जयपुर का पहला दिन खत्म हो चुका था। मैंने योजना से ज्यादा जगह भी देख ली थी । सलीम भाई का इसके लिए बहुत आभारी थी। पूरे दिन जयपुर घूमते हुए जल महल दिखाए दे ही रह था। लेकिन मैं रात का इंतजार कर रही थी। क्यों कि आज होली पूर्णिमा थी। मुझे पूरे चांद के रोशनी में जल महल को निहारना था। नाहरगढ़ पर सूर्यास्त देख कर में अभी जल महल के पास जा रहि थी। चंद्रोदय हो रहा था। लाल चांद अभी धीरेधीरे नीचे जलमहल के पास आ रहा था। वो खूबसूरत चांद, नीला पानी और रोशनी से चमकता हुवा जलमहल इस गुलाबी शहर की शोभा बढ़ा रहे थे। और मुझे उस पल से प्यार हो गया। और चंद्र आहे साक्षिला ये मराठी गाना गुनगुनाने लगी।
राजस्थान की विरासत दुनिया में एक अलग ही पहचान रखती है. यहां पर घूमने-फिरने की इतनी ऐतिहासिक जगह हैं. राजस्थान के इतिहास को समेटे हुए ऐसी एक जगह है जलमहल. जयपुर में स्थित जलमहल. जयपुर के सबसे बेशकीमती टूरिस्ट स्पोर्ट्स में से एक है.
300 साल पहले आमेर के महाराज ने 1799 में इस महल का निर्माण करवाया था. जलमहल के निर्माण के पीछे एक विशेष कारण था जिससे बहुत कम लोग परिचित हैं, जब 15 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में अकाल पड़ने पर आमेर के शासक ने बांध बनाने का निश्चय किया ताकि आमेर और अमागढ़ के पहाड़ों से निकलने वाली पानी को इकठ्ठा किया जा सके और पानी के निकास के लिए पानी के भीतर 3 आंतरिक दरवाजे बनाये और मानसागर झील बनाकर तैयार की गई.
इस झील की सुंदरता उस समय के राजाओं के आकर्षण का केंद्र थी और राजा अक्सर नाव में बैठ इसकी सैर किया करते थे राजा सवाई जयसिंह ने झील के बीचों-बीच महल बनाने का निश्चय किया ताकि वह अश्वमेघ यज्ञ के बाद अपनी रानी और पंडितों के साथ झील के मध्य में शाही स्नान कर सके. झील के बीच अपनी दास्तां सुनाता जलमहल पांच मंज़िला इमारत है जिसकी 4 मंजिल पानी के भीतर बनी हैं और एक पानी के ऊपर नजर आती है.
कैसे पहुंचे :
जयपुर का जलमहल आमेर रोड पर रामगढ़ चौराहे से थोड़ा सा आगे जाने पर दाईं ओर है। शहर के अजमेरी गेट से इसकी दूरी लगभग सात किमी. है। यहां बस या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है।