इतिहास
यहां वेरावल बंदरगाह पर स्थित सोमनाथ मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। सोमनाथ का उल्लेख ऋग्वेद, शिवपुराण, स्कंदपुराण और श्रीमद्भागवत में मिलता है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि मूल मंदिर कितना पुराना था।
सोमनाथ बारह मुख्य ज्योतिर्लिंगों में से एक है। दिलचस्प यह है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा सोमनाथ से शुरू होती है और इसके पीछे ऐसी मान्यता ऐसे है कि श्रीकृष्ण जब भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे और एक शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आँख समझ गलती से तीर मार दिया था, तब श्रीकृष्ण ने ये देह त्यागकर सोमनाथ मंदिर से ही वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया।
क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा शिवलिंग भी है जो पौराणिक आधार पर हर युग में मौजूद रहा है और आज तक 7 बार ब्रह्मा का पद 7 विभिन्न प्राणों द्वारा भरा गया है और सात बार ही नई सृष्टि का निर्माण हो चुका है। आज का समय किस सृष्टि में आता हैं ? इस उत्तर को जानने के लिए हमे चलना होगा भारत के पश्चिम में स्थित श्रीकृष्ण की द्वारिका के नजदीक यानी गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में.
पौराणिक इतिहास :
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में स्कंदपुराण के प्रभासखंड में उल्लेख है कि - यह शिवलिंग हर सृष्टि में यहां मौजूद रहा है, हर नई सृष्टि के सृजन के साथ इसका नाम बदल जाता है। इस क्रम में जब वर्तमान सृष्टि का अंत होगा और ब्रह्मा नई सृष्टि का निर्माण करेंगे तब - सोमनाथ शिवलिंग का नाम 'प्राणनाथ' होगा। सरल शब्दों कहा जाए तो प्रलय के बाद जब नई सृष्ट आरंभ होगी तब सोमनाथ ही प्राणनाथ कहलाएंगे। पार्वती के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए महादेव कहते हैं कि अब तक सोमनाथ के आठ नाम हो चुके हैं।
स्कंदपुराण में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सृष्टि में अब तक 6 ब्रह्मा हो चुके हैं। यह सातवें ब्रह्मा का युग है, इन ब्रह्मा का नाम है 'शतानंद' है। शिव जी कहते हैं कि इस युग में मेरा नाम सोमनाथ है। बीते कल्प से पहले जो ब्रह्मा थे उनका नाम विरंचि था। उस समय इस सोमनाथ में स्थित शिवलिंग का नाम मृत्युंजय था।
दूसरे कल्प में ब्रह्मा जी पद्मभू नाम से जाने जाते थे, उस समय सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम कालाग्निरुद्र था।तीसरे ब्रह्मा की सृष्टि स्वयंभू नाम से हुई, उस समय सोमनाथ का नाम अमृतेश हुआ। चौथे ब्रह्मा का नाम परमेष्ठी हुआ, उन दिनों सोमनाथ अनामय नाम से विख्यात हुए। पांचवें ब्रह्मा सुरज्येष्ठ हुए तब इस ज्योतिर्लिंग का नाम कृत्तिवास था। छठे ब्रह्मा हेमगर्भ कहलाए। इनके युग में सोमनाथ भैरवनाथ कहलाए
पुराणों से इतर
आइए अब जानें सोमनाथ मंदिर की कुछ ऐसी बातें जो आधुनिक लिखे गए इतिहास के पन्नों में मिलती हैं। यह मंदिर कई बार टूटा और कई बार बना। मान्यता है कि वर्तमान सोमनाथ मंदिर से पहले छह बार यह मंदिर बना और टूटा। विशेषकर विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सोमनाथ मंदिर को कई बार नष्ट किया और इस क्षेत्र के स्थानीय शासकों द्वारा इसे फिर से बनाया गया।
शुरु में(ईसवी सन् से पहले) एक मंदिर यहां पर अस्तित्व में था। दूसरी बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक शासकों ने किया। अगली यानी आठवीं सदी में सिन्ध के अरब गवर्नर जुनायद ने सेना भेजकर इसे नष्ट किया। उसके बाद गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ई. में तीसरी बार इसका पुनर्निर्माण कराया। इस मंदिर की सम्पन्नता और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी।
अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा और उससे ही प्रभावित होकर महमूद ग़ज़नवी ने सन 1024 ई में करीब 5000 की फौज के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, सम्पत्ति लूटी और उसे ध्वस्त कर दिया। उस समय करीबन 50,000 लोग मंदिर के अंदर पूजा अर्चना कर रहे थे, लगभग सभी का बर्बरता पूर्वक कत्ल कर दिया गया था। क्या बूढ़े, बच्चे और औरतें सभी को लूटा और जान से मारा बलात्कार किया। एक शिलालेख में विवरण है कि महमूद के हमले के बाद इक्कीस मंदिरों का निर्माण किया गया। संभवत: इसके पश्चात भी अनेक मंदिर बने होंगे। बाद में गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः सन् 1706 में तुड़वा दिया।
वर्तमान में जो मंदिर है उसकी संरचना 5 वर्षों में बनी थी और इसे 1951 में पूरा किया गया। सरदार वल्लभभाई पटेल ने मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया था, जिसका उद्घाटन भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। मौजूदा दौर के मंदिर की वास्तुकला चालुक्य शैली की है, जिसे कैलाश महामेरु प्रसाद भी कहा जाता है। मुख्य मंदिर की संरचना एक गर्भगृह, एक ज्योतिर्लिंग, एक सभामंडप और एक नृत्यमंडप से मिलकर बनी है। मुख्य शिखर 150 फीट ऊंचा है। शिखर के ऊपर कलश है जिसका वजन लगभग 10टन है। ध्वजदंड (flagpole) 27 फीट ऊंचा और 1 फीट परिधि का है। मंदिर को चार चरणों में बनाया गया था।
पुरातन मंदिर में सोने से बने हिस्से का निर्माण चंद्रमा ने करवाया था। चांदी से बना हिस्सा सूर्य द्वारा बनाया गया था। चंदन की लकड़ी से बना हिस्सा श्रीकृष्ण द्वारा बनवाया गया था। पत्थर की संरचना का निर्माण भीमदेव नामक शासक ने करवाया था।
नामकरण
सोमनाथ मंदिर के नामकरण के बारे में पौराणिक लेख बताते हैं कि एक बार प्रजापति दक्ष ने पक्षपात करने के लिए चन्द्रमा यानी सोम को क्षय (तेज क्षीण होना) होने का शाप दे दिया। शाप से मुक्ति के लिए शिवभक्त चन्द्रमा ने अरब सागर के तट पर शिवजी की तपस्या की। परिणामस्वरूप शिवजी ने चन्द्रमा को शाप मुक्त कर दिया और चंद्रमा ने जिस शिवलिंग की स्थापना और पूजा की वही शिव के आशीर्वाद से सोमेश्वर यानी सोमनाथ के नाम से जाना गया।
यहीं पर तपस्या से पहले चंद्रमा ने त्रिवेणी संगम पर स्नान किया था। इसलिए त्रिवेणी स्नान की बहुत मान्यता है। साथ ही अत्यंत वैभवशाली (धार्मिक महत्व और धन दोनों से ही अति महत्वपूर्ण) होने के कारण कई बार यह मंदिर तोड़ा (धन लूटने और इस्लाम का प्रसार करने के लिए) गया तथा पुनर्निर्मित (धार्मिक और सामाजिक योगदान की जिम्मेदारी निभाने हेतु) भी किया गया(हिन्दू शासकों द्वारा)।
बाणस्तंभ
मंदिर के दक्षिण में समुद्रतट की ओर एक स्तंभ है जिसके शीर्ष पर एक ठोस गोला है जिसमें एक बाण आर पार हुआ ऐसा बनाया गया है। बाणस्तम्भ या बाण के चिन्ह वाला स्तंभ मुख्य मंदिर के परिसर का एक हिस्सा है। इसका तीर वाला निशान दक्षिण ध्रुव की ओर संकेत करता है, जिससे पता चलता है कि मंदिर और अंटार्कटिका के बीच कोई भूखंड नहीं है ये बात उस समय भी यहां के लोगों को मालूम थी। पानी में दक्षिण ध्रुव की ओर जाने वाले मार्ग को अबाधित समुद्र मार्ग कहा जाता है, जिसका अर्थ है ऐसा मार्ग जहां कोई अवरोध न हो।