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राजस्थान की खूबसूरती और यहाँ की पंरम्परा हर साल कई पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। राजस्थान की संस्कृति, विरासत, रीति-रिवाज और परंपराएं पूरी दुनिया के लोगों को आकर्षित करती हैं। जयपुर राजस्थान में ऐसा एक शहर है जो दुनिया भर के कई पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। जयपुर में कई पर्यटन स्थल हैं। ये पर्यटन स्थल किलों और महलों से खूबसूरत बगीचों तक फैले हुए हैं। इनमें से प्रत्येक पर्यटन स्थल पर अलग अलग अट्रेक्ट करने वाली चीजें है। अक्सर मैंने देखा है कि जब भी हम घूमने जाते है तो उन जगहों पर ज्यादा ध्यान देते है जो हमने सुनी या कही पढ़ी है। पर कुछ ऐसी जगहे भी होती है जो शायद पर्यटकों के नजर से बची रह जाती हैं इसका कारण है समय की कमी। समय की कमी के कारण हम हमेशा अपनी यात्राओं के दौरान हमसे कुछ जगहें छूट ही जाती हैं। जी हाँ! तो ऐसा आपकी यात्राओं में दुबारा न हो इसके लिए आज मैं जयपुर की कुछ ऐसी ही जगहों के बारे में आपको बताऊंगी जो शायद आपने भी ना देखी हो। तो आइए विस्तार से जानते है।
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चंदलाई लेक
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बहुत से लोगों को पता ही नहीं है कि जयपुर के पास स्थित 140 वर्षीय झील है। चंदलाई झील जयपुर से टोंक रोड पर सिर्फ 30 मीटर दूरी पर ही स्थित है। शहर से दूर, यह शांति और प्राकृतिक सुंदरता वाली जगह है। चंदलाई झील प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफरों के लिए स्वर्ग है जो पक्षियों और वन्यजीवों को देखना और उन्हें फोटो में कैद करना पंसद करते है। बारिश के दौरान यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती और भी बेहतरीन दिखती है। साथ ही अगर आप बर्ड वॉचिंग के शौकीन हैं तो यहाँ आपको दूसरे देशों से आने वाले कई प्रवासी पक्षी भी दिख जाएंगे जिसमें फ्लैमिंगो की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके अलावा यहाँ आपको शहर की भीड़भाड़ से दूर शांति और सुकून का अहसास होगा।
पन्ना मीना का कुंड
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राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित आमेर से कुछ ही दूरी पर स्थित पन्ना मीणा का कुंड है। पन्ना मीना का कुंड राजस्थान की लोकप्रिय बावड़ीयों में से एक है। जयपुर में, पन्ना मीना का कुंड सोलहवीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि यह 450 वर्षीय है, यह कदम कुएं अंबर किले या अनोखी संग्रहालय के बगल में है, लेकिन किले का दौरा करने वाले कुछ पर्यटक इस प्राचीन चमत्कार के बारे में जानते हैं। आप सभी को बता दूं यह बावड़ी या कुंड चौकोर आकार का है, जिसके चारों तरफ सीढ़ियाँ हैं और उत्तरी दीवार पर एक कमरा है। यह माना जाता है कि इस कमरे का उपयोग धार्मिक समारोहों में शादियों से पहले या लोकप्रिय त्यौहारों की तारीखों के लिए किया जाता था। तो आप जब भी जयपुर आएं यहाँ एक बार ज़रूर जाएं।
सिसोदिया रानी बाग
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जयपुर शहर से करीब 8 किमी दूर स्थित सिसोदिया रानी का बाग जयपुर में सबसे बड़ा बगीचा और उद्धान है। इसे 1728 में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने बनाया था और उन्होंने इसे अपनी रानी सिसोदिया को उपहार में दिया था। इस गार्डन का निर्माण राजा सवाई जय सिंह ने अपनी रानी सिसोदिया के लिए किया था। बगीचे की वास्तुकला भारतीय और मुगल शैली से प्रेरित है जिसमें फव्वारे, दीघाओं और पेंट मंडप का काफी अच्छा डेकोरेशन है। गार्डन में आने वाले पर्यटक भगवान कृष्ण और राधा जी की प्रेम कहानी का खूबसूरती से किया गया चित्रण भी देख सकते है। वैसे इस गार्डन में विवाह व अन्य शुभ कार्य भी होते है। सिसोदिया रानी बाग के पास छोटा मंदिर बना हुआ है जिसमे भगवान विष्णु, भगवान शिव और हनुमानजी की मूर्तियां स्थापित की गई है। मानसून के समय इस उद्यान की ख़ूबसूरती और भी ज्यादा बढ़ जाती है।
झील सागर
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यह सत्तरवीं शताब्दी की एक छिपी हुई झील है जो जयपुर के मैदान में बहती है। यह खेरी गेट और अनोखी संग्रहालय के बीच स्थित है। यह झील राजा मान सिंह के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी। झील सागर का एक बड़ा महत्व है क्योंकि यह आमेर और जयगढ़ के साथ-साथ जयपुर शहर के लोगों के लिए पानी का प्राथमिक स्रोत है। आपको बता दूं कि झील का विभाजन दो हिस्सों में किया गया है- ऊपरी सागर और लोअर सागर। सूर्यास्त के दौरान सुंदर झील के अद्भुत दृश्य का आनंद लेकर आप भी यहीं कहेगें कि ऐसा दृश्य हमने पहले कभी नही देखा।
गायत्री की चतुरिस
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जयपुर शहर से सिर्फ 15 किमी दूर आपको जयपुर के महाराजा के अंतिम विश्राम स्थान मिलेगे जो गायत्री की चतुरिस के रूप में जाने जाते है। जयपुर महाराजा के जयपुर के लिए शाही श्मशान स्थल है। आप जब भी जयपुर जाए यहाँ ज़रूर एक बार जाएं।
गलता जी
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जयपुर बस स्टैंड से मात्र 10 किलोमीटर दूर गलताजी अरावली पर्वतमाला में स्थित एक बेहद सुंदर तीर्थ स्थल है। इस पवित्र तीर्थ स्थल पर संत गालव ने 100 वर्ष तक तपस्या की थी। संत गालव के तपस्या से भगवान ने प्रसन्न हो कर उनको आशीर्वाद दिया की इस स्थान की हमेशा पूजा की जाएगी और इस जगह बहने वाले जल को पवित्र माना जाएगा। संत गालव के सम्मान में इस स्थान पर उनके नाम से मंदिर भी बनाया गया है और संत गालव के नाम पर इस पवित्र स्थान का नाम गलताजी रखा गया। कई लोग इस स्थान को मंकी टेम्पल के नाम से भी जानते है इसकी मुख्य वजह इस स्थान पर बहुत सारे बंदर पाये जाते है। गलताजी तक पहुंचने के दो मार्ग है पहला रास्ता पहाड़ों के बीच से आता इस रास्ते से आप अपनी गाड़ी या टैक्सी के द्वारा बड़े आराम से यहाँ तक पहुँच सकते है। दूसरा रास्ता जयपुर-दिल्ली हाइवे की तरफ से आता है इस रास्ते से आपको पहाड़ पर चढ़ाई करनी पड़ेगी, दूसरे रास्ते की तरफ से आने पर सूर्य मन्दिर पहले आता है।
मोती डूंगरी मंदिर
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जयपुर में स्थित मोती डूंगरी गणेश मन्दिर की स्थापना 1761 सेठ जय राम पल्लीवाल के देख रेख में हुई। मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा को उदयपुर के पास स्थित एक छोटे से कस्बे मावली से लाया गया था। मावली जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह प्रथम की पटरानी का पीहर था। ऐसा माना जाता है की मावली में इस प्रतिमा को जब गुजरात से लाया गया था तो उस समय यह प्रतिमा 500 वर्ष पुरानी थी। मंदिर के पास स्थित एक छोटी पहाड़ी है जिसे मोती डूंगरी कहा जाता है इस पहाड़ी की तलहटी में स्थित होने की वजह से इस गणेश मंदिर का नाम मोती डूंगरी गणेश मंदिर रखा गया। मंदिर का स्थापत्य बहुत ही सामान्य है मंदिर में प्रवेश के लिए तीन दरवाजे बनाये गए है और मंदिर के मध्य भाग में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की गई है, भगवान गणेश की प्रतिमा सिंदूर के रंग की है। मोती डूंगरी गणेश मंदिर की प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की मंदिर में भगवान गणेश के दर्शन के लिए हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है। हिन्दू धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित किया गया है इसलिए बुधवार के दिन यहाँ पर श्रद्धालुओं की संख्या ज्यादा रहती है। जयपुर के स्थानीय निवासी जब भी कोई नई गाड़ी खरीदते है वो सबसे पहले इसी मंदिर में अपनी गाड़ी की पूजा करवाने के लिए आते है। ऐसी मान्यता है की अगर गाड़ी को सबसे पहले गणेश मन्दिर में ले जाकर पूजा करवाते है तो गाड़ी के साथ कुछ अशुभ घटित नहीं होता। तो आप जब भी जयपुर आएं यहाँ के दर्शन जरूर करें।
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