दिखाई देते हैं।

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नरनाग मंदिर की ही तरह कश्मीर की एक अनछुई और अनसुनी वादी के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

हजारों पर्यटकों की भीड़ से दूर, इस जगह की असाधारण सुंदरता को शब्दों मे ढाल पाना मुझ जैसे साधारण जीव के लिए बहुत कठिन कार्य है। परंतु, लिखना ही पड़े तो मैं लिखूँगी की इतिहास की कई कहानियाँ इन टूटी हुई दीवारों में उकेरी हुई सी लगती हैं; वह गहरी आत्मीयता जो शहरों मे खो गयी है, यहाँ मिलती हुई सी लगती है। मन में आया की बस कुछ पल यहाँ बैठें, पर्वतों को चख लें, सुर्ख हवा को से गुफ्त-गु कर लें, कुछ दूर बहती धारा की अठखेलियों को सराह लें - फिर शहर से निकाल कर इन रास्तों पे आना ना जाने कब होगा।

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