समुद्रतल से 8048 फीट/2455 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जाखू पहाड़ी के घने देवदार के जंगलों के बीच बना हुआ है, संकटमोचक हनुमान का विश्व प्रसिद्ध जाखू मंदिर।
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हममें से हर एक यात्री ने अपने बचपन में शिमला घूमने का सपना तो पक्का देखा होगा। शिमला, हिमाचल प्रदेश की राजधानी और एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। दिल्ली, चंडीगढ़ से बहुत आसानी से और पूरे साल पहुंचा जा सकने वाला ये हिल स्टेशन अपने अंदर और आसपास बहुत सी ऐसी प्यालियां लिए है जो एक घुमक्कड़ को अपनी प्यास बुझाने का भरपूर मौका देंगी, तो आइये फिर जाने उनमें से एक विश्व प्रसिद्ध जाखू पहाड़ी और हनुमान मंदिर के बारे में.....
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मंदिर मालरोड, शिमला से 2.5 किलोमीटर दूर है। महाकाव्य रामायण के अनुसार जब राम-रावण युद्ध के दौरान मेघनाद के अस्त्र से लक्ष्मण घायल होकर मूर्छित हो गए; तब संजीवनी बूटी लेने के लिए आकाश मार्ग से हिमालय की ओर जाते हुए हनुमान जी की नजर यहां तपस्या कर रहे ऋषि यक्ष पर पड़ी. वे उनसे मिलने के लिए यहां रुके। यक्ष ऋषि से उन्होंने संजीवनी बूटी की जानकारी ली और साथ ही वापस जाते हुए मिलकर जाने का वचन दिया। वहां से हनुमान जी द्रोण पर्वत की तरफ चल पड़े. परंतु कालनेमि नामक एक राक्षस के जाल में फंसने से हुए समय के अभाव में वो एक अन्य तीव्र मार्ग से अयोध्या के रास्ते चल पड़े. उनके ना लौटने पर यक्ष ऋषि ने व्याकुल हो हनुमान जी का ध्यान किया और हनुमान जी ने उन्हें दर्शन दिया। माना जाता है कि इसके बाद इस स्थान पर हनुमान जी की स्वयंभू मूर्ति का प्राकट्य हुआ। इसे ही स्थापित कर यक्षऋषि ने इसी स्थान पर हनुमान जी का मंदिर बनवाया. आज भी यह मूर्ति मंदिर में स्थापित है और दूर-दूर से यहां तक विदेशों से बड़ी संख्या में लोग उनके दर्शन करने आते हैं. इस प्रकार इस मंदिर की स्थापना रामायण काल में हुई थी जिसका मतलब हुआ आज से करीबन 7000 साल पहले यानी लगभग 5000 ई.पू.. प्राचीन मंदिरों में इससे पुराना तथ्यात्मक जानकारी वाला दूसरा मंदिर दुर्लभ है।
खैर, आगे बढ़ते हैं तो हम बात कर रहे थे ऋषि यक्ष की, तो इनके नाम पर ही समय के बढ़ने के साथ इस स्थान का नाम कुछ ऐसे, यक्ष - याक - याकू से आज जाखू हो गया. हनुमान जी विश्राम करने और संजीवनी बूटी की जानकारी लेने के लिए जाखू पर्वत के जिस स्थान पर उतरे थे, वहां आज भी उन पद चिह्नों को संगमरमर से बनवा कर दर्शन के लिए खुला रखा गया है.
मंदिर परिसर में बहुत सारे बंदर हैं, इनके बारे में माना जाता है कि ये बंदर पीढ़ियों दर पीढ़ियों से यानी, रामायण काल के उस समय से हनुमान जी के इंतज़ार में इस पहाड़ी पर रहती आई हैं। बाहर प्रांगण में हनुमान जी की, 108 फीट ऊंची विशाल और भव्य प्रतिमा स्थापित है। इसे आप शिमला में कहीं से भी खड़े होकर आराम से देख सकते हैं. इसका उद्घाटन नवंबर 2010 में हुआ था। निर्माण की लागत 1.5 करोड़ रुपए अति थी। यह यहां का मुख्य आकर्षण भी है।
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जाखू पहाड़ी की इस चोटी से शिमला शहर का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है। यहां आपको अपने सामने प्रकृति के द्वारा बनाई गई, अत्यधिक मनोहारी चित्रकारी नीले और कभी कभी बादलों के छींटों से ढके आसमान के कैनवस पर जीवंत हो उठती दिखाई देती है। खासकर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय के नज़ारे का वर्णन शब्दों में कर पाना मुश्किल है, फिर भी, यह दृश्य आपको 3D वॉलपेपर से भी HD ही लगेगा। ये बात तो पत्थर की लकीर है, खुद तस्वीरें इसको बयां कर रही हैं। यहां आपको रोपवे की सुविधा मिल जाती है, जो आपको पहाड़ों की रानी शिमला के आस पास के कभी ना भूलने वाले विहंगम दृश्य दिखाती है। यहां के बंदर इंसानों से नहीं डरते और खाने के लिए पर्यटकों की ओर बढ़ते हैं। वे अक्सर पर्यटकों की जेब भी चेक कर लेते हैं, हालांकि वे आक्रामक नहीं हैं। लेकिन फिर भी यह सलाह दी जाती है कि मंदिर जाते समय अपने हाथों में कुछ भी न रखें। कुल रास्ता लगभग दो से ढाई घंटे का है, पर हाँ बूढे और ज्यादा वज़न वाले यात्री ये ध्यान रखें कि सीढियां काफी ऊंची चढ़ाई वाली हैं। आप रोप वे का इस्तेमाल कर सकते हैं और जाखू पहाड़ी से शिमला का दृश्य देखने का लुत्फ उठा सकते हैं।
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ये कुछ अन्य स्थान जो आप आसपास देख सकते हैं-
एक बेहतरीन और शहर की भीड़भाड़ से अलग खूबसूरत हिल, सर्दियों में बर्फ के शानदार नजारों के लिये प्रसिद्ध।
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