गढ़वाल हिमालय की गोद में स्थित सनातन संस्कृति का शाश्वत संदेश देने वाले, मंत्रमुग्ध कर देनेवाले और अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने लबादे में ओढ़े, हिन्दुओं के अडिग विश्वास के प्रतीक केदारनाथ के बारे में जानने के लिए चलिए चलते हैं हिमालय की देवभूमि उत्तराखंड की ओर, जहां रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है केदारनाथ ज्योतिर्लिंग।
केदारनाथ पर्वतशिखर समुद्रतल से करीब 7 किमी ऊंचा है (6,940 मीटर/22000 फीट) और तीन अन्य चोटियों के साथ मंदिर के बैकग्राउंड में एक विशाल कैनवस की तरह स्थित है। सच में यह दृश्य आपकी आंखों को कुछ देर के लिए ऐसा स्तब्ध कर देता है कि आप चाहकर भी उन्हें बंद नहीं कर पाते। प्रकृति ही स्वयं भगवान है !!
समुद्रतल से मोटा मोटा 3.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक शिवधाम जिसके पीछे सीना ताने खड़ा है उतनी ही ऊंचाई का केदार पर्वत शिखर। वास्तव में आप यहां अपने जीवन में सफलताओं के लिए की गई आपकी जीतोड़ मेहनत करने की क्षमता को, जाने अनजाने ही शिव के सान्निध्य में कई गुना बढ़ा रहे होते हैं। गंगा की सहायक नदी मंदाकिनी (स्वर्ग की नदी) के तट पर ऋषिकेश से 225 किमी दूर, 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है केदारनाथ ज्योतिर्लिंग/धाम। यह दृश्य आपकी दृष्टि को चुंबक की तरह अपनी ओर आकर्षित कर लेता है!! अद्भुत, वास्तव में अद्भुत !!
ताज़ी हवा और केदारघाटी का मनोरम दृश्य देखते हुए आप समय के चलने को रुका हुआ महसूस करते हैं।
केदारनाथ, छोटा चारधाम यात्रा का एक अभिन्न अंग है। इसलिए इसे केदारनाथ धाम भी कहा जाता है। यमुनोत्री, गंगोत्री और बद्रीनाथ अन्य तीन छोटा चारधाम हैं।
"हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥"
(हिमालय में केदारनाथ, शिवालय(वेरुल) में घुश्मेशवर ज्योतिर्लिंग हैं।)
"केदारनाथ" का अर्थ है "क्षेत्र का स्वामी". यह संस्कृत के शब्द केदार ("क्षेत्र") और नाथ ("भगवान") से बना है।
पौराणिक इतिहास
सबसे पुराने वर्णन के अनुसार विष्णु के अवतार रूप ऋषियों नर नारायण की विनती पर भगवान शिव ने केदार में सदा के लिए अपना निवास बनाया था।
महाकाव्य महाभारत के अनुसार पांडवों ने महाभारत युद्ध से विजय प्राप्त करने के पश्चात अपने ही भाई बंधुओं की हत्या करने की आत्मग्लानि से पीड़ित होकर महर्षि व्यास जी से उपाय पूछा तो उन्होंने पांडवों को शिव की शरण में जाने को कहा। पांडवों ने शिव से मुक्ति की कामना की, किंतु भगवान शिव उन्हें दर्शन देने हेतु इच्छुक न थे। शिव ने पांडवों के केदार की ओर आने की सूचना मिलते ही वे वहीं केदारनाथ में ही जानवरों के एक झुंड में बैल के रूप में छिप गए और सिर की ओर से भूमि में जाने लगे तब पांडवों में से भीम ने बैल की पूंछ पकड़कर उसे रोक लिया और शिवजी को उन्हें दर्शन देकर आशीर्वाद देना पड़ा। उस स्थान से नंदी बैल की पीठ के अतिरिक्त शेष भाग लुप्त हो गया। यहीं उस बैल की पीठ के आकार का ही शिवलिंग आज केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कहलाता है और मंदिर के गर्भगृह में यही नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है। इसके बाद पांडवों या उनके ही वंशज जनमेजय ने यहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी।
केदारनाथ में शिव आशीर्वाद मिलने के बाद पांडव पहाड़ की जिस चोटी से स्वर्ग गए थे, उसे "स्वर्गारोहिणी" के नाम से जानी जाता है।
पंचकेदार : पीठ के अतिरिक्त बाकी उस बैल के शरीर के अन्य चार भाग अलग-अलग स्थानों पर दिखाई दिए, जो कि शिव के उन रूपों के आराधना स्थल बने।
मुख - रुद्रनाथ में पुज्य
विशेष : मंदाकिनी व अलकनंदा के जल को बाटने वाली सीधी खड़ी पहाड़ी के तलहटी में स्थित है रुद्रनाथ गुफा मंदिर है। हालांकि अब गुफा को बंद कर दिया गया है। इसके अंदर में एक मुखाकृतिक शिवलिंग है, जिस पर गुफा से जल की बूँदें लगातार टपकती रहती हैं। यह भगवान शिव के क्रोधित अवतार की आकृति है, जिसे वस्त्र से ढककर रख गया है और इसमें चाँदी धातु से बनी दो आँखें लगी हुई हैं। सिर पर चाँदी का विशाल छत्र भी सुशोभित है।
रुद्रनाथ पहुँचने के लिए दो मुख्य मार्ग हैं - एक गोपेश्वर से व दूसरा मंडल से। गोपेश्वर से 16 किमी की खड़ी चढ़ाई पैदल चलकर रुद्रनाथ पहुंचते हैं। दूसरा मार्ग रुद्रप्रयाग से ऊखीमठ और फिर चोपटा होकर मंडल पहुँचा जाता है, लेकिन यहां से आपको 21 किमी. की पदयात्रा कर रुद्रनाथ दर्शन होते हैं।
सिर - कल्पेश्वर में पुज्य
हाथ- तुंगनाथ में पुज्य, यह शिव का दुनिया में सबसे ऊंचा शिव मंदिर है।
मध्यमहेश्वर व तुंगनाथ दक्षिण में और कल्पेश्वर पूर्व में स्थित है। ये तीनों केदार एक समद्विबाहु त्रिभुज के शीर्षों पर स्थित हैं। इनमें से दो केदारनाथ और कल्पेश्वर घाटी में स्थित हैं, जबकि रुद्रनाथ, मंदाकिनी-अलकनंदा के संगम पर स्थित है। मंदाकिनी घाटी से चार केदारों का संबंध होने के कारण इसे केदारघाटी के नाम से जाना जाता है।
केदारनाथ और ये चार स्थल पंचकेदार के नाम से जाने जाते हैं। इनमें से तुंगनाथ, भगवान शिव का दुनिया में सबसे ऊंचा मंदिर है। मध्यमहेश्वर अन्य चार केदारों के मध्य स्थित है।
निर्माण और संरचना
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के निर्माण तिथि पर काफी संशय आज भी बना हुआ है। आजतक यह निश्चित नहीं हो पाया है कि मूल केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने और कब किया था। लेकिन निश्चित तौर पिछले एक हजार सालों की लंबी अवधि से केदारनाथ भारतवर्ष में एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान रहा है।
हमने ऊपर अभी केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के पौराणिक इतिहास में महाभारत की चर्चा की थी, यहां ये आश्चर्य करने वाली बात है कि महाभारत महाकाव्य में जहां पांडवों और कुरुक्षेत्र युद्ध का वर्णन मिलना जितनी सामान्य बात है, उतनी ही असामान्य बात है पूरी महाभारत में कहीं भी केदारनाथ नामक स्थान का कोई उल्लेख न मिलना। ध्यान दें यहां उल्लेख ना मिलना कहा जा रहा है ना कि उल्लेख ना होना। (हो सकता है कि किसी ना किसी रूप में केदार तीर्थ का वर्णन समय के साथ इस रूप में इतना बदला हो कि अलग अलग संस्करणों में होते होते ये तथ्य कहीं गुम हो गया हो)।
केदारनाथ के चारों ओर पांडवों के कई प्रतीक आज भी हैं। जैसे राजा पांडु की मृत्यु यहीं नजदीक मौजूद पांडुकेश्वर में हुई थी। गढ़वाल क्षेत्र के में आदिवासी 'पांडव लीला' नामक एक लोकनृत्य करते हैं। इस नृत्य में सम्पूर्ण महाभारत की कहानी को नृत्य मुद्राओं से पुनः जीवंत किया जाता है।
केदारनाथ का सबसे पहला लिखित उल्लेख स्कंदपुराण (7 वीं -8 वीं शताब्दी) में मिलता है, जिसमें गंगा नदी की उत्पत्ति की एक कहानी है। स्कंदपुराण कुरुक्षेत्र और गढ़वाल क्षेत्र के साथ साथ केंद्र में काशी को पवित्र मानकर रचा गया है। इसके अनुसार काशी के बाद सबसे पवित्र तीन अन्य स्थल( पर्वत शिखर) हिमालय क्षेत्र में हैं -
महालय जो केदार के दक्षिण में है, केदार और मध्यमा। यहां केदार का वर्णन कुबेर (धन के देवता) के अभ्यारण्य के रूप में किया गया है। इसके अनुसार केदार (केदारनाथ) वह स्थान है जहां जहां शिव ने अपनी जटाओं से पवित्र जल (गंगा) मुक्त किया था। स्कंदपुराण ही वो पुस्तक है जिसमें केदारनाथ और कैलाश मानसरोवर का सबसे पहला और साफ साफ वर्णन मिलता है। यह स्कंदपुराण का उपलब्ध और सबसे पुराना संस्करण है, जोकि नेपाली भाषा में ताड़ के पत्ते पर लिखी गई पांडुलिपि ( 810 CE) के रूप में मौजूद है। इसके अनुसार यह मंदिर 1200 वर्षों से अधिक पुराना है हर हाल में। 8वीं शताब्दी के हिंदू दार्शनिक आदिशंकराचार्य की मृत्यु केदारनाथ में हुई थी। इसके अनुसार भी केदारनाथ मंदिर 1200 साल से अधिक पुराना है।
केदारनाथ मंदिर के पीछे वाले हिस्से में आदिशंकराचार्य की मृत्यु के स्थान के एक स्मारक के खंडहर आज भी स्थित हैं। मंदिर का जीर्णोद्धार जगद्गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। एक अन्य मान्यता है कि वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य द्वारा बनवाया गया था जो पांडवों द्वारा द्वापरकाल (महाभारत युद्ध का समयकाल) में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर की धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जान पाना मुश्किल है। इतिहासकार डॉ शिव प्रसाद डबराल मानते है कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं। (1200 साल से भी प्राचीन)
ग्वालियर में मालवा के राजाभोज का एक स्तुति पत्र मिला है। जिसके अनुसार केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण राजा भोज ने 1076 से 1099 ई. के बीच कराया था।
राहुल सांकृत्यायन द्वारा इस मंदिर का निर्माणकाल 10वीं व 12वीं शताब्दी के मध्य बताया गया है। उन्होंने केदारनाथ को मंदिर को वास्तुकला का अद्भुत व आकर्षक मेल बताया है। (करीब 850 साल पुराना)। सन् 1882 के इतिहास के अनुसार स्पष्ट अग्रभाग वाला यह मंदिर एक भव्य भवन था, जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ थीं।
केदारनाथ निश्चित रूप से 12वीं शताब्दी आने तक एक प्रमुख तीर्थस्थल बन चुका था, इसका उल्लेख प्राचीन गढ़वाल राज्य के एक मंत्री लक्ष्मीधर भट्ट द्वारा लिखित कृतिका कल्पतरु नामक पुस्तक में मिलता है।(800 साल से भी ज्यादा पुराना)
भूवैज्ञानिकों द्वारा यह दावा किया जाता है कि केदारनाथ मंदिर लिटिल हिम युग (Little Ice Age) के दौरान लगभग 400 वर्षों तक बर्फ के नीचे दबा रहा था। Little Ice Age को सन् 1300-1850 के बीच माना जाता है। यहां ये ध्यान रहे कि यह छोटा हिमयुग (Little Ice Age) टर्म 1939 के बाद ही अस्तित्व में आया था।
अंग्रेजी पर्वतारोही एरिक शिप्टन (1926) बताते हैं कि कई सैकड़ों साल पहले दर्ज की गई एक परंपरा के अनुसार, "केदारनाथ मंदिर में कोई स्थानीय पुजारी नहीं हुआ करता था। बद्रीनाथ मंदिर के पुजारी ही दोनों मंदिरों में सेवा करते थे, और इसके लिए वे दोनों धामों के बीच प्रतिदिन यात्रा करते थे।
इन सब साक्ष्यों के अध्ययन से हम ये कह सकते हैं कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना महाभारत काल में पांडवों(वंशज जन्मेजय) ने आज से लगभग 5500 साल पहले, यानी 3500-3600 ई. पू. में की थी। फिर 8वीं सदी में आदिशंकराचार्य ने इसका जीर्णोद्धार किया। तत्पश्चात् 10वीं सदी में मालवा के राजा भोज ने इसका पुन:निर्माण कराया। उसके बाद गढ़वाल राज्य के अन्तर्गत इसके लिए कार्य होते रहे।
वास्तुशास्त्र और शिल्पकला
चोराबाड़ी हिमनद के कुंड से निकलने वाली मंदाकिनी नदी (गंगा की सबसे ऊंची सहायक नदी) के समीप ही, केदारनाथ पर्वत शिखर की तलहटी पर स्थापित है विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर। सभी ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है।
केदारनाथ में पीठासीन प्रतिमा एक पाषाण से बने 3D त्रिभुज आकार के लिंग की है जिसकी परिधि 3.6 मीटर (लगभग 12 फीट) और उतनी ही ऊंचाई 3.6 मीटर (लगभग 12 फीट) के साथ अनियमित आकार की है। मंदिर के सामने एक छोटा स्तंभमंडप है, जिसमें पार्वती और पाँच पांडव राजकुमारों के चित्र बने हुए हैं।
केदारनाथ मंदिर के पहले मंडप में भगवान कृष्ण, पांचों पांडव भाइयों, नंदी (वाहन) और शिव के रक्षकों में से वीरभद्र की मूर्तियां लगी हैं। द्रौपदी और अन्य कुछ देवताओं की मूर्तियां यहां हैं।
कत्यूरी शैली में बना यह ज्योतिर्लिंग धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ करीब 22,000 फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ 21,600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22,700 फुट ऊंचा भरतकुंड। यहां न केवल तीन पहाड़ हैं बल्कि, पांच नदियों का संगम भी है - मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इनमें से कुछ का तो अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी मंदाकिनी के किनारे है केदारेश्वर धाम।
केदारनाथ मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। मंदिर के मुख्यभाग में मंडप और गर्भगृह के चारों ओर एक प्रदक्षिणा पथ है। बाहरी परिसर में नंदी विराजमान हैं। यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिवमंदिर है, जो भूरे रंग वाली कटवां पत्थरों की विशाल शिलाओं को जोड़कर बनाया गया है। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह वर्तमान मंदिर से भी प्राचीन है जिसे 8वीं शताब्दी के आसपास का माना जाता है।(1200 साल प्राचीन)
तीन-क्षैतिज प्रभागों वाला, गर्भगृह (अभयारण्य), अंतराला (वेस्टिबुल) और गुढा मानदपा (बंद हॉल) के साथ रेखा- शिखर शैली में निर्मित है। गुढ़ामंडापा में दक्षिण, पूर्व और पश्चिम से तीन प्रवेश द्वार हैं। ऊंचाई पर स्थित गर्भगृह वेदिबंध, जंघा और शिखर से बना है।
मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर यह प्रदक्षिणा होती है। अर्धा चौकोर है, अंदर से खोखली है और अपेक्षाकृत रूप से नया निर्माण है। विशाल और भव्य सभामंडप है। इसकी छत चार काफी बड़े पत्थर के स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर से बनी है। गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।
केदारनाथ मंदिर में एक त्रिकोणीय पत्थर पर उकेरी गई मानव सिर की रचना है। यह इस एक असामान्य विशेषता है। ऐसा ही एक सिर नजदीक स्थिति एक अन्य मंदिर में भी मौजूद है जहां शिव पार्वती विवाह हुआ था।
मंदिर के पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है। इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने की परत चढ़ी है। मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पूजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं।
केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी को रावल कहा जाता है और ये कर्नाटक के वीरशैव समुदाय के लोग ही होते हैं। हालांकि, बद्रीनाथ मंदिर के विपरीत, केदारनाथ मंदिर के रावल/पुजारी स्वयं पूजा नहीं करते हैं बल्कि उनके निर्देशों पर सहायकों द्वारा पूजा की जाती है। यहीं रावल जाड़े के मौसम में पीठासीन देवता के साथ उखीमठ जाते हैं।केदारनाथ में पांच मुख्य पुजारी हैं, और वे रोटेशन प्रणाली से क्रमशः एक वर्ष के लिए प्रधान पुजारी बनते हैं।
कपाट खुलने और बंद होने का समय
केदारनाथ मंदिर के कपाट मेष संक्रांति(अप्रैल) से पंद्रह दिन पूर्व खुलते हैं और अगहन संक्रांति(नवंबर) के निकट भइया दूज के दिन, प्रातः चार बजे, श्री केदार को घृत कमल व वस्त्रादि की समाधि के साथ ही, कपाट बंद हो जाते हैं।
अत्यंत कठिन मौसम की परिस्थितियों के कारण केदारनाथ मंदिर केवल अप्रैल (अक्षय तृतीया) और नवंबर (कार्तिक पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा) के महीनों के बीच आम जनता के लिए खुलता है। सर्दियों के दौरान नवंबर से अप्रैल तक, केदारनाथ मंदिर के विग्रह (देवता) को उखीमठ ले जाया जाता है, जहां अगले छह महीनों के लिए पीठासीन देवता की पूजा की जाती है। यानी अब जल्दी ही केदारनाथ के पट खुलने वाले है !!
केदारनाथ के निकट ही गाँधी सरोवर व अप्रतिम सौंदर्य का उदाहरण वासुकीताल है। प्राकृतिक सौंदर्य और शांति के मिश्रण का दैवीय अनुभव करने के लिए यहां जरूर जाएं।
चोराबाड़ी झील, जिसे गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है, 3,900 मीटर (12,800 फीट) की ऊंचाई पर चोरबारी ग्लेशियर के मुख पर एक हिमनद झील थी। केदारनाथ शहर से लगभग 2 किमी (1.2 मील) दूर, मंदाकिनी नदी प्रणाली का हिस्सा था। 2013 में आयी आपदा इसी झील के ओवरफ्लो/फटने से आयी थी और जाते हुए झील को नष्ट कर गई, अब इसमे कोई जलराशि नहीं है।
केदारनाथ पहुँचने के लिए आपको रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी होते हुए 20 किमी. आगे गौरीकुंड तक मोटरमार्ग से जाना होता है। गौरीकुंड के बाद चिरबासा हेलीपैड स्थित है। यहां से 16 किमी. लंबा ढाल और चढ़ाई वाला ट्रेक पैदल ही चलना होता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन केदारनाथ मंदिर में स्थापित शिवप्रतिमा को उखीमठ ले जाया जाता है। केदारनाथ पहुंचने से पहले गौरीकुंड में स्नान का नियम है। गौरीकुंड के अलावा केदारनाथ में 4 और कुंड शिवकुंड, रेतकुंड, हंसकुंड, उदीकुंड स्थित हैं।
यहां भैरोनाथ के मंदिर की बहुत मान्यता है। हर साल भैरोनाथ की पूजा के बाद ही मंदिर के कपाट खोले और बंद किए जाते हैं। माना जाता है कि मंदिर के पट बंद होने पर भैरव जी ही मंदिर की रक्षा करते हैं।
ये लगभग 20 किमी का और 7 से 8 घंटे में पूरा किया जाने वाला ट्रेक है जिसका रूट गौरीकुंड से
केदारनाथ धाम पैकेज के लिए क्लिक करें
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें
Tripoto हिंदी के इंस्टाग्राम से जुड़ें और फ़ीचर होने का मौक़ा पाएँ।