एलोरा की गुफाएं पहाड़ और चट्टानों को काटकर बनाई गई एक ऐसी जगह है जहां पत्थर भी गीत गाते हैं। यहां आकर आप पत्थरों को काटकर, तराशकर बनाई गई गुफाओं को देखकर भारतीय कारीगरी और वास्तुकला की अद्भुत दुनिया में खो जाएंगे। एलोरा की गुफाओं का नाम जेहन में आते ही आज से 27 साल पहले चला जाता हूं। उस समय औरंगाबाद तरुण भारत ग्रुप में काम करता था। रविवार को छुट्टी के दिन एलोरा जाने का मौका मिला और यहां की गुफाओं को देखकर दंग रह गया था।
एलोरा को यूनेस्को की ओर से विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। यह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में ही स्थित है। यह यहां के रेलवे स्टेशन से करीब 30 किलोमीटर दूर है। बताया जाता है कि इन गुफाओं को 6वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया था और इसका निर्माण राष्ट्रकूट वंश के समय किया गया था। यहां चट्टानों को काटकर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के मंदिर बनाए गए हैं। चट्टानों पर शानदार नक्काशी की गई है। यहां कुल 34 गुफाएं हैं। इन गुफाओं में 12 बौद्ध गुफाएं, 17 हिंदू गुफाएं और 5 जैन गुफाएं हैं। ये गुफाएं करीब दो किलोमीटर में फैला हुआ है।
एलोरा गुफा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर कैलाश मंदिर है। इसे चट्टानों को काटकर बनाया गया है। भगवान शिव का यह महाराष्ट्र का सबसे प्राचीन और बड़ा रॉक कट मंदिर हैं। इस मंदिर में पहाड़ को तराश कर बनाई गई अन्य हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी है। इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। यहां राज्य के एक प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। यहां प्रतिदिन दुनिया भर से हजारों पर्यटक आते रहते हैं।
कैसे पहुंचें-
औरंगाबाद देश के सभी प्रमुख शहरों से रेल, बस और हवाई संपर्क से जुड़ा हुआ है। आप मुंबई और अन्य जगहों से रेल और हवाई जहाज से औरंगाबाद पहुंच कर ऑटो या टैक्सी से एलोरा पहुंच सकते हैं। यहां यातायात की बेहतर सुविधा मौजूद है।
कब जाएं घूमने-
एलोरा घूमने का सबसे बढ़िया समय अक्तूबर-नवंबर से लेकर मार्च-अप्रैल तक है। गर्मी के मौसम में यहां पत्थर गर्म हो जाते हैं जिससे आपको परेशानी हो सकती है। सावन के महीने में भी यहां काफी मजा आता है। बारिश के बीच पहाड़ पर हरियाली के बीच गुफाओं में आप एक अलग ही आनंद का अनुभव करेंगे।
यह पोस्ट मूल रूप से जिओ जिंदगी ब्लॉग पर लिखा गया है.
-हितेन्द्र गुप्ता