एक समय वृन्दावन केवल एक वन मात्र था। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रज भूमि में कुल १२ वन थे। वृन्दावन उनमें से एक है। यमुना नदी के तीर स्थित इस वन में श्री कृष्ण ने गोपिकाओं के संग अनेक बाल लीलाएं रचाई हैं। यहीं चीर घाट पर स्नान के लिए आयी गोपियों के वस्त्र चुराकर वे वृक्ष पर चढ़ गए थे। यहीं समीप ही उन्होंने कालिया नाग का वध भी किया था।
इसी वन में उन्होंने रास लीला रचाई थी। आपको विश्वास नहीं होगा किन्तु ऐसा माना जाता है की कृष्ण अब भी प्रत्येक रात्रि एक अन्य छोटे वन में गोपियों संग रास रचाते हैं।
वृन्दावन का संक्षिप्त इतिहास
वृन्दावन का शब्दशः अर्थ है पवित्र तुलसी का वन। किवदंतियों के अनुसार श्री कृष्ण की एक गोपिका सखी का नाम वृंदा था।
यह क्षेत्र वास्तव में विस्मृति में लुप्त एक वन था। चैतन्य महाप्रभु १६ वी. सदी में श्री कृष्ण से संबंधित स्थलों की खोज करते यहाँ आए थे। जैसे जैसे शास्त्रों में उल्लेख किया गया था, वैसे वैसे वे स्थलों से तादाम्य स्थापित कर रहे थे। उसी समय वृन्दावन नगरी की उत्पत्ति हुई थी। आज यह छोटे-बड़े मंदिरों तथा वानरों से भरी एक देवनगरी है। इसके वर्तमान स्वरूप को देख इसे वन मानने के लिए आपकी अपार कल्पना शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी।
मेड़ता एवं मेवाढ की १६ वीं. सदी की भक्ति कवियित्री मीराबाई ने भी इस स्थान में पर्याप्त समय व्यतीत किया था। उनकी स्मृति में यहाँ एक मंदिर भी है जो उन्हे समर्पित है। यद्यपि भूलोक में उन्होंने अंतिम श्वास गुजरात में द्वारका के समीप बेट द्वारका में लिया था जब चिरकाल के लिए अपने परम प्रिय श्री कृष्ण से उनका मिलन हो गया था।
औरंगजेब के शासनकाल में इन क्षेत्र के मंदिरों पर आतताईयों ने भरपूर आक्रमण किया था। कल्पना कीजिए, दिल्ली एवं आगरा जैसी मुगलों की राजधानियाँ एवं उनके मध्य स्थित मंदिरों से भरा यह क्षेत्र। यहाँ के अनेक मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियों को यहाँ से अन्यत्र स्थानांतरित करना पड़ा था।
वृन्दावन के महत्वपूर्ण मंदिर
वृन्दावन का पावन क्षेत्र मंदिरों से भरा हुआ है। इन सब के दर्शन करना तभी संभव है जब आप यहाँ निवास कर रहे हों। अधिकतर तीर्थयात्री उन्ही मंदिरों के दर्शन करते हैं जिनसे वे अथवा उनके गुरु संबंधित हों। इन के साथ वे कुछ लोकप्रिय अथवा प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन करते हैं।
सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर – श्री बाँके बिहारी मंदिर
श्री बाँके बिहारी मंदिर इस पावन नगरी का सर्वाधिक लोकप्रिय तथा इसी कारण सर्वाधिक भीड़भाड़ भरा मंदिर है। आप यहाँ किसी भी समय आयें, मंदिर में भक्तों व दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है। मंदिर में स्थित बाँके बिहारी जी की मूर्ति स्वामी हरीदास को समीप स्थित निधिवन में प्राप्त हुई थी। १८ वीं. सदी में इसी मूर्ति के चारों ओर मंदिर की संरचना की गई। मंदिर के बाहर स्थित मार्ग पर स्वामीजी का स्वयं का मंदिर भी है।
ऐसी मान्यता है कि इस मूर्ति के भीतर राधा एवं कृष्ण दोनों बसते हैं। इस मंदिर की एक अनोखी विशेषता है कि यह पूर्वान्ह ९ बजे के पश्चात ही खुलता है। यहाँ किसी भी सामान्य मंदिर के समान प्रातःकाल की मंगल सेवा नहीं होती। इस मंदिर की वास्तुकला एक हवेली के समरूप है। मध्य में एक खुला प्रांगण है जहां खड़े होकर आप भगवान के दर्शन करते हैं। एक स्तंभ पर पीतल में निर्मित कामधेनु एवं उसके शावक की अप्रतिम प्रतिमा है।
आप इस मंदिर का माखन मिश्री प्रसाद खाना ना भूलें। यह अत्यंत ही स्वादिष्ट होता है। इस प्रकार का प्रसाद इस मंदिर के अतिरिक्त केवल द्वारका के द्वारकाधीश मंदिर में ही दिया जाता है।
इस्कॉन वृन्दावन – कृष्ण बलराम मंदिर
इस्कॉन मंदिर सभी हिन्दू मंदिरों में सर्वाधिक उत्तम रखरखाव युक्त मंदिर है। यद्यपि इसके अनुयायी अधिकतर गैर-भारतीय हैं। १९७५ में निर्मित यह मंदिर इस माटी के दोनों भ्राताओं का उत्सव मनाता है, अर्थात कृष्ण एवं बलराम।
इस्कॉन का इस नगरी में एक अक्षय पात्र इकाई भी है जिसमें तीर्थ यात्रियों के ठहरने की भी व्यवस्था है। अपनी पिछली यात्रा के समय मैंने यहाँ का रसोईघर देखा था जहां हजारों शालेय विद्यार्थियों के लिए मध्यान्ह आहार बनाया जाता है। किस प्रकार वे भाप एवं स्वचालित मशीनीकरण द्वारा पोषक एवं स्वास्थ्यवर्धक भोजन बनाते हैं, यह देखना अत्यंत मनोरंजक होता है।
वृन्दावन प्रेम मंदिर
यह इस नगरी का नवीनतम तथा अत्यंत लोकप्रिय मंदिर है। मैंने जब कुछ वर्षों पूर्व इसके दर्शन किए थे, तब संगमरमर द्वारा निर्मित यह मंदिर निर्माणाधीन था। कृपालु महाराज द्वारा बनाये गए इस मंदिर में दो गर्भगृह हैं। एक गर्भगृह राधा कृष्ण को तथा दूसरा गर्भगृह राम सीता को समर्पित है। यह एक विशाल मंदिर है जिसमें श्वेत संगमरमर पर राधा कृष्ण की रंगबिरंगी छवियाँ रची हुई हैं। यह मंदिर वैष्णव समाज के अनेक संतों को भी सम्मानित करता है।
वैष्णो देवी मंदिर
यह अपेक्षाकृत नवीन मंदिर है जिसमें अपने सिंह की पीठ पर विराजमान दुर्गा माँ की विशाल प्रतिमा है। उनके नीचे एक गुफा के भीतर देवी के नौ रूपों के विग्रह हैं।
निधि वन
एक पवित्र वन जहां आप पैदल सैर कर सकते हैं तथा राधा को समर्पित मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। यह मंदिर चूड़ियों एवं श्रंगार की अन्य वस्तुओं से भरा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि आज भी यहाँ प्रत्येक रात्रि राधा एवं कृष्ण का मिलन होता है। संध्या के समय पुजारीजी रंग महल के भीतर उनका बिछौना सजाते हैं तत्पश्चात वहाँ से दूर चले जाते हैं। अंधकार होते ही भीतर किसी को भी ठहरने की अनुमति नहीं है। प्रचलित किवदंतियों के अनुसार जिसने भी इस नियम का पालन नहीं किया तथा जानबूझकर वहीं ठहर गए, वे प्रातः मृत पाए गए।
निधि वन के परिसर में कवि एवं संगीतज्ञ स्वामी हरिदासजी की समाधि है। उन्हे ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे यहीं अपनी साधना करते थे। अकबर के दरबार के एक सदस्य, सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन यहीं स्वामी हरिदासजी से भेंट करने आए थे। उनकी कुछ रचनाएं यहाँ शिलाओं पर भी उत्कीर्णित हैं।
श्री बाँके बिहारी मंदिर के भीतर स्थापित मूर्ति, जिसका मैंने उपरोक्त उल्लेख किया था, यहीं प्राप्त हुई थी।
आप जब आसपास घूमेंगे, तब आपको कुंज बिहारी को समर्पित एक मंदिर दिखायी देगा। निधि वन में ललित कुंड नामक एक बावड़ी भी है। यहाँ कई वृक्षों को सिंदूर अर्पण करने की प्रथा है। उन्हे देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे लाल विवाह-वस्त्रों में सजी वधुएं हैं।
वृन्दावन के स्वादिष्ट व्यंजन अवश्य चखे
मथुरा के पेड़े मथुरा वृन्दावन के मंदिरों का विशेष एवं प्रिय चढ़ावा है। आप इन्हे अवश्य चखें। मथुरा में ये पेड़े कैसे बनाए जाते हैं इस पर मैंने एक संस्करण लिखा है। इसे भी अवश्य पढ़ें।
ब्रज भूमि में मेरा प्रिय व्यंजन है कचोड़ी, तत्पश्चात बेड़मी पूरी जो केवल सुबह के समय ही उपलब्ध होती है।
यहाँ की लस्सी भी अत्यंत स्वादिष्ट होती है। गर्मियों में जलजीरा भी अत्यंत प्रचलित है। आप जब भी वृन्दावन आयें मौसम के अनुसार वहाँ के प्रत्येक व्यंजन का आस्वाद लें। भले ही ये वस्तुएं आपके नगरों में भी मिलती हों किन्तु प्रत्येक स्थान का अपना एक विशेष स्वाद होता है।
वानरों का उत्पात
आपकी वृन्दावन यात्रा में वानर अवश्य खलल डाल सकते हैं। ये वानर आपको प्रत्येक मंदिर, प्रत्येक गली तथा प्रत्येक घाट पर मिलेंगे। ये आप पर किसी भी वस्तु के लिए हमला कर सकते हैं। उनकी प्रिय वस्तुएं हैं, मोबाईल फोन, कैमरा, चश्मे तथा हाथ में पकड़े अथवा लटके पर्स। बाँके बिहारी मंदिर की गलियों में मैंने स्वयं उन्हे मार्ग पर चश्मा पहनकर चलते लोगों के ऊपर छलांग लगाते, चश्मा छीनते तथा उन्हे तोड़कर मजा करते देखा है। यदि आपके पास खाने-पीने की कुछ वस्तु हो तो उनसे बचकर यहाँ से जाना लगभग असंभव है।
कुछ वानरों की विशेष रुचि होती है जैसे फ्रूटी। यदि उन्होंने आपकी कोई वस्तु छीन ली हो तो उन्हे फ्रूटी खरीदकर दे दें। वे आपकी वस्तु वापिस कर देंगे। वहाँ के स्थानीय लोगों अथवा पुजारी को उनकी प्रिय वस्तु की जानकारी अवश्य होती है।