अतीत की स्वर्णिम परछाई लिए, जैसे कोई बादशाह अपने बुढ़ापे में अपनी खुशनुमा जवानी को याद करता है। कांपते हाथों से अपनी ढाल और तलवार उठा कर नेपथ्य में अपने पराक्रम का कोलाहल सुनकर कुछ पुराने पल जी लेता है। वैसा ही कुछ इस महल को देखकर महसूस होता है।
लगता है बादशाह और उसके महल की जिंदगी एक सी होती है। बस महल की जिंदगी थोड़ी ज्यादा लंबी होती है। आज दतिया साम्राज्य का ये महल भी अपने महान इतिहास को अंदर समेटे, कांपती दीवारों से नेपथ्य में गूंजता कोलाहल सुन रहा है। और एक विशाल वट वृक्ष की भांति सूखी शाखाओं को समेटे झरझरा कर गिरने का इंतजार कर रहा है।
दतिया महल का निर्माण 1614 ईस्वीं में महाराजा वीर सिंह देव ने करवाया था। इसलिए इसे वीरसिंह महल भी कहा जाता है। सात मंजिला इमारत का बनाया जाना उन दिनों में किसी चमत्कार से कम नहीं था। उस जमाने पूरे देश सतखंडा महल के नाम से भी जाना जाता था।
कैसे पहुंचें: दतिया ,मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर से लगभग 75 किमी दूर है। रेलमार्ग और सड़क मार्ग दोनों से आराम से पहुँचा जा सकता है।